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________________ वीर शासन की विशेषतायें माधन कर सकें वही सर्वोदय तीर्थ है । सर्वोदय का बचाना प्रत्येक मानव का कर्तव्य है। अतः उन पर दयासम्बन्ध किमी साम्प्रदाय विशेष से नही है । संकीर्ण मनो- भाव रखना ही श्रेयस्कर है। वृत्तियाँ ही विरोध को उत्पन्न करती है। क्योकि उनका ३. विरोध का कारण मानमिक दौर्बल्य है, अथवा दृष्टिकोण सर्वथा एकान्त रूप होता है। और एकान्त ही आर्थिक, राजनैतिक एवं सामाजिक विषमता है। विरोध मिथ्या दर्शन है। उनका उसमे प्रभाव है। इसी से सर्वो- से शत्रुता बढ़ती है। अनक्यता और विद्वष को प्रोत्तेजन दय तीर्थ कहा जाता है। प्राचार्य समन्तभद्र ने इसे मिलता है। यही प्रशान्ति के कारण है। इनसे बचने हेतु युक्त्यनुशासन में सर्वोदय तीर्थ बतलाया है। उपाय करना वुद्धिमत्ता है। अनेकान्त दृष्टि से दोषो का सर्वान्तवत्त गुण-मख्य-कल्पं, सन्तिशून्य च मियोऽनपेक्षम्। शमन भले प्रकार हो जाता है, मन से दुर्भाव निकल जाते सर्वापदामन्तकरंनिरन्तं, सर्वोदयं तीर्थमिद तर्दव ॥ है। प्रत. अनेकान्त दृष्टि का जीवन में उपयोग करना महावीर का सर्वोदय तीर्य सामान्य विशेषादि अशेष । जरूरी है। ४. जितने अर्थ से अपना प्रयोजन सिद्ध हो सकता है, घों को लिए हुए है। और मुख्य-गाण की व्यवस्था से उतना ही रखना, शेप का सब के हितार्थ त्याग कर देना युक्त है। सर्वान्त शून्य है, सब धर्मों से शून्य है, उसमें किसी एक धर्म का अस्तित्व नहीं बन सकता। परस्पर बुद्धिमत्ता है । वीर शासन में परिग्रह को पाप बतलाया है। उससे बचने के लिए उसका परिमाण कर लेना, निरपेक्ष नयों का निरसन करने वाला है। सब मापदायो। उससे अधिक की लालसा न करना परिग्रह परिमाण व्रत का अन्त करने वाला है। इसका आश्रय लेने वाले जीवो के मब दु.म्व मिट जाते है और वे अपना प्रभ्युदय एवं कहलाता है । परिग्रह ही विषमता का प्रबल कारण है, इसके कारण मानव जघन्य से जघन्य पाप करने में नहीं उत्कर्ष सिद्ध करने में समर्थ हो जाते है। हिचकिचाता। महावीर ने इस गुरुतर पाप से छूटने का भगवान महावीर ने जीवों के दुःखो की परम्परा सहज उपाय उसका परिमाण करना या उसका सर्वथा मिटाने, दूपित एव सकीर्ण मनोवृत्तियो को औदार्य भावो त्याग कर देना बतलाया है। से सरस बनाने का उपक्रम किया है। और सभी जीवों ५. कायरता घोर पाप है । कायर मनुष्य प्रात्म-घाती है। में मंत्रीभाव (दुःखेष्वनुत्पत्ति अभिलाप: मैत्री) रखने का मानव की प्रान्तरिक कमजोरी ही कायरता मे सहायक निर्देश किया। है इसी कारण वह हिंसक है। जिन्होने इसका परित्याग २. शासनो मे होने वाले पारस्परिक विरोधो को दूर किया और प्रात्म-साधना की वे सुखी हुए। जिसने कायरता करने, दोषो को पचाने, विनष्ट करने और गुणो मे अनु को छोडकर वीरता को अपनाया वह निर्भय बना । वही राग रखने का सकेत किया है । यदि किसी जीव का अमिक कहलाया। सम्यग्दृष्टि चूकि निर्भय होता है अतः किसी से विरोध हो जाता है और शत्रुभाव उत्पन्न हो वह हिसक है। महावीर ने स्वय आत्म-साधना कर जो जाता है तो उस विरोध को दूर करने के लिए अनेकान्त उच्चादर्श प्राप्त किया है वह हमारे द्वारा प्राराध्य है। दृष्टि द्वार। दूर करने का प्रयत्न किया जाय । अनेकान्त जीव स्वय अपने अच्छे बुरे कर्मो का फल स्वय अकेला दृष्टि केवल विरोध को ही नही मिटाती । प्रत्युत उनमें ही भोक्ता है। दूसरा कोई उसका सगा साथी नही होता। सोहार्द और अभिनव मंत्री का सचार भी करती है। व मत्रा का संचार भी करता है। इस तरह महावीर का शासन अनेक मोलिक विशेष२. भगवान महावीर ने बतलाया कि संसार के सभी तामों से भरा हुमा है। यदि हम उनके हिसा, सत्य, जीव ममान है और सुख चाहते है तथा दुख से डरते हैं। श्रचौर्य, ब्रह्मचर्य मोर अपरिग्रह जैसे सिद्धान्तों का अनेर जैसे तुम्हे अपने प्राण प्यारे हैं उसी तरह सब जीवो को कान्त दृष्टि से पालन करे तो हमारा जोवन भी महावीर भी अपने प्राण प्यारे है। अत: उनके प्रति सम भाव रखते जैसा बन सकता है। और विश्व मे शान्ति और सभाहुए उन पर दयाभाव रखना, उन्हे दुःख और सक्लेश से वना का विकास हो सकता है।
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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