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शिलालेखों में गोलापूर्वान्वय
कनिष्ठ भदुचंद भा० घोमा, अरुहदास पुत्र ५......। अरुह भी जातियां थी जिनका उल्लेख पूर्व में था, बाद में विनष्ट दासः प्रणमति।
हो जाने से उनका इतिवृत्त नहीं मिलता। कितनी ही "सं० १५४१ सोमे श्री मूलसधे बलात्कारगणे सर- जातियों का उल्लेख प्रशस्तियों और मूर्तिलेखों में मिलता स्वतीगच्छे कुन्दकृन्दाचार्याम्नाये भ० पद्मनन्दी देवा, तत्पट्ट है। पर उनका कोई परिचय नहीं मिलता। ये उपजातियाँ म. शुभचन्द्रदेवा तत्पट्ट श्री जिनचन्द्रदेवा मडलाचार्य ग्राम नगरादि के नाम पर बसी है। जैसे अग्रोहा से प्रमश्री सिंहनंदि देवा तस्याम्नाये श्री गोलापूर्वान्वये चौधरी वाल, खण्डेला से खण्डेलवाल, पद्मावती से पद्मावतीपुरवीघा भा० महाश्री पुत्र चौधरी फला द्वि० पुत्र धनपा वाल, वघेरा से वघेरवाल आदि। पर अधिकांश जातियों तृ. पु० जिना चतु० पुत्र घरमसी पूला पंचपरमेष्ठी यंत्र का मूलरूप क्षत्रियत्व है, बाद में व्यापार आदि करने के कारितं ।।"
कारण ये वैश्य या वनिया एवं वणिक कहलाने लगे। "सं० १५४१ वर्षे फाल्गुणसुदि ५ मंगलदिने भ० श्री इस जाति का निकास कब और कैसे हुमा, यह अभी प्रभाचन्द्रदेव तस्स चेली वाई उदैसिरि, गोलापूर्वान्वये अज्ञात है। उपलब्ध हो जाने पर इनके सम्बन्ध में विशेष लिखितं यंत्र । सिद्ध शुभं भवतु मंगलं प्रणमति नित्यम् । जानकारी बाद में दी जा सकेगी। गोला पूर्वी का निकास (वासौदा वीचिका मदिर)
गोल्लागढ से हुआ है। गोल्लागढ़ की पूर्व दिशा में रहने सं० १६६४ वैशाख सुदी ६ गुरौ भ० ललितकीर्ति वाले गोलापूर्व कहलाये। गोल्लागढ़ के समीप रहने भ० धर्मकीर्ति उपदेशात् तस्य शिष्य प० गुनदास गोला- वाले गोलालारे और गोल्लागढ़ में सामूहिकरूप में निवास पूर्वान्वये कोठिया गोत्रे स० नेमिदास भार्या कुटरि पुत्र ४, करने वाले 'गोल सिंघारे' कहे जाते हैं। गोल्लागढ़ एक जेठा पुत्र खड्गसेन भा० मादनदे द्वि० पुत्र सं० कासोर- प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है। जो पहले ग्वालियर स्टेट में दास भा० लालमति पुत्र प्रताप भा० खेमावति तृतीय पुत्र था और अब खनियाधाना स्टेट मे अवस्थित है। यहां के सं० हरखोल भा० मायावे पुत्र मानसिंह, चतु० पु० सं० जैनियो द्वारा प्रतिष्ठित मूर्तियां अनेक स्थानों पर उपलब्ध
होती है। जगपति नित्यं प्रणमति ।
कविवर नवल शाह ने अपने वर्द्धमान पुराण मे सं० १५४१ का० सु० १४ सोमे मूलसंधे बलात्कार
'गोइलगढ़' से गोलापूर्वो की उत्पत्ति बतलाई है। किन्तु गणे सरस्वती गच्छे कुन्दकुन्दाम्नाये भ० श्री पद्मनन्दी
वह मान्यता उचित प्रतीत नहीं होती। कवि ने गोलापूर्वी शुभचन्द्र जिनचन्द्र तदाम्नाये मंडलाचार्य श्री सिंहनन्दी
के जो गोत्र बतलाए हैं, उनमे कई गोत्र ऐसे हैं जो गाँव तस्याम्नाये गोलापून्विये साह रजा भा० पदमशिरि पुत्र या नगर के नाम पर बने हैं । उदाहरण के लिए चदेरिया' साह महाराज भा० मनी पुत्र धनपाल भा० भजो पुत्र भरत पूरिया, हीरा पुरिया, कनक पुरिया, सिरसपुरिया, नरपति भा० गालसी द्वि० पुत्र रतनसी भा० प्योसिरि घमोनिया और भिलसैया। इनके अतिरिक्त मोर भी त० पुत्र जयसिंह धनपारेण यंत्र कारापितं (वासौदा बूढ़े- कई गोत्र ऐसे हो सकते हैं जो गांव या नगर के नाम से पुरा मन्दिर)।
प्रसिद्ध हुए हैं। इनके अतिरिक्त अनेक स्थानों के मन्दिर है जो गोला
इस जाति के लोगों का निवास मध्य प्रदेश में अधिक पूर्व समाज के पूर्वजों द्वारा बनवाए हुए है। इन बातों से पाया जाता है। सागर, दमोह, जबलपुर जिलों के ग्रामों इनकी समृद्धि का आभास सहज ही मिल जाता है। में भी निवास उपलब्ध है। शाहगढ़, हीरापुर, तिगोडा,
जैन समाज की ८४ उपजातियो से बुंदेलखण्ड में भंगवा, कारीटोरन, नीमटोरिया, गढ़ा कोटा सुनवाहा, तीन उपजातियां मध्य प्रान्त में निवास करती है। उनमे रूरावन, निवार, वक्स्वाहा, वमोरी, खड़ेरी छतरपुर, से यहाँ सिर्फ गोलापूर्व जाति के सम्बन्ध मे ही विचार पन्ना, कटनी, सीहोर, भोपाल प्रादि अनेक छोटे बेड़े किया जाता है। उपजातियों का इतिवृत्त १०वी शताब्दी स्थानों में इस जाति को प्रावादी पाई जाती हैं। हां, सभी से पूर्व का नहीं मिलता। इन उपजातियों में कितनी ऐसी स्थानों के मन्दिर शिखर बन्द पाये जाते हैं। पर उन