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बन शिल्प में सरस्वती की पूतियां
सरस्वती की दायी भुजा में कमल पौर बांयी लटकी विशिष्टि परिषानों से युक्त है। दाहिने भाग में दो सेवक भुजा में पुस्तक उत्कीर्ण है। देवी पूर्ण विकसित कमलासन माकृतियां उत्कीर्ण हैं जिनमें से एक के बायें हाथ में एक पर खड़ी है, जिनके दोनों पोर एक मगल कलश स्थित दण्ड प्रदर्शित है जिसे उसने द्वारपाल की तरह पकड़ रखा है। यह मूर्ति मथुरा के कुषाण युगीन उदाहरण में प्राप्त है और दूसरी तुन्दीली बौनी माकृति की दाहिनी भुजा होने वाली विशेषतामों का निर्वाह करती हुई प्रतीत होती में पाम्र फल चित्रित है । वाम पावं में पुनः एक लम्बो. है। किन्तु कुषाण कालीन प्रतिमा के विपरीत यह चित्रण दर ठिगनी प्राकृति उत्कीर्ण है, जो सिंह पर मासीन है। सरस्वती को खड़ा प्रदर्शित करता है। मकरमुख मोर बड़ौदा संग्रहालय की सरस्वती मूर्तियाँ सूर्यवृत्ति से अलंकृत मुकुट देवी के मस्तक पर स्थित है। बड़ोदा संग्रहालय में स्थित एक छोटी चतुर्भुज पृष्ठभाग में विशिष्ट प्रभामण्डल से युक्त देवी प्रीवा में सरस्वती प्रतिमा को त्रिमंग मुद्रा मे कमल पर खड़ा प्रददो हारों, एकावलि मादि अलंकरणों से सुसज्जित है। शित किया गया। इसकी ऊर्ध्व दाहिनी भुजा में वीणा डॉ. यू. पी. शाह शैली पौर प्रतिमा शास्त्रीय विवरणों मोर ऊवं वाम भुजा में पुस्तक चित्रित है । वरद मुद्रा के अाधार पर इस मूर्ति को सातवीं शती ईसवी के बाद प्रदर्शित करता वाम हस्त प्रक्षमाला धारण किये है. और तिथ्यांकित करना उचित नही समझते हैं ।
दाहिनी भुजा में एक घट अंकित है। समीप ही वामपावं ब्रिटिश संग्रहालय को सरस्वती मूर्तियाँ
में उसके वाहन हंस को मूर्तिगत किया गया है। मुकुट सरस्वती की दो मनोज्ञ प्रतिमाएं संप्रति ब्रिटिश
पौर निचले वस्त्रों से युक्त सरस्वती के दोनों मोर चांवर. संग्रहालय में है।' ग्यारहवी या बारहवीं शती में प्रति.
पारी स्त्री प्राकृतियां अंकित है। देवी के दोनों पाश्वों में ष्ठित विभग मुद्रा मे खड़ी एक मूर्ति (२६"X१४") उत्कीर्ण रथिकानों में चार-चार स्त्री प्राकृतियां उत्कीर्ण
बज० संग्रहालय (न०८४) से सम्बन्धित ह। हैं, जिनमें से दो के अतिरिक्त सभी खड़ी हैं। देवी के सम्भवतः राजपूताना से प्राप्त होने वाली इस चतुर्भुज
मुकुट के ऊपर भी एक स्त्री प्राकृति उत्कीर्ण है। मूर्ति में दोनों दाहिने हाथ खण्डित है। ऊर्ध्व वाम हस्त
इस प्रकार मुख्य प्रतिमा को जोड़कर १० देवियों का में मनिकों की माला और विचली बांयी भुजा में पुस्तक
चित्रण करने वाले इस प्रकन के संबंध में डा.यू. पी. उत्कीर्ण है । इस भव्य और जीवन्त अंकन मे पृष्ठ भाग
शाह की धारणा है कि ये सभी भाकृतियां स्वयं सरस्वती में ऊपर की पोर पाच तीर्थकर प्राकृतियों को मूर्तिगत
के ही विभिन्न स्वरूपों का अंकन है, जैसा कि ग्रंथों के किया गया है। दोनों पाश्वों में उत्कीर्ण सेवक प्राकृतियों उल्लेखों और दो प्राकृतियों की भुजामों में स्थित वीणा के नीचे पालथी मारे दो उपासक प्राकृतियों को चित्रित होता हलवा चित्रित से भी पुष्ट होता है। दिलवाड़ा के विमल-वशही मदिर
विमा किया गया है जो मूर्ति के दानकर्तामों की प्राकृतियों और जैन चित्रों में प्राप्त सरस्वती प्रकन से तुलनात्मक प्रतीत होती हैं।
अध्ययन के उपरांत डा. शाह ने इसे ११५० से १२२५ दूसरी प्रादमकद मनोज्ञ प्रतिमा (५१"x२०")
ईसवी के मध्य तिघ्यांकित किया है। में उत्कीर्ण लेख वाग्देवी के इस चित्रण को परमार शासक
नागपुर संग्रहालय की तीथंकर मूति: भोज के शासन काल में प्रतिष्ठित बतलाया है। भूरे रंग सरस्वती की एक अन्य विशिष्ट अभिलिखित मति के प्रस्तर मे उत्कीर्ण इस प्रकन के लेख के माधार पर (enx४) जिसे अकोला जिले के रज्जपुर खिनखिनी' इसे १०३४ ई० मे तिथ्यांकित किया गया है। कंगन,
५. Shah, U. P., Jain Sulptures in the Baroda पायजेब और कटि प्रदेश में अलंकरणो से सुसज्जित देवी।
Museum, Bull. Baroda Mus., Vol. I, Pt.
II, Feb. to July 1944, p.28. ४. Chanda, Ramaprasad, Medieval Indian
६. Jain, Balchandra, Jaina Bronzes from Sulpture in the British Museum, London
Rajnapur Khinkhini, Jour. Indian Muse1936, p.45.
ums, Vol. XI, 1955, 0.17.