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१०४ वर्ष २४, कि० ३
पाषाण की पद्मासन है। प्रतिमा का ऊपरी है । प्रतिष्ठित कराये जाने का माता मणी और पत्नी का निम्न प्रकार है।
अनेक
भाग खण्डित उल्लेख है । सुल्हण की नाम श्री था। मूल लेख
स्वाध्याय प्रेमी सज्जन रहे हैं। वृती ब्रह्म रायमल जी को भी यहाँ रहने का अवसर मिला है। लोगों में धार्मिक लगन है यहाँ के मन्दिरों में जो मूर्तियों का परिकर है उसमें गोला पूर्व, पौरपाट (परिवार ) और गोलालारे अग्रवाल बरवाल और जैसवाल मवंग लस्कचुक यादि जातियों द्वारा प्रतिष्ठित मूर्तियों और यत्र है। कुछ मूर्तियां ऐसी भी हैं जो धन्य-धन्य स्थानों में प्रतिष्ठित हुई हैं. वे भी
२. रुक्मिण्यां जनितस्तेन सत्पुत्रः सुल्हणाभिषः ।
श्री संज्ञिका प्रियातस्य समग्रगुण पारिणी ।। [ २|| ] यहाँ विराजमान हैं। इस सब से यासौदा की महत्ता पर मुनिसुव्रतनाथस्य विवं (बिया) लोय
च्छा प्रकाश पडता है। उनमें से यहाँ गोलापूर्वी से ३. पूजितः कारितमुदात्मचियेमिय वृद्धये ।। [ ।। ३ ।। ] सम्बन्धित कुछ मूर्तिख यत्र नीचे दिये जाते है यत्रलेख :
१. गोला पूर्व कुले जातः साधु श्रीपाल संज्ञकः । तत्सुतो जनि जीवकः समय गुणभूषितः ।। [ १ । ]
संवत् १२ [२९] वैशाख सुदि २ रखी ।।
यह प्रतिमा भी काने पाषाण की कायोत्सर्गात्मक है।
जिसे गोमा पूर्व जाति में समुत्पन्न मंवत्सल स्वयं के दो पुत्र थे, स्वामी और वैवस्वामी देव स्वामी के दो । पुत्र 'थे, शुभचन्द्र और उदयचन्द देवस्वामी और उसके दोनों पुत्रों ने शान्तिनाथ को प्रतिष्ठा कराई। यह लेख [सं०] १२०३ का चंदेलवंशी राजा मदनदेव के राज्य
।
काल का है। लेल की तीसरी पक्ति में दुम्बर प्रत्वय के साहू जिनचन्द्र के पुत्र हरिश्चन्द्र और हरिश्चन्द्र के पुत्र लक्ष्मीधर शातिनाथ को सदा प्रणाम करते हैं ।
३- १ - सिद्ध गोला पूर्वान्वये साधुः स्वयंभू घर्मयसस तत्सुनो स्वामिनामा च देवस्वामिगुणान्वितः ॥ [[१]] देवस्वामि
२. सुतो श्रेष्ठी सु (शु) भचन्द्रोदय चन्द्रकः ( को ) । कारितं च जगन्नाथ शान्तिनायो जिनोत्तमः ॥ [ ||२|| धम्मसि (शेप १४ |
]
३. तथा दुम्बरान्वये साधु जिनचन्द्र तत्पुत्र हरिश्च] [न्द्र ] तत्सुत लक्ष्मीधर श्री सा (शा) न्तिनाथं प्रणमति ४. लक्ष्मीघरस्य धर्म्मसधिज श्री मदनवर्म्मदेव राज्ये सं० १२०३ फ:० सुदि ६ सोमे ।
गंज बासौदा मध्य प्रदेश के विदिशा (भेलसा) जिले की एक तहसील है। जो मध्य रेलवे के बीना-भोपाल सेक्सन पर स्थित है। यहाँ व्यापार की अच्छी मण्डी है। यह नगर १४वी से १६वी शताब्दी तक खूब सम्पन्न रहा है। यहाँ जैनियों का प्रच्छा प्रभाव रहा है । यहाँ ५-७ मन्दिर माघारण भण्डार है यहां अनेक विद्वान घोर
'० १३१६ जेठ वदी १ पंचमी सोमवार को गोलपूर्व गोत्र (जाति) के पति काल्हासाह और उनकी पत्नी पौडलनी के पुत्र पी० चारुलिया और संघवी नोटा भार्या बाल्ने पुत्र गंगा पुत्री भान्ती नित्य ही प्रणाम करते हैं। यह लेख इस जाति के महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि यह विक्रम की १४वीं शताब्दी के प्रारम्भ का है, उस समय भी गंज बासोदा की स्वाति थी। इस शताब्दी की और भी अनेक
मूर्तियाँ होनी चाहिए, जिसके लिए मूर्ति लेखों का संकलन होना बहुत जरूरी है। बाकी लेख १६वीं १०वीं शताब्दी
के हैं।
" सं० १३१६ जेठ वदी ५ सोमे गोला पूर्व गोत्रे पं० काल्हा साह भाय गीतवती पुत्र मो० चाकलिया सं० लोटा भार्या बालदे पुत्र गंगा पुत्री भान्ति नित्यं प्रण
मति ।"
" संघ १५१५ फागुन सुदी ६ रवी श्रीमूलसंघ भट्टारक देवास्तदाम्नाये गोसापूर्व नीरा..."
जिन
" सं० १५२४ चैत्रवदी १ शुक्रे भ० श्रीसिंहको ति ताम्नाये गोला पूर्वान्वये साह लजेडा भार्या द्योसिरि पुत्र पटवारी चांदन भ्रातासाखामा पटवारी भादे तस्य भार्या साध्वी दिउला पुत्रसाह नेनसी पुत्र कोरसी सा० लाहा भार्या साध्वी घनसिरि प्रणमति ॥
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यंत्रनेव सं०] १५३७ फागुन सुदी १३ मूल भ० पद्मनन्दी भ० शुभचन्द्र भ० जिनचन्द्र तदाम्नाये मडलाचार्य श्री हिमन्दी तथाम्नाये गोला पूर्वाम्नाये सा० पसा भा० रजा तस्या: कुक्षी समुत्पन्ने पुष महासः भा० घोसा