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________________ मोम्मटसार की पंजिका टीका ७८ ग्रन्थ के रचयिता का नाम गिरिकीति है। कर्ता ने प्रादि भाग :अपनी गुरु परम्परा निम्न प्रकार की दी है। श्रुतकीति, पणमिय जिणिद चदं गोम्मट संग्गह समग्गसुत्ताणं । मेषचन्द, चंदकीति और गिरिकीति । श्रुतकीति नाम के केसिपि भाणिस्सामो विवरणमण्णेस मासिज्ज ॥ अनेक विद्वान हो गये हैं, उनमे प्रस्तुत श्रुतकीति कौन है ? तत्त्थ ताव तेसि सुत्ताणमादिए मँगलट्ठ भणिस्स यह विचारणीय है। मण? विसय पइण्णा करण? च कयस्स सिद्ध मिच्छाइ एक श्रुतकीति-मूलसंघ, बलात्कारगण सरस्वती गाहा मुत्तस्सत्थो उच्चयेणट्ट विवरणं कहिस्सामो तमहा गच्छ के कुन्दकुन्दाम्नाय मे हुए है। इनकी आम्नाय मे बोच्छभट्टारक प्रभाचन्द्र ने सं० १.११ वैशाखसुदी ५ को एक । अन्त भाग :जिन मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई थी, जो भूगर्भ से प्राप्त हुई जे पुख्वमणस्थ बति विसुहा साहिच्च मागच्चदा, थी, और भोमाव के जैन मन्दिर मे खण्डित अवस्था मे दिडठ जेहि जयप्पमाणग्रहण जोह ण सम्म मद । विराजमान है। ते णिवतु युवतु किं मम तदो अण्णारिसा जेहयो, दूसरे श्रुतकीति 'पंचवस्तु' नामक व्याकरण ग्रन्थ के ते रज्जति जदोह साह सहलो सम्वो पयासो मम ॥ कर्ता है जिनका उल्लेख कन्नड कवि अग्गलदेव ने अपने कर्मकाण्ड (पजिका) चन्द्रप्रभचरित मे, अपने गुरुरूप से किया है। और उन्हे विद्य चक्रवर्ती की उपाधि से अलकृत किया है। कवि ने प्रादि भाग :अपना उक्त ग्रन्थ शक सम्वत् १०११ (वि० सं० ११४६) णमह जिण चलणकमल सुरम उलि मणिप्पहा जलमे समाप्त किया है। मटिम की विलीनी ललमिय। णह किरण केसरत तब्भमत देवी कयब्भमर । 'विच धनकीाख्यो वैयाकरणभास्कर:' रूप से उल्लेख ग्रह कम्मभेद परुवेमाणो विज्जाए अब्बुच्छित्तिकिया है । इससे ये श्रुतकीति बडे भारी विद्वान जान पडते णिमित्त मिाद कादण म णिमित्त मिदि कादण मगल जिणिद णयोक्कार करेदिहै । बहुत सभव है यही श्रुतकीति गिरिकीति के गुरु रहे अन्त भाग :हों । यदि यह विचार ठीक हो तो उनके समय के साथ सो जयउ वासपुञ्जो सिवासु पुज्जासु पुज्ज-पय-पउमो। सगति ठीक बैठ जाती है। पविमल वसु पुज्जसुदो सुदकित्ति पिये पियं वादि ॥१ तीसरे श्रुतकीति-मूलसंध देशीयगण पुस्तक गच्छ समदिय वि मेघचंदप्पसाद खुद किसियरो । कोण्डकुन्दान्वय के प्रभयचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती के शिष्य जो सो कित्ति भणिज्जइ परिपुज्जियचंदकित्सिति ॥ २ प्रभाचन्द्र के शिष्य थे। शिलालेख का समय' शक जेगासेसवसंतिया सरमई ठाणंत रागो हणी । स० १३०४ (वि. सं. १४४१) है। अतएव यह विक्रम जंगाढ परिरूं मिऊण मुहया सोजत मुद्दासई । की १५वीं शताब्दी के विद्वान् हैं। जस्सापुव्वगणप्पभूदरयणा लंकारसोहग्गिरि [ग्गिणा] ___चौथे श्रुतकीति नन्दिसंघ बलात्कारगण के विद्वान जाता सिरि गिरि कित्ति देव जविणा तेणासि गंथोकमो॥३ म. देवेन्द्रकीति के प्रशिष्य और भूवनकीति के शिष्य उप्पण्ण पण्णाण मिसी णमंसि पयोजणं मस्थि तहा विहांचे. थे। इनका समय विक्रम की १६वीं शताब्दी है। इन्होने कज्ज भवे चेविमिणा बहूणं, बालाण मिच्चत्य कयं ममेयं ॥ ४ अपभ्रश भाषा मे अनेक ग्रन्थों की रचना की है । हरिवंश अण्णाणेण पमाददोवगरिमा गंथस्स होदिति बा। पुराण सं० १५५२, धर्मपरीक्षा परमेष्ठी प्रकाशसार प्रालस्सेण व एत्य जंण संबन्धणिज्ज पि मे। (सं० १५५३) और योगसार को रचना संवत् १५५३ तं पुष्वावरसाहसोहण सुही सोहंतु सम्मं सही, में गयासुद्दीन के राज्यकाल में मालवा के जेरहठ नगर में जंहा सव्वपरोवयारकरणे संतोगिही बग्वदा ।। ५ की थी। मेघचंद का समय स्पष्ट है । एसो बंधदि बंधणिज्जमिदि मे वेदस्स बंधो इमो। १. देखो, जन लेख. भाष २, . ४१६ एवं बध मिमित्त मस्स समए भेदा इमेसि इमे ,
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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