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१०८, वर्ष २४, कि०३
अनेकान्त
साथ दर्शाया गया है जो पाठक को अपनी भोर प्राकर्षित थे। जैसा कि ग्रन्थ के निम्न दोहे से प्रकट है:करता है।
सौरह सौ इक्यानवे अगहन शुभ तिथिवार । इस तरह प्रत्येक चित्र भी भावपूर्ण हैं और पद्यगतभाव नप जुझार बुन्देलकृत तिनके राज मंझार ।। ३०२ को प्रस्फुटित करने वाले हैं। सभी चित्र दिगम्बर मुद्रा राजा जुझारसिंह वीर सिंहदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे। के परिचायक है । ४८ चित्र मूल रचना के है । ४६वा अपने पिता की मृत्यु के बाद राज्य के उत्तराधिकारी हुए चित्र धनराज का है जो अपने गुरु से इसका पाठ सुन रहे थे। उनकी मृत्यु सं० १६८४ मे हुई थी। उस समय हैं । एक विशाल व्यास की पीठ पर किसी मुनि का चित्र ओरछे का राज्य बहुत विस्तृत था। है और सामने पांचो बन्धु जिज्ञासा की मुद्रा मे करबद्ध पश्चात् कवि के पूर्वजन भेलसी ग्राम को छोड़कर अवस्थित है। यह चित्र श्वेत रंग का है। शेष सभी गज मलहग के पास खटोला नामक ग्राम मे वस गए चित्र रगीन है । यद्यपि भक्तामर की सचित्र प्रतियाँ और थे। वही पर कवि ने १७४ वर्ष बाद सवत १८२५ में भी मिलती हैं, परन्तु वे बाद की है । यह ग्रन्थ गोलापूर्व चैत्र शुक्ला पूर्णिमा बुधवार के दिन प्रातःकाल वर्द्धमान समाज की महत्त्वपूर्णकृति है। इसके संरक्षण का उपाय पुराण या चरित की रचना की। गोलापूर्व समाज को करना आवश्यक है। यह समाज का कवि ने प्रा० सकलकीर्ति के वर्द्धमान पुराण के अनदुर्भाग्य है कि वे अपने पूर्वजों की कृतियो का भी सरक्षण सार पद्यात्मक रचना की है। जिसमे भगवान महावीर नही कर सकते। पाशा है कि समाज ऐसी महत्त्वपूर्ण के जीवन की झाकी का चित्रण किया गया है। ग्रंथ में कृतियों के संरक्षण में सावधान होगा। इस प्रति का इस महावीर जीवन की कोई खास घटना का उल्लेख नहीं लिए महत्त्व अधिक है कि उसे अनुवाद कर्ता धनराज ने है, इस कारण उसमें कुछ नवीनता नही दिखाई देती। स्वय १६९५ मे लिखवाई थी। यह प्रति स्व. मुनि कांति हाँ, उसमे यथास्थान जैन सिद्धात का विवेचन किया सागर जी के सग्रहालय में सुरक्षित थी।
गया है । उसमे काव्यगत विशेषता है। ग्रन्थ में १६ वर्षमान पुराण-के रचयिता कवि नवलशाह हैं। अधिकार है। जिनमे महावीर के पूर्वभवो से लेकर वे भी गोलापूर्व जाति में उत्पन्न हुए थे। उनका गोत्र महावीर जीवन तक वर्णन दिया है। प्रजापति था और वैक बड चंदेरिया था। इनके पूर्वज कवि ने इस ग्रन्थ को राजा छत्रमाल के पती, हृदयपहले भेलसी ग्राम मे रहते थे जो ओरछा स्टेट में स्थित था शाह के नाती प्रौर सभासिंह के द्वितीय पुत्र हिन्दूपत' के उनमे भीषम साह प्रसिद्ध थे। उनके चार पुत्र थे-वहारन राज्य मे रचना की है जैसा कि उसके निम्न दोहे से
प्रकट है :सहोदर, ग्रहमन मोर रतनशाह । एक दिन पिता और पुत्रो
छत्रसाल पंती प्रवल नाती श्री हवयेश । ने विचार किया कि धन का सदुपयोग करने के लिए कुछ
सभासिब सुत हिन्दूपत, करहिं राज्य इहि वेश ॥३११ पार्मिक कार्य करना चाहिए। तब सुन्दर जिन मन्दिर
ईति भीति व्याप नहीं, परजा प्रति प्रानन्द । बनवाया गया और जिन मूर्ति प्रतिष्ठित की गई। और पंच कल्याणक रथोत्सव प्रतिष्ठा धूमधाम से सम्पन्न १. हृदयशाह का स्वर्गवास १७९६ मे हमा। उनके नौ हई। चार संघ को दान दिया गया । उस नगर का पुत्रो मे सभासिंह सबसे बड़ा था। सभासिंह ने सं० चौधरी लोधी था। उसने और चतुर्विध संघ ने भीषम १७६६ से १८०६ तक राज्य किया। सं० १८०९ साह को 'सिंघई' का पद प्रदान किया। यह घटना संवत् मे वह दिवगत हो गया। सभासिंह के तीन पुत्र थे, १६५१ के अगहन महीने मे घटित हुई थी। उस समय प्रभवसिंह, हिन्दूपत और खेतसिंह । सं० १८१५ में बुन्देलखण्ड मे नप जुझार का राज्य था, इनके पिता हिन्दूपत ने प्रमानसिंह को मरवा दिया और आप वीरसिंह देव बड़े पराक्रमी और सुयोग्य शासक थे। राजगद्दी पर बैठ गया। हिन्दूपत सं० १८३४ में घामोनी, झांसी मौर दतिया के किले इन्होने ही बनावाये दिबगत हुआ। इसने ६ वर्ष राज्य किया।