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शोध कण
धोनीरज जैन
अनेकान्त के गत अंक (वर्ष २४ किरण १) में बिलहरी (जिला जबलपुर म०प्र०) में ग्राम के श्री मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी के लेख "जैन बाहर स्कूल के पास एक छोटे से वीरान मन्दिर में शिल्प में बाहुबली" के अन्तिम पैरा में बाहुबलि किसी प्राचीन मन्दिर की द्वार शिला (चौखट) एवं भरत के अंकन या चित्रांकन का प्रसंग आया लगी हुई है। यह चौखट कलचुरी कालीन किसी है। इस सम्बन्ध में ज्ञातव्य है कि प्राचीन पाषाण आदिनाथ मन्दिर की है। इस पर सुन्दर और कलाकला कृतियों में दो जगह मुझे भगवान आदिनाथ पूर्ण तक्षण किया गया है। इस द्वार के ऊपरी भाग के साथ भरत और बाहुबली की प्रतिमाएँ एक ही में, ललाट बिब की तरह, तीन प्रतिमाओं का अकन शिला-फलक पर प्राप्त हुई हैं।
हुअा है। बीच में युगादिदेव भगवान आदिनाथ
विराजमान हैं। एक भोर लता बेल और ब्यालों (१)मड़ावरा (जिला झासी उ० प्र०) के बजार
से पावेष्ठित महायोगी बाहबलि का अंकन है और के मन्दिर में सिरोन से लाई गई एक प्रतिमा बीच
दूसरे किनारे पर भरत को प्रतिष्ठित किया गया है। की वेदी पर प्रतिष्ठित है जिसमें बीचोंबीच भगवान
यहां भरत को भी बाहुबलि की ही तरह अरहन्त प्रादि जिनेन्द्र विराजमान हैं तथा उनके दोनों पोर
अवस्था में ध्यानारूढ़ खड़गासन दिखाया गया है। बाहुबलि और भरत का अंकन है । भरत-बाहुबलि
उनकी पीठिका में लांछन की जगह पर चक्र अंकित दोनों ही मोक्षगामी महापुरुष थे और प्रथम तीर्थ
है जो इस बात का सहज ही ज्ञान करा देता है कि कर ग्रादिनाथ के शासन काल में ही कर्म कालिमा
ये कोई तीर्थकर नहीं है वरन आदि देव के सुपूत्र से विनिमुक्त होकर सिद्ध लोक में विराजमान हो।
और बाहुबली के भ्राता, चक्रवर्ती सम्राट् भरत गए थे। इसलिए अरहन्त अवस्था की उनको
ही हैं। प्रतिमा बनाने या पूजे जाने में कोई शास्त्रीय ।
इस प्रकार भरत बाहुबलि का अंकन पाषाण विरुद्धता नही पाती।
प्रतिमानों में भी प्राप्त हुआ है। शोध करने पर (२) कलचुरी राजाओं की कला-क्रीडास्थली संभव है अन्यत्र भी ऐसे शिल्पावशेष प्राप्त हों।
अनेकान्त वर्ष २४ किरण १ के इसी अंक में श्री वर्णन किया गया है उनके अतिरिक्त अन्य अनेक कलचुरी कस्तूरचन्द "सुमन" एम. ए. का लेख-"त्रिपुरी की कालीन जैन प्रतिमाएं वर्तमान तेवर ग्राम में व उसके पास कलचुरी कालीन जैन प्रतिमाएं"-एक सुन्दर लेख है। पास बिखरी पडी हैं। सम्बन्ध में दो तथ्य विचारणीय है।
मुनि कान्तिसागर वाले मूर्ति संग्रह में, जो सम्प्रति (१) त्रिपुरी की जिन जैन प्रतिमानों का लेख में संभवतः जबलपुर के शहीद स्मारक मे कहीं दबा पड़ा है,