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________________ कलचुरि कालीन एक नवीन जैन भव्य शिल्प समाज जबलपुर द्वारा प्रकाशित प्राचार्य रजनीश के प्रतिमाओं के मारे विश्व पद का प्रकन ध्यानाकर्षक है। अमृत कणः १९६६ मे प्रकाशित पुस्तिका के मुख्य पृष्ठ तीनो प्रतिमानों के परिकर को देखने से ऐसा ज्ञात पर अंकित उक्त प्रतिमा के मनोज्ञ चित्र में स्कन्धों पर होता है कि नागपुर एवं जबलपुर की प्रतिमाए किसी एक लटकती हुई केज गशि से एमा ज्ञात होता है कि यह ही कलाकार की वृतियाँ है, उनके प्राप्त स्थल से कभी प्रतिमा आदिनाथ प्रथम तीर्थकर की है। यह बात तर्क सगत प्रतीत होती है किन्तु लखनादौन की लखनादौन से प्राप्त नयनाभिराम शिल्प के शिरोपरि- प्रतिमा किसी अन्य कलाकार की कृति ही ज्ञात होती है। कलाकृति से पूर्व विछय अकित है। विछत्र के दोनो लखनादौन मति के परिकर मे कमलासीन हाथियों के पाश्वों मे उड्डायमान अपनी पत्नियो से युक्त दो गंधर्वो नीचे मध्यस्थ प्रावृति के दोनो पोर चंवर धारी प्राकृतियाँ का चित्रण ध्यानाकर्षक है। ऐसे गपर्व न तो हनुमान उत्कीर्ण है। ये प्राकृतियां अलकारो से विभूषित है। ताल की मूर्ति मे प्रकित है पोर न नागपुर संग्रहालय मस्तक पर किरीट, कानो मे कुण्डल, भुजानो मे भजबध, की मूर्ति में ही। गधों के नीचे दोनो पोर कमलाकृतियों गले में मालाए दिखाई देती है। पर अंकित अलंकृत हाथो चित्रित किये गये है। हाथियो पर प्रायन के नीचे पीटिका के मध्य मे प्रतिमा लाउन अपनी पत्नियों महित सवार ऐसे प्रतीत होते है मानो की प्राकृति सी उत्कीर्ण है जिससे प्रतिमा महावीर की इन्द्र ऐरावत हाथी पर सवार होकर अपनी पत्नी इन्द्राणी के ज्ञात होती है। लाइन के नीचे घम चक्र प्रकित है । चक्र साथ जिनेन्द्र स्तवन के लिए पाया हो। इस प्रतिमा पर के दोनो भार स्त्री एव पुरुष की मानवाकृतियाँ है । धर्मउपलब्ध इस प्रकन से ऐसा प्रतीत होता है कि हनुमान चक्र के दोनो प्रोर अलकृत दो स्तम्भ है जिन पर प्रतिमा ताल तथा नागपुर सग्रहालय की प्रतिमानो का कुछ का ग्रासन प्राधारित दिखाई देता है। स्तम्भो के पास ऊपरी प्रा टूट गया है, मेरी ममझ में उन प्रतिमाओ में धर्म चक्र के दोनी पार मिगे का प्रदर्शन भी है जो तीर्थभी ऐसी ही प्राकृतियाँ अवश्य ही रही है। उन पर कर के सिंहासन पर बासीन होने की पुष्टि करते है। अकित मवार हीन हाथी इस बात की मार सकेत भी प्रतिमा : इस मनोहारी प्राकृति के पृष्ठ भाग में एक करते है । नागपुर की प्रतिमा मे मिलान करने पर जबल- __ कमल अल कर ण वाला प्रभामण्डल है। भगवान की केश पर हनुमान ताल की प्रतिमा का नीचे का प्रासन वाला रचना गुच्छको केम्प में निर्मित है। श्रीवत्स चिन्ह का अग भी दया हुमा ज्ञात होता है। क्योंकि नागपुर सग्रहा. अस्पष्ट संकेत मिलता है । मूर्ति के मुग्यमडल पर प्रगतलय की प्रतिमा में प्रामन पर नवग्रह प्राकृतियाँ भी मंदास्य, शाति एव विरक्ति के भाव चित्ताकर्षक है। मूर्तिगत हो गयी है। चिह्न दोनों मे नही है। नागपुर कण्ठ में प्रदर्शित तीन रेखाए मानो सकेत कर रही है कि सग्रहालय में प्रतिमा महावीर के अकन के नाम से स्थित त्रिरत्न धारण करके ही शिव रमणी को वरण किया जा है परन्तु किमी प्रमाण या लाछन के अभाव में प्रतिमा सकता है। पद्मासन मुद्रा में ध्यान निमग्न यह प्रतिमा का ऐमा नामाकन करना उचित नही है। इन दो। महाकोशल मे एक अनूठी कृति है। जा अनेकान्त के ग्राहक बनं 'भनेकान्त' पुराना ख्यातिप्राप्त शोध-पत्र है। अनक विद्वानों और समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों का अनिमत है कि वह निरन्तर प्रकाशित होता रहे । ऐसा तभी हो सकता है जब उसमें घाटा न हो और इसके लिए ग्राहक संख्या का बढ़ाना अनिवार्य है। हम विद्वानों, प्रोफेसरो विद्याथियों सेठियों, शिक्षा-संस्थानों, संस्कृत विद्यालयों, कालेजों, विश्वविद्यालयो और जैन श्रुत को प्रभावना में श्रद्धा रखने वालों से निवेदन करते है कि वे 'अनेकान्त' के ग्राहक स्वयं बने और दूसरों को बनावें । और इस तरह जैन संस्कृति के प्रचार एवं प्रसार में सहयोग प्रदान करें। व्यवस्थापक 'भनेकान्त'
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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