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________________ मध्य प्रदेश का जैन पुरातत्व अगरचन्द नाहटा जैन पुरातत्व भारत के कोने मे कोने में बिखरा पड़ा कर दी। मुसलमानों के प्राक्रमण के भय से स्वयं जैन है। क्योंकि जैनधर्म का प्रचार भारत के प्रायः सभी समाज ने भी बहुत सी मूर्तियों को भूमिस्थ कर दिया था प्रदेशों में न्यूनाधिक रूप में होता रहा है। प्रारम्भ में मन्दिरों के गर्भ गृह में (गुम्भारे) मे इस तरह छिपा कर इसका प्रचार बंगाल, बिहार की ओर अधिक था, फिर रख दी, जिससे मुसलमान उन्हें नष्ट नहीं कर सके। कई महान दुभिक्ष और राजनैतिक उथल-पुथल के कारण जैन ग्राम नगर उजाड से हो गये, पुराने मदिर व मकान दव श्रमणों ने इघर मथुरा और उधर दक्षिण भारत को धर्म गये उनके ऊपर लि आदि इतने परिमाण मे छा गयी प्रचार का केन्द्र बनाया। क्रमश: राजस्थान और गुजरात कि वे टीले से बन गए। इस तरह प्राचीन जैन पुरातत्व में तो श्वेताम्बर सम्प्रदाय का प्रचार बड़ा और उत्तर मुसलमानी साम्राज्य के समय और उससे पहले प्राकृतिक प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं दक्षिण की ओर दिग- कारणों से टीलों के नीचे काफी दब गया या नष्ट-भ्रष्ट म्बर सम्प्रदाय का अधिक प्रभाव दिखायी देने लगता है। हा गया । अग्रेजी शासन के समय भारत की प्राचीन संस्कृति, जैन धर्म को पहले तो राजानो ने भी अपनाया था। साहित्य, इतिहास, कला की खोज प्रारम्भ हुई। उन्होंने जैन साधु-साध्वि पैदल विहार करते हुए तीर्थ यात्रा और बहुत से प्राचीन स्थानों की खुदाई की व करवाई जिससे धर्म प्रचार के लिए भारत के सभी प्रदेशो मे विचरने लगे प्राचीनतम सभ्यता और कला के अवशेष प्रकाश में पाये उनके उपदेशों से वैश्य समाज विशेष प्रभावित हुआ। और यह क्रम आज भी भारत सरकार की ओर से चालू व्यापारी समाज अपनी आजीविका और व्यापारादि प्रसंगों है। भारत के पुरातत्व विभाग ने अनेक स्थानों की खुदाई से भारत के सभी प्रदेशों में फैला हुआ है जिसमे जैन की है और इधर-उधर बिखरे हुए पुरातत्व को म्यूजियम समाज का भी प्राधान्य रहा है। जैन व्यापारी जहाँ-जहाँ __ या संग्रहालय में संग्रह किया है। अनेक स्थानों के पुरागये अपनी मिलन सारिता, सद्व्यवहार, नीति-निपुणता तत्व की खोज करके उनने बहुत सी रिपोर्ट प्रकाशित पौर श्रमशीलता के कारण अधिक सफल हुए और उन्होने की है। बहुत वर्ष पहले ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद जी ने जो प्रचुर धनोपार्जन किया उसका एक प्रश जैन मुनियों ऐसी रिपोर्टों के प्राधार से अलग-अलग प्रान्तों के जैन के उपदेशों से प्रभावित होकर मन्दिरों एव मूर्तियों प्रादि पुरातत्व या स्मारकों सम्बन्धी ग्रन्थ हिन्दी में लिखकर के निर्माण एवं प्रतिष्ठादि में खर्च किया। फलतः जैन प्रकाशित करवाये थे पर उसके बाद जैन पुरातत्व का मन्दिर और मूर्तियां भारत के प्रायः सभी प्रदेशों मे पायी ऐसा सर्वेक्षण प्राय: नही हुमा, जिसकी बहुत ही मावश्यजाती है। कता है । जैन समाज चाहे तो भारत के पुरातत्व विभाग मुसलमानी-साम्राज्य के समय अन्य हिन्दू मन्दिर में विटानों से के विद्वानों से एक-एक प्रदेश के जैन पुरातत्व सम्बन्धी और मूर्तियों की तरह जैन मन्दिर और मूर्तियों को भी निबन्ध लिखवा कर उन्हें एक ग्रंथ के रूप में प्रकाशित काफी नुकसान पहुंचा, बहुत से मन्दिर नष्ट-भ्रष्ट कर करवा सकता है । अपनी प्राचीन कला और इतिहास की दिये गए और मूर्तियाँ तोड़ दी गयीं । कई जैन मंदिरों को जानकारी के लिए यह कार्य किसी जैन संस्था को शीघ्र मस्जिद का रूप दे दिया गया और कई जनेतरों ने हथिया एवं अवश्य हाथ में लेना चाहिए। कर उनमें शिवलिंग एवं विष्णु मादि की मूर्तियां स्थापित अभी-अभी मध्य प्रदेश शासन ने 'पुरातत्व सप्ताह
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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