________________
(वि० सं० १४६१)
ऊपर गांव का अप्रकाशित जैन लेख
श्री रामवल्लभ सोमानी
ऊपर गांव हुगरपुर से ३ मील दूर है। यहां एक विद्वानों ने शीलादित्य को ही बाप्पा माना है किन्तु इस भग्न दिगम्बर जिनालय में वि० स० १४६१ का अप्रका- प्रशस्ति में बाप्पा के पुत्र का नाम स्पष्ट रूप से खुम्माण शित जैन लेख है। इसमे ३६ पक्तियों का एक विस्तृत दिया हुआ है अतएव अोझाजी की मान्यता की इससे शिलालेख है। यह प्रशस्ति डूगरपुर राज्य के इतिहास पुष्टि होती है। के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है । अब तक वहा के इतिहास श्लोक सं० १२ में बहुत ही महत्वपूर्ण सूचना दी के लिए ज्ञात प्रशस्तियों में यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण गई है। इसमे बागड़ (इंगरपुर) के वर्तमान शासकों के है। प्रारम्भ की ८ पक्तियों मे तीर्थङ्करों की स्तुतिया है। पूर्वज सीहड़ के सम्बन्ध में सूचना दी गई है कि यह पंक्ति सं०८ में श्लोक स०६ "राजपद्धति" नामक अश मेवाड के महारावल जैनसिंह का पुत्र था। सीहड़ के शुरू होता है । इसमें राजवश का विस्तार से उल्लेख है। सबध मे विद्वानों में बड़ा मतभेद है। अोझाजी की मान्यता श्लोक स. १० में बाप्पारावल का उल्लेख है । इसे गुहिल है कि यह सामत सिंह का वशज था जिसका बागड वश में उत्पन्न वणित किया है। मेवाड़ के मध्यकालीन में कुछ समय तक अधिकार रहा था । डा० दशरथ शर्मा शिलालेखो मे बाप्पारावल के सम्बन्ध में विभिन्न-विभिन्न की भी यही मान्यता थी। इसके विपरीत श्रीराय चौधरी मत दिये है । वि० सं०१०२८ के नरवाहन' के शिलालेख इसे मेवाड़ का शासक जैसिंह का पुत्र बतलाते है। में "अस्मिन्नभव गहिलगोत्रनरेन्द्रचन्द्रः श्रीवप्पक: क्षिति- वस्तुतः सामन्तसिंह का बागड पर अधिकार केवल कुछ पति: क्षितिपीठरत्नम्" पाठ दिया है किन्तु वि० स० वर्षों तक (वि० स० १२३६ के आसपास) ही रहा था । १०३४ के पाघाटपुर के शक्तिकुमार के लेख मे वशावली' उसे गुजरात के राजा को चैन से नहीं बैठने दिया । एव मे बाप्पागवल का नाम ही नही दिया है। चित्तौड मेवाड की तरह उसे बागड़ से भी निष्कासित कर दिया। निवासी ब्राह्मण प्रियपटु के पुत्र वेदशर्मा ने महारावल इसकी पुष्टि वि० स० १२४२ के अमृतपाल" के ताम्रपत्र समरसिंह के शासन काल में बनाई,' वि० स० १३३१ से होती है। वि. स. १२५१ के बडौदा के हनुमान की चित्तौड को प्रशस्ति एव वि० स० १३४२ की पाबू मूर्ति के लेख वि० स० १२६१ के रामा के शिवमंदिर के की प्रशस्ति' मे बाप्पारावल को गुहिल का पिता लिख लेख मे अमृतपाल का शासक के रूप मे उल्लेख है । प्राट दिया है । जो गलत है। इसके विपरीत इस ऊपर गाव के शिवालय के वि०स० १२६५ के एक लेख में अमतपाल की प्रशस्ति मे स्पष्ट रूप से बाप्पा को गुहिलवशी लिखा के वंशज विजयपाल का शासक के रूप में उल्लेख है। ये है। बाप्पा के पुत्र का नाम इस प्रशस्ति मे खुम्माण दिया लोग भतृपट्टवंशी शासक थे। डूगरपुर के शिलालेखों में गया है जो महत्वपूर्ण है। स्वर्गीय पं० प्रोझाजी ने भी सीहड के पिता का नाम जयतसिंह ही दिया गया है। वान भोज को बाप्पा मानकर इसके पुत्र का नाम खम्माण' वि०स० १३०६ के जगत की अम्बिका देवी के मन्दिर के दिया है। कुंभलगढ़ के वि० सं० १५१७ के शिलालेख मैं एक शिलालेख मे इसका स्पष्टतः उल्लेख है किन्तु बाद के शीलादित्य (वि० सं० ७०३) को बाप्पा' वणित किया लेखों में वंशावलियो मे मतभेद है । वि० सं० १६१७ की है और इसको आधार मानकर डी० सी० सरकार प्रभृति महारावल प्राशकरण" की प्रशस्ति एवं वि० सं० १६७४