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________________ ७६, वर्ष २३ कि० २ इब्लेड कहि दसकमेण इमिणा बच्चा जदी संग्रह पंचन्ह परिभावग्रो भवभय णिच्चासी मं वच्चये ॥ ६ विमला गुणगुरुई बहुपिया संति किय चमकारा पंजी रंजिय भुवणा चिट्ठउ सुदकिति कित्तिव्व ॥ जाद जत्य मुलद्ध मूलमहिम साहाहि सस्सोहिय । सच्छायं सगुणकि बुद्धि विसय भूदेवमाण सया । धम्मारामुय राहवत्स करिणो तत्थेस गयो को। गामे पुष्वलि ... णांम सहिए कालामए ॥ ८ सोलस सहिय सहस्से गयसगकाले पवढमाणस्स । भाव समस्त समत्ता कत्तिय नदोसरे एसा ! ६ इमिस्से गय संखाण सिलोएहि फडी कय । पण्णासेहि सम वृच्छं दसम दहिंगुणं ।। १० ग्रंथ संख्या ५०००, श्रीपच गुरुभ्यो नमः 1 शुभमस्तु भव्य लोकाय । गोम्मट पंजिका नाम गोम्मटसार टिप्पण समाप्त 11 अनेकान्त X X X 1 राजा उग्रसेन की लाडली राजुल अपने भावी पति नेमकुमार के चिन्तन में रत थी अपने पति का कल्पित सुन्दर घोर सहृदय चित्र देखकर नारी के मुख पर जो प्रसन्नता होती है, राजुल उसी का अनुभव कर रही थी । नारी सुलभ लज्जा यद्यपि उसके धान्तरिक भावों के प्रदर्शन मे बाधक थी फिर भी उसका अनुराग छलक रहा था अनेक चेष्टाएं करने पर भी वह उसे छिपा न सको घोत्सुक्य, उमंग नवीन अभिलाषाओं की त्रिवेणी में स्नान कर उसका शरीर पुलकित हो रहा था । स० १५६० स्वस्ति श्रीमत्स्वसमय परसमय सकल विद्याकोविद वादि वृन्दारक वृन्द बदित पद द्वंद्व श्री मत्कुड कुदाचार्योन्यं श्री सरस्वती गच्छे बलात्कार गणे भट्टारक श्री ज्ञानभूषण देवा: तच्छिष्याचार्य वयं भी निय श्रीविगानकोति देवा: तच्छिया लघुविशालकीति यतय । श्रीमजिनधर्मध्यान धन धान्यादिभिरति सुन्दरे गवार मदिरे हुवड़े वशे श्रावक सर भाइया कीका तस्य भार्या वाऊ तयोः पुत्री माणिक वाई तस्याः पुत्री चगाई । नत्र प्रशस्त सम्यक्त्वधरी दयाकरी समस्त जीवे संकुलात सुन्दरी दानादिषु स्वमतानु कारिणी माणिक्य वर वृत्ति पारिणी तथा सद्भावनापूर्व लोखयित्वेद मुत्तवं श्रीमद गोम्मट सारस्य पंजिका पुस्तकं मुदा दत्त लघु विशालादि कोतिभ्यः कर्मछिलये प्राप्तये संपत्तेः सुखस्याने पुनः स्फुटमिति । आत्म-समर्पण (श्री बालचन्द जी एम. ए.) दूसरी घोर सहेलियों के बीच ठठोलियां चल रही थी । बेचारी राजुल एक ओर श्रौर शेष मडली दूसरी ओर कोई राजुल के अनुराग की कथा कह कर उसे राने की चेष्टा करती तो कोई नेमिकुमार के शौर्य और पिराक्रम की गाथाएं गाकर राजुल का हृदय नापने का प्रयत्न करती । भावी पति को गौरव गाथा सुन-सुन राजुल का मन खिल उठता था । यह क्रम चल ही रहा था कि अचानक हाफते- हांफते एक दावी ग्राकर चिल्लाई 'राजकुमारी'... शब्द उसके मोठों से निकलते ही न थे, वह विकट रूप से कांप रही यी और मासुमो को धार उसकी दोनों द्वालों से बड़ रही थी । "चन्दन !" राजकुमारी ने आश्चर्य से उसकी पोर देखा, क्यों ? क्या बात हुई ? उत्सुकता से उसने प्रश्न किया । सहेलियों की मंडली चन्दन को घेर कर खड़ी हो गई सभी स्तम्भ भी प्राश्चर्यचकित थी चन्दन जो दुस्समाचार लाई थी, कहने का उसे साहस ही न होता था। वह अपने को असहाय अनुभव कर रही थी । सहेलियां समा
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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