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की गोवर्द्धन नाथ मंदिर की प्रशस्ति में सीहड़ के पिता जयसिंह को उक्त सामंतसिंह का पुत्र बतलाया गया है।" वस्तुत सामंतसिंह का राज्य केवल वि०सं० १२३६ के आसपास ही था । उसके बाद मेवाड़ मे उसका छोटा भाई कुमारसिंह राजा बना था एवं वागढ़ मे अमृतपाल आदि । श्रतएव सामन्तसिंह के उत्तराधिकारियों के बागड में शासक होने के सम्बन्ध मे कोई निश्चित सूचना नही है । ऊपर गांव का यह लेख सबने प्रथम ज्ञात लेख है जिसमें स्पष्ट रूप से सीहड़ को मेवाड के शासक जंग सिंह का वंशज लिखा गया है ।" कुभलगढ प्रशस्ति से भी स्पष्ट है कि सिंह का अधिकार बागड पर था। वस्तुतः गुजरात के शासक भीमदेव चालुक्य II को मेवाड़ और बाग से निष्कासित करने में इसने महत्वपूर्ण योग दान दिया था । श्रोझाजी द्वारा दी गई वशावली मे ऊपर की उक्त सूचना के आधार पर वशावली मे निम्नाकित संशोधन किया जाना आवश्यक है :
सीहड (१२७७ से १२९१ वि०)
ऊपर गांव का अप्रकाशित जंन लेख
जयसिह (मेवाड़ का दासकवि०स० १२७० से १२०० वि०)
तेजसिह (१३०७ से १३२४)
पृथ्वीदेव (लमनोर का विसं० १२०७ का शिलालेख)
इस ऊपर गाँव के लेस में सीहड़ के उत्तराधिकारी का नाम जैसल दिया गया है। श्रोभाजी के दूगरपुर राज्य के इतिहास में इस राजा का नाम "विजयसिह" माना है। इनका लिखना है कि यद्यपि झाड़ोल के लेख में राजा का नाम जयसिंह ही पढ़ा जाता है किन्तु मन्दिर का नाम "विजयनाथ"। अतएव ऐसा प्रतीत होता है कि राजा के नाम के साथ "वि" अक्षर छूट गया है किन्तु यह केवल कल्पना ही है । मुझे मूल शिलालेख की छाप देखने को भी मिली यो जिसमे "वयजनाथ" शब्द पढ़ा जाता है जिसका अर्थ वैद्यनाथ होता है। वि० सं० १३०८ के भाटोल के लेख मे भी राजा का नाम "जयसिंह" दिया गया है। ऊपर गांव की प्रस्तुत" प्रशस्ति में इसे
है
ही जैसल लिखा है अतएव यह नाम ही सही प्रतीत होता इसकी पुष्टि चीरवा गांव की वि० सं० १३३० की प्रशस्ति से भी होती है। इस लेख मे उल्लेखित है कि समारक्ष मदन ने घणा के युद्ध में जंसल के लिए जंगमल्ल से युद्ध किया। उस समय घावागढ के शासक जैसल के अधिकार में ही था । श्रोभाजी ने इस लेख के जंसल को मेवाड के राजा जंत्रसिंह से सम्बन्धित माना है जो पूर्णरूप से गलत है। इस प्रकार ऊपर गाव की प्रशस्ति की यह सूचना महत्वपूर्ण है ।
श्लोक स० १६ और १७ मे बागड़ पर प्रबल शत्रुओं के आक्रमण का उल्लेख है । यह काल डूंगर सिंह और कर्म सिंह नामक राजाओ से सम्बन्धित है। इन राजाओं के शासन काल का शिलालेख नही मिला है । केवल वि० सं० १४५३ का एक शिलालेख अजमेर संग्रहालय मे है जो "हंसा" गांव की बावड़ी का है जिसमे वर्णित है है कि गुहलोत वंशी राजा भुचंड के पौत्र और डूंगर सिंह के पुत्र रावल कर्मसिंह की भार्या माणिकदे ने उक्त बावड़ी बनवाई। इससे प्रतीत नहीं होता है कि उक्त सवत तक कर्मसिंह जीवित था या नहीं। यह भीषण आक्रमण संभवतः अलाउद्दीन खिलजी अथवा गुजरात या मालये के स्थानीय मुस्लिम शासकों का हो सकता है। विविध तीर्थं कल्प के सत्यपुर कल्प" मे लिखा है कि गुजरात आक्रमण के समय उसकी सेनाएं बागढ़ प्रदेश मे होकर के गई थी। जयानन्द नामक" एक जैन साधु ने वि० सं० १४२७ मे " बागड़ प्रवास गीतिका " नामक एक रचना रची थी। उसमें डूंगरपुर नगरमे ५ जन मंदिर १०० पर जैनियो के होना लिखा है। इसी प्रकार बड़ौद जो वहाँ की प्राचीन राजधानी थी कम पर होना लिखा है इससे प्रतीत होता है कि उस समय तक राजपानी बदली जा चुकी थी। राजधानी परिवर्तन का कारण भी कोई बाहरी आक्रमण हो रहा प्रतीत होता है । कर्मसिंह का उत्तराधिकारी महीपाल हुआ। इस राजा के बारे मे केवल मात्र उल्लेख महारावल पाता की ऊपर गाव की इस प्रशस्ति मे ही है। ओझाजी ने कर्मसिंह के बाद कन्हडदेव को ही शासक माना है। किन्तु ऊपर गाँव के इस शिलालेख के अनुसार" इसके एक पुत्र महीपाल
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