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८८, वर्ष २३ कि०२
अनेकान्त
मौर था। (तत्पुत्रो निज नाम पालि [लि]त मही- फुटनोट :पाल:...") "डेसा" गाँव की बाबड़ी के वि० स० १५२० १. जरनल बम्बई ब्रांच रायल एशियाटिक सोसाइटी के लेख में कर्मसिंह के पुत्र जयसल का उल्लेख है । इस भाग XXII पृ० १६६ प्रकार वंशावली इस प्रकार होना चाहिए :
२. इडियन एंटिक्वेरी vol ३६ पृ० १६१ कर्मसिह
३. पीटरसन्--भावनगर इन्स्क्रि० पृ०७४ से ७७ ४. इंडियन एंटिक्वेरी vol XVI पृ० ३४७-५१ ५. प्रोझा-उदयपुर राज्य का इतिहास पृ० १०२-१०४
६. कुंभलगढ़ प्रशस्ति श्लोक सं० १३६ महीपाल जयमल कन्हडदे
७. डी०सी०सरकार-गुहिलोत्स आफ किष्किन्धा पृ.४८ तेजा- मुक्तादे पाता (१४५६ ८. अोझा डूगरपुर राज्य का इतिहास
| से १४६८
६. डा० दशरथ शर्मा-राजस्थान थ दी एजज
वि०) बीका (१५२० वि.) गपाल (१४८६
१०. अरली हिस्ट्री प्राफ मेवाड पृ०--
से १४०४ वि.) ११. इन लेखोके लिए "बागडमे गुहिल राज्यको स्थापना" इसके बाद श्लोक सं० २१ से काष्ठा सघ के नन्दि
नामक मेरा लेख जो वरदा म एव ऐतिहासिक शोवतटगच्छ के प्राचार्यों का उल्लेख है। गोपसेन नामक एक
सग्रह नामक पुस्तक मे प्रकाशित हुआ है दृष्टव्य है। प्राचार्य से वंशावली दी गई है। इममे दिये गये साधनों १२. ..."गुहिलवशे रा० जयसिह । पुत्र सीहड पौत्र के नाम इस प्रकार है -गर्गसन, नागसेन गोपसेन. जयतस्येव देवेन..." (अप्रकाशित लेख) रामसेन, यश.कीर्ति, कनकसेन, शभङ्करसेन, अनन्तकीति, १३. "वशावली मे" सामंतसी रा० जीतसी रा० सीहड मारसेन, केशवसेन, देवकीर्ति, नयकीति, राजकीति, पद्म- दे" दिया गया है। सेन, भाव सेन एव रत्नकीर्ति। यह वर्णन इलोक मं० २८ १४. साममिहास्य विविजोन्ये (जे) १५३) सजि (जी) तक चलता है। एक श्लोक स०६६ मे श्रेष्ठिवश का
तासिंह तनयं प्रपेदे य एव लोक सकल वियज्ञ "तस्य वर्णन दिया गया है। यह नरसिंहपुग जाति का था।
सिंहल देवोभूत ..." शाति विशाला विमला प्रसिद्धा सप्ताधिके विशंतिभिश्च
१५. जैसिहो जिगायेला सीहडेनाखिलामही । गोत्रः। श्रीनारसिंहोजिनधर्म निष्ठापुण्योगरिष्टा विहिता
राजन्वती वभूवाल सालङ्काराङ्गनेव या ।।१२।।
(ऊपर गाँव का लेख) प्रतिष्ठा" प्रादि वणित है। यह वर्णन श्लोक स० ३८
१६. उपरोक्त श्लोक स०१३ तक चलता है। जो श्रृष्टि भाहड वश का वर्णन है।
१७. यः श्रीजैसलकार्यभवदुत्थूणकरणागणे प्रहरन् । सवत इस प्रकार है "सवत् १४६१ वर्षे पैशाख सुदि
पचलगुडिकन सम प्रकटवलो जैत्रमल्लेन ॥२८॥ ५ पचभ्याम् शुक्रवारे राउल प्रतापसिंह विजयगज्ये ऊपर
(चीरवे का लेख) गाम नाम्नि ग्रामे श्रीकाष्ठासघे नंदीतट गच्छे श्री रत्न- १८. "ग्रह तेरसयछप्पन्नविक्कमवरिसे अल्लावदीण सुरकीतिस्थादेशान् नारसिंह जातोय खरनहरगोत्रे..."अादि । ताणस्स कणिट्ठो भाया खलू खान नामधिज्जो दिल्ली
महारावल गपाल के समय जैनधर्म की अभूतपूर्व पुगयो मंतिमाहब पेरिवो गुज्ज रघर पट्ठियो ।-तो उन्नति हुई। कई प्रथ लिखे गये थे। उस समय यहाँ
हमीरजुब राम्रो बग्गडदुस मुहडासयाई नयराणि य हुबडवशी थेष्ठियो ने विष्णु की मूर्तियाँ भी बनवाई थी
भजिप प्रासावल्लीए पत्ती"(विविधतीर्थकल्प) पृ.६५ जो धार्मिक सहिष्णुता की प्रतीक है। इनके शिलालेख मै १६. महारावल लक्ष्मणसिंह के गजत्वकाल के रजतजयती अलग से प्रकाशित कर रहा हूँ। इस प्रकार यह प्रशस्ति प्रक मे श्री अगरचन्द नाहटा का लेख । महत्वपूर्ण है।
२०. ऊपर गाँव की प्रशस्ति श्लोक सख्मा १८