________________
प्रोम् प्रहम्
अनेकान्त
परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोषमपनं नमाम्यनेकान्तम् ॥
।
वर्ष २४ किरण ३
वीर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६ वीर निर्वाण संवत् २४६७, वि० सं० २०२७
१
जुलाई-अगस्त
१९७१
शान्तिनाथ जिनस्तवन जयति जगदीशाः शान्तिनाथो यदीयं, स्मतमपि हि जनानां पाप-तापोप-शान्त्यै । विविधकुलकिरीटप्रस्फुरन्नीलरत्नधुति चल मधुपाली चुम्बितं पादपद्मम् ॥५॥
-मुनि पचनन्दि
शांति जिनेश जयो जगतेश, हर प्रताप निशेश को नाई। सेवत पाय सुरासुरराय, नमैं सिरनाय मही तल ताई। मौलि लगे मनिनोल दि, प्रभु के चरणों झलके वह झाई।
संघन पाय-सरोज-सुगन्धि, किधो चलिये अलिकति पाई॥ प्रर्ष-देव समूह के मुकुटों में प्रकाशमान नील रत्नों की कान्तिरूपी चंचल भ्रमरों की पंक्ति सेस्सशित जिन शान्तिनाथ जिनेन्द्र के चरणकमल स्मरण करने मात्र से ही लोगों के पापल्प सन्ताप दूर करते हैं:वे.लोक के अधिनायक भगवान शान्तिनाथ जिनेन्द्र जयवन्त होवें ।।५।।