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शिललालेखों में गोलापूर्वान्वय
वार और पराक्रमी राजा था। इसने गुजरात प्रान्त के लेख पाया जाता है, जो गोलापूर्व जाति के लिए बड़े राजा को युद्ध में पराजित किया था। मदनवर्मा ने 'मदन- महत्व का है। लेख सं० ११६६ का है। पूरा लेख पढ़ा पुर' सन् १०५५ वि० सं० १२११ मे बसाया था। वहाँ नही जा सका, पर जितना पढ़ा गया है वह इस प्रकार उसी समय का बड़ा जैन मन्दिर (सन् १०५५ वि० सं० है:१२११ का) बना हुमा है। यह मन्दिर शान्तिनाथ के
१६९ चैत सूदि १३ सोमे गोलापून्विये मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें भगवान शान्तिनाथ साध सिद्ध तस्य पत्रः श्रीपाल भार्या लल्ली तयो पुत्राः की साढ़े पाठ फीट ऊंची एक विशाल खड्गासन मनोग्य
श्रीचन्द्र... सुतरणमल्लः तयोः भार्या......। प्रतिमा विराजमान है, जिसकी चमकदार पालिश भाज मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले मे नोगांव से ५ मील भी प्राचीनता का उद्घोष कर रही है । मदनपुर में तीन की दूरी पर स्थित राज्य संग्रहालय धुवेला मे तीथंकरों ही जैन मन्दिर और तीन ही वैष्णव मन्दिर है। मदनवर्मा की अनेक महत्वपूर्ण पाषाण प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं। उनमें के राज्यकाल में अनेक जैन मन्दिर और मूर्तियों का से यहाँ तीन मतियों (नेमिनाथ, मुनिसुव्रनाथ मोर शान्ति निर्माण हुआ । जैनधर्म पर उनकी महती कृपा रही है। नाथ प्रतिमा) के प्रतिमा लेख क्रमशः नीचे दिए जाते हैं।
छतरपुर के पचायती मन्दिर में साढे चार फुट की १ गोल्लापूर्वकुलेजातः साधुवाले] [गुणान्वितः :प्रवगाहनावाली भगवान नेमिनाथ को कृष्ण पाषाण की तस्य देवकरो पुत्र: पद्मावतीप्रिया प्रियः । [१] तयोर्जातो पद्मासन प्रशान्त मूति सवत् १२०५ माघ शुक्ला पंचमी सुतो सि (शि)की प्रतिष्ठित है, जो उक्त मदनवा के राज्य में प्रतिष्ठित २ स्तो(ष्टौ) सी (शी)ल व्रत विभूषितो। [२॥] हुई है । इसी तरह पाहार क्षेत्र मे समुपलब्ध अनेक मूर्तियां मल्हणस्य व [परासाल्प] त्यसा
___ मल्हणस्य व [घरासील्प) त्यसी (श)ला पतिव्रता । उक्त राजा के राज्य काल की-(स० १२०२, १२०३,
धेष्ठि वीवी तनूजा च प्रबुद्धा बि (वि) नयान्विता [॥३॥] १२०३, १२०३, १२०३, १२०६, १२१३ पोर १२१८
लष्म (क्ष्म) णाद्यास्तया जाताः पुत्राः गुण [गणान्विता:] की प्रतिष्ठित पाई जाती हैं। इन सब उल्लेखों से स्पष्ट
३ ......''ढ्या जिनचरणाराषनोद्यता: ॥[४]] है कि उक्त राजा के राज्यकाल मे गोलापूर्व समाज द्वारा
कारितश्च जगन्नाथ [नेमि] नाथो भवांतकः । * अनेक धार्मिक कार्य सम्पन्न हुए हैं। जिन सबको संकलित
[लोक्यश] रणं देवो जगन्मंगलकारकः। [५] सम्वतु कर एक अच्छी पुस्तक लिखी जा सकती है। इनके अतिरिक्त
(त) ११६९ वैशाम्ब सुदि रवी रो[हिण्याम् । प्रहार में सवत् १२३७, १२३७, १२८८, १५२४, १७२०
यह लेख कृष्ण पाषाण की मस्तक विहीन नेमिनाथ पौर १८६१ की प्रतिष्ठित मूर्तियां भी उपलब्ध है।
प्रतिमा के पाद पीठ पर स्थित है । जिसमें उसकी प्रतिष्ठा
कराने वाले के परिवार का परिचय प्रकित है। इस लेख झांसी जिले के ललितपुर के पास जतारा नाम का
का उद्देश्य गोलापूर्व कुल के साधू वाले के पुत्र देवकर के एक गांव है, जो किमी समय अच्छा सम्पन्न कस्बा रहा
पुत्र मल्हण के द्वारा वि० स० ११६६ मे वैशाख सुदि है, पर वहां अब जैनियों के घर अल्प है और वे माथिक
द्वितीया रविवार के दिन भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा दृष्टि से पिछड़े हुए हैं। यहाँ के मन्दिर मे सब प्रतिमाएं
प्रतिष्ठित की गई। देवकर के दो पुत्र थे मल्हण पौर दीवाल के सहारे विराजमान हैं। १५ प्रतिमा पपासन
जल्हण । सेठ वीवी मल्हण के ससुर थे । मल्हण के तीन पौर १६ खड्गासन हैं जो भोयरे में (तलघर मे) प्रब
पुत्र थे जिनमें लक्ष्मण सबमें ज्येष्ठ था। स्थित है । मन्दिर में अनेक सुन्दर व कलात्मक मूर्तियाँ
दूसरा लेख भी उक्त सं० ११६६ वैशाख सुदि २ पाई जाती है। भोयरे की एक खंडित मूर्ति पर निम्न ।
न रविवार का है, जिसमे बतलाया है कि गोलापूर्व कुल मे ४. देखो, मध्य भारत का जैन पुरातत्व नाम का मेरा समुत्पन्न श्रीपाल के पुत्र जीव्हक के पुत्र सुल्हण द्वारा " लेख, मने का छोटेलाल जैन विशेषांक १०६३। २०वें तीर्थकर मुनि सुव्रतनाथ की प्रतिमा की जो काले