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________________ १७०, २४,कि.३ प्रतेकान्त मामक स्थल से प्राप्त किया गया था, संप्रति केन्द्रीय राणकपुर की सरस्वती मति संग्रहालय, नागपुर की निधि है । मध्यप्रदेश से प्राप्त होने द्विभुज सरस्वती का एक अन्य उदाहरण जोधपुर वाली इस प्रतिमा मे ललितासन मुद्रा में कमल पर राज्य के राणकपुर नामक स्थल के चतुर्मुख मन्दिर से मासीन देवी की वाम भजा में पुस्तक व दाहिनी में एक प्राप्त होता है।" विभंग मुद्रा में खड़ी सरस्वती को दोनों प्राप्त होता है."fain म. संक्षिप्त दण्ड, संभवतः लेखनी प्रदर्शित है। अलकरण हाथों से वीणावादन करते हए चित्रित किया गया है मोर विहीन यह मति निमिनी की दृष्टि से उत्कृष्ट है। देवी देवी के दाहिने चरण समीप उत्कीर्ण रस पाकति के शीर्ष भाग में पद्मासीन तीर्थकर की प्राकृति उत्कीर्ण वीणावाट वीणावादन से उत्पन्न संगीतमय वातावरण में लीन प्रतीत है, जो विछत्र मशोक की पत्तियों और दुन्दुभि से मलंकृत। 1 होता है। इसी स्थल से प्राप्त होने वाली चतुमुंज प्रतिमा में उसके निचले हाथों में प्रभय मुद्रा भोर कमण्डलु प्रकबीकानेर संग्रहालय की सरस्वती मति शित है और ऊपरी दो भुजामों में प्रक्षमाला ब वीणा एक अन्य मनोज्ञ और विशाल चित्रण व बीकानेर के चित्रित है।" एक अन्य मति में हंस पर प्रारूद सरस्वती पल्लु' नामक स्थल से प्राप्त होता है और सप्रति बीकानेर प्राकृति को दो ऊपरी हाथ में वीणा और पुस्तक पौर संग्रहालय में संगृहीत है। ११वी शती मे तिध्याकित श्वेत निचले दोनों हाथों में अक्षमाला व कमण्डलु से युक्त मकरान के संगमरमर मे उत्कीर्ण इस चतुर्भज प्रतिमा चित्रित किया गया है। सरस्वती को हंस पर माकड (५६।४३७॥) मे देवी के शीर्ष भाग में कई प्राकृतियां चित्रित करना इस प्रतिमा की अपनी विशेषता है। एक उत्कीर्ण है, जिन सबके ऊपर तीर्थकर प्राकृति का चित्रण अन्य चित्रण प्रचलगढ़ से उपलब्ध होता है, जिसमें देवी हमा है । देवी के हाथों में सनाल कमल, पूस्तक, प्रक्ष- की भुजाओं में प्रदर्शित प्रतीकों के क्रम मे कुछ अन्तर को माला (वरदमुद्रा और प्रक्षमाला) और कमण्डल प्रदर्शित छोड़कर शेष बातो में यह प्रकन उपयुक्त प्रतिमानों के हैं । इसी प्रकार का एक अन्य चित्रण दिगम्बर मंदिर से समान है। भी उपलब्ध होता है, जिसमें सरस्वती के निचले दाहिने बम्बई संग्रहालय को सरस्वती भूतियाँ हाथ से घरदमुद्रा प्रदर्शित है । तारग के अजितनाथ मदिर की उत्तरी और पश्चिमी भित्तियो पर भी मिलती जुलती सरस्वती मूर्ति के दो अन्य उदाहरण भारतीय ऐति. भाकृतियां उत्कीर्ण है। जोधपुर स्थित सेवनोदी नामक हासिक शोध संस्थान बम्बई (st.Xavier's College) के स्थल से भी दो ऐसी प्रतिमाये प्राप्त होती है, जो काफी संग्रहालय मे स्थित है।" पहली पीतल की मूर्ति (६." खण्डित है। विमल-वशही मन्दिर के स्तम्भ पर उत्कीर्ण ऊंची) में चतुर्भुज देवी को ललितासन मुद्रा में पासीन एक अन्य चित्रण में देवी की निचली दाहिनी भुजा, जो प्रदशित । को प्रदर्शित किया गया है। गुजरात से प्राप्त होने वाले इस सप्रतिभग्न है, में संभवतः कमण्डलु चित्रित था।" इसके अंकन में सरस्वती का वाहन हंस, देवी की बांयी गोदके अतिरिक्त अन्य विशेषताएं पूर्ववत है। समक्ष उत्कीर्ण है। ११वीं शती में तिव्याकित इस चित्रण में देवी की भुजामों में प्रक्षमाला, कमण्डल, पुस्तक पौर ७. Srivastava, V. S., Catalogue and Guide एक विशिष्ट वस्तु (ladle) उत्कीर्ण है। देवी के दोनों to Ganga Golden Jubilee Museum, Bika. ner, Bombay, 1961, P. 13. ११. Shah, U.P., Iconography of Sarasvati, 5. Shah, U.P., Iconography of Sarasvati, JUB, Vol. x, p. 199-200. JUB, Vol. x, p. 208. १२. Shah, U.P., ibid, p. 209. ६. Loc. Cit. १३. Sankalia, H.D., Jaina Iconography, New १०. Loc. Cit. Indian Antiquary, Vol. II, 1939-40. p. 510
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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