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शिलालेखों में गोलापूर्वान्वय
परमानन्द जैन शास्त्री
भारतीय इतिहास में शिलालेखों, ताम्रपत्रों, मूर्ति- का पुत्र था। इसने विक्रम संवत् ११७२ से १२०८ तक लेखों, प्रशस्तियो भोर दानपत्रों आदि का महत्वपूर्ण राज्य किया है । इसके राज्यकाल में इसका पुत्र नरसिंहस्थान है । इनमें उल्लिखित इतिवृत्तों से अनेक उपजातियों देव युवराज था । गयाकर्ण का विवाह मालवा के राजा विद्वानों और राजानों प्रादि के सम्बन्ध में जानकारी उदयादित्य की नातिन अलहन देवी से हुआ था । जो प्राप्त होती है। अग्रवाल, खण्डेलवाल, और पौरपट्ट मेवाड़ के गुहिलवंशी राजा विजयसिंह की कन्या थी । ( परवार) प्रादि समाजों के उल्लेखों की तरह गोला पूर्व' इसी के राज्यकाल में उक्त मन्दिर मोर मूर्ति का निर्माण समाज के भी अनेक महत्वपूर्ण लेख उपलब्ध होते हैं । किया गया था। जिनमें उक्त जाति के विविध वंशों के गृहस्थो और विद्वानों के नाम मिलते है। जिनसे पता चलता है कि समाज में १२वी शताब्दी से २०वी शताब्दी तक के लोग धर्म कार्य मे निरत रहते थे-अपने यथेष्ट कर्तव्य का जीवन व्यतीत करते थे । उदाहरण के पालन करते हुए लिए मध्य प्रदेश जबलपुर नगर के पास 'बहुरीवंद' मे १२वी शताब्दी के पूर्वार्ध का लेख शान्तिनाथ की मूर्ति के नीचे दिया हुआ है । उसमें बतलाया है कि – 'वेल्ल प्रभाटिका गाँव मे गोल्लापूर्व जाति का महाभोज नाम का श्रावक था, जो माधवनन्दि के शिष्य सर्वधर का पुत्र था। उसने शान्तिनाथ का एक सुन्दर मन्दिर बनवाया। इस मन्दिर की प्रतिष्ठा चन्द्रकराचार्याम्नाय देशीगण के प्राचार्य सुभद्र के द्वारा हुई थी। गयाकर्णदेव यशःकर्ण
१. स्वस्ति वदि ६ भौमे श्रीमद्गयाकणं देव विजयराज्ये राष्ट्रकूटकुलोद्भवमहासामन्ताधिपतिश्रीमद् गोल्हणदेवस्य प्रवर्द्धमानस्य । श्रीमद् गोलापूर्वाम्नाये वेल्ल प्रभाटिकामुरुकृताम्नाये तर्कतार्किक चूडामणि श्री मद्मघवनन्दिनानुगृहीतस्साधु श्री सर्वधरः तस्य पुत्र: महाभोज: धर्मनानाध्ययन रतः । तेनेद कारित रम्य शांतिनाथस्य मदिरं । स्वलात्यमसंज्जक सूत्रघारः श्रेष्ठि नामा वितानं च महाश्वेत निर्मितमतिसुंदरं ॥ श्रीमचद्रकराचार्याम्नाय देशीगणान्वये समस्त विद्याविनयानंदित विद्वज्जनाः प्रतिष्ठाचार्य श्रीमत्सुभद्राश्चिरं जयंतु ॥
(इन्क्रिप्शन्स ग्राफ दि कलचुरि चेदि ।। पृ. ३०९ )
महोवा, खजुराहा, छतरपुर, पपौरा, मदनेशपुर (महार) नावई, जखौरा, धुलेवा आदि स्थानों के १२वी १३वी शताब्दी के प्रचुर मूर्तिलेख पाये जाते हैं, जिनमे गोला पूर्व समाज के विभिन्न वंशों एवं गोत्रों के गृहस्थों के नामों का उल्लेख मिलता है और उनके द्वारा निर्मित मन्दिरों और मूर्तियों के उल्लेख पाये जाते है । जो इस उपजाति की प्रतिष्ठा एवं धार्मिक भक्ति के द्योतक है ।
पपौरा के संवत् १२०२ के दोनों मूर्तिलेख चन्देलवंशी राजा मदनवर्मदेव के राज्य समय के है ।
महोबा के नेमिनाथ मन्दिर मे भी मदन वर्मा के समय का सवत् १२११ का एक लेख है' । और खजुराहो के जैन मन्दिर के स० १२१५ के एक लेख मे भी मदनवर्मा का नाम श्रकित है। इसका राज्य बहुत दिनों तक रहा है। इसके राज्य के लेख संवत् १९८६ से १२२० तक के उपलब्ध है। महोबा के पास 'मदन सागर' नाम का जो तालाब है, वह इसी ने बनवाया था। यह बड़ा
२. 'संवत् १२०२ प्राषाढ़ वदी १० बुधे श्री मदनवर्म देवराज्ये भोपालनगरवासी गोलापूर्वान्वये साहु टुडा सुत साहु गोपाल तस्य भार्या माहिणी सुत सान्तु प्रणमति नित्यं जिनेशचरणारविंदं पुण्य प्रतिष्ठाम्' । ३. श्री मदनवमं देवराज्ये सं० १२११ श्राषाढ़ सुदी ३ शनीदेव श्री नेमिनाथ, रूपकार लक्ष्मण । See Canningham Report XXI पृष्ठ ७३ ए.