________________
अभयकुमार
पुनः बिम्बसार ने नन्दिग्राम वालों को यह प्राज्ञा दी है। उन्होने अपने मन में अनुमान कर लिया कि सम्राट कि एक कूष्माण्ड (कुम्हडा-कद्द ) जो घडे के पेट बराबर के कठिन प्रश्नों का उत्तर इसी राजकुमार ने दिया था हो, कम या अधिक न हो, शीघ्र भिजवायो । अन्यथा ग्राम न कि ब्राह्मणो ने । पश्चात् उन्होने नन्दिग्राम में जाकर खाली कर दो। इस प्राज्ञा को सुनकर सभी घबडाये। राजा श्रेणिक बिम्बसार के पुत्र, उनकी रानी नन्दा मोर कुमार प्रभयके पास जाकर बोले, कमार ने एक मिट्टी तथा उसके पिता सेठ इन्द्रदत्त अपने सेवकों सहित ठहर का बड़ा घड़ा मगवाया और कद्दू की फलवाली वेल हए है। अत एव वे लज्जित तथा प्रानन्दित होकर वहाँ उसमें डाल दी, वह कद्दू दिन पर दिन बढ़ता गया, जब से गिरिव्रज लौट गए। वहां पर उन्होंने सम्राट को नमवह घड़े के पेट के बराबर हो गया तब उसे राजा श्रेणिक स्कार कर प्रभय की जो-जो चेष्टाएं देखी थीं, वे सब कह के पास भिजवा दिया। राजा बिम्बसार ने विचारा कि सूनाई। उन्होंने महाराज से कहा :नन्दिग्राम के ब्राह्मण तो इतने दुद्धिमान नहीं है, जो मेरी
महाराज हम उस कुमार को देखकर पहले ही समझ सब प्राज्ञानों को पूरा करें । कोई न कोई बुद्धिमान पुरुष ।
गए थे कि यह असाधारण बालक नन्दिग्राम का नहीं हो उस ग्राम में जरूर पाया है, जिससे ब्राह्मणों की रक्षा हो
सकता। यह सब लडको से तेजस्वी प्रतापी और राजरही है और उसने इस बात का पता लगाने के लिए लक्षणो से मंडित था। उपस्थित बालकों में उसके समान गुप्तचर भेजे। उन्होने जाकर पूछ-ताछ की, एक जामुन अन्य किसी मे वैसा तेज दृष्टिगोचर नही हुमा। बाद में के पेड़ पर कुछ बालक जामुन खा रहे थे । इन आदमियों
लोगो से बात चीत करने पर हमें उसका यथार्थ परिचय को प्राते हुए देखकर कमार ने लड़कों से कहा कि इनसे लिया। प्रब प्राप जैसा उचित समझे सो कर । और कोई बात न करे, मै उनसे सब बात करूगा। जब वे पास में पाये तो कहने लगे कि कछ जामून हमे भी
एक दिन राज्यमंत्री वर्षकार ने सम्राट से निवेदन दोगे। कुमार ने कहा आप कैसे जामुन चाहने हो।
किया कि राजकुमार प्रभय की विलक्षण प्रतिभा के समा. गरम-गरम या ठडे । क्योंकि मेरे पास दोनो प्रकार के चार मिले है सम्राट् | ऐसी विलक्षण बुद्धि तो बड़े-बड़े फल है । उन्होने कहा गरम-गरम चाहिए । कुमार ने पके विद्वानो मे नही होती। उन्हे शीन बुलवाना चाहिए। हुए जामुमो को तोडकर और मसलकर नीचे डाल दिये, सम्राट् तुम्हारा कथन ठीक है, वर्षकार ! मैं भी उन्होने उनको धून साफ कर फॅक.फूककर खाए । कुमार कुमार को यहा बुलवाने की बात सोच रहा था, किन्तु ने कहा कि हमने अापके कहे अनुसार गरम-गरम जाम् कुमार को बुलवाने का ढंग भी ऐसा विलक्षण रखूगा कि दिये, पाप लोग इन फलों को खब फंक मार-मार कर तथा उसमे कुमार को अपनी बुद्धि की एक भोर परीक्षा देनी ठडा करके खाएं, कहीं ऐसा न हो कि इनकी पांच से होगी। अच्छा, नन्दग्राम भेजने के लिए एक दूत को आपकी दाढ़ी-मूछे जल जाए । ____ इस पर उन राजपुरुषों ने लज्जित होकर कहा- __दूत-मैं नन्दिग्राम जाने के लिए उपस्थित हूँ महाराज ! 'प्रच्छा , अब पाप हमे ठडे फल दे।
सम्राट् तुम अभी नन्दिग्राम चले जायो, वहाँ जाकर तुम तब अभयकुमार ने उन्हें कच्ची-कच्ची जामुनें देनी । कुमार अभय से मिल कर कहना कि पापको महाराज ने प्रारम्भ की।
बुलाया है। किन्तु उन्होंने यह आज्ञा दी है कि प्राप अभयकुमार की वाक्चातुरी, तेजस्विता, मुख का मार्ग से पावें, न उन्मार्ग से प्रावे, न दिन में प्रावें न रात सौन्दर्य प्रावि अन्य बालको से असाधारण उनके बहुमूल्य में पावें । भूखे पेट न पावें, प्रफरे पेट भी न प्राबे, न वस्त्रों को देखकर वे राजपुरुष समझ गए कि यह कोई किसी सवारी में पावें। और न पैदल ही प्रावें, किन्द्र असाधारण बुद्धि वाल। राजकुमार है। उनको यह सम- गिरि व्रज नगर शीघ्र ही भावें। झते देर न लगी कि यह राजकमार नन्दिग्राम का नहीं "जो माज्ञा सम्राट् !"
बुलवायो।