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सवौषधि दान
परमानन्द जैन शास्त्री
वह सौषधि के दिव्य फल को प्राप्त हुई। उसने से उसे भी माराम हो गया, इससे रूपवती के मन पर भक्तिवश औषधियों का दान जो दिया था। मुनिराज की गहरा प्रभाव पड़ा। उसे उस जल की महत्ता का भान सेवा की थी। उसी का दिव्य परिणाम था, जो उसके हुमा, वह समझती थी कि वृषभसेना बड़ी पुण्यशालिनी स्नान जल से विविध रोगों का विनाश हो जाता था, है, जिसके शरीर स्पर्शित जल से भयकर रोग दूर हो काया दिव्य बन जाती थी। कोढ जैसे भयंकर रोग भी जाते है। इसके स्नान जल की रोगहारी विशेषता इसके क्षण भर मे चले जाते थे। पुण्य फल से ससार में क्या विशेष पुण्य की द्योतक है। रूपवती अब उस जल से अनेक नहीं प्राप्त होता । जिन पूजा, साधु-सेवा, सयम, भक्ति, रोगियो को अच्छा करने लगी। स्वाध्याय और दान आदि सभी श्रेष्ठ कर्म पुण्य फल के ही एक दिन एक कोढ़ी पाया, कोढ़ से उसका शरीर कारण है। कावेरी नगरमे राजा उग्रसेन राज्य करते थे, जो राज
गल रहा था वह उसकी वेदना से छटपटा रहा था। नीतिके अच्छे विद्वान थे और प्रजा का पुत्रवत् पालन करते
मक्खियाँ उसे बहुत तंग कर रही थी, शरीर से दुर्गन्ध भी थे, उसी नगरमे सेठ धनपतिभी रहते थे और उनकी धर्मपत्नी
पा रही थी। रूपवती ने उस जल को उसके शरीर पर धनश्री थी, उनके एक पुत्री उत्पन्न हुई । वह जन्मकाल से
डाल दिया, इससे उसे शान्ति मिली, उसका रोग चला
गया। इससे लोक में रूपवती का नाम प्रसिद्ध हो गया। ही लावण्यमयी थी, उसकी काया कंचनके समान दीप्यमान थी। वह पुण्यात्मा जो थी। उसका नाम था वृषभसेना ।
रोगी उसके पास आते और वह उन्हे उस जल से रोगवह देखने में जितनी सुन्दर और मनोहर थी, वह उतनी
मुक्त कर देती थी।
उग्रसेन और मेघपिंगल मे पुरानी शत्रुता थी। समय ही सरल और मृदुभाषिणी भी थी । बह किसी देवकुमारी से कम न थी। रूपवती धाय ने वृषभसेना के स्नान जल
पाकर उग्रसेन ने अपने मत्री रणपिंगल को मेघपिंगल पर
चढाई करने की प्राज्ञा दी। रणपिंगल ने उसके नगर को को एक गड्ढे में इकट्ठा कर दिया था और प्रतिदिन का
चारों ओर से घेर लिया। मेपिंगल ने शत्रु को युद्ध में जल वह उसी गड्ढे मे डाल दिया जाता था। एक दिन
परास्त करना असम्भव समझ एक दूसरी युक्ति से काम महारोगी एक कुत्ता तडफता हुआ आया और उस गड्ढे
लिया, उसने योजनानुसार शत्रु की सेना को जिन जिन मे बैठ गया। थोड़ी देर के बाद जब वह उसमे से निकला
कुए बावड़ियों से पेय जल मिलता था उनमे अपने चतुर तब उसका सब रोग शान्त हो गया था। यह दृश्य देख
जासूसों द्वारा विष डलवा दिया। परिणाम स्वरूप रणकर रूपवती ने उस जल की और भी परीक्षा करनी
पिगल की बहुत सी सेना मर गई, जो बची उसे लेकर चाही, जिससे विश्वास में दृढता आ सके; और यह निश्चय
वह स्वयं अपने देश को लौट गया। उस सेना पर विष किया जा सके कि इस पानी मे सचमुच ही रोग नाशक
का असर हुआ था उसे रूपवती ने उसी जल से दूर कर तत्त्व है । एक दिन वह उसके स्नान जल को लेकर अपने
दिया। इससे सेना रोग मुक्त हो गई। घर गई और अपनी मां की आँखो को उस जल से धो ।
xxxx दिया, जिससे उसे शान्ति मिली। मां की आँखे कई वर्ष
राजा उग्रसेन को जब मेपिगल की इस शरारत का से खराब हो रही थी, इलाज करने पर कुछ भी लाभ पता चला, तब उसे उस पर बहुत क्रोध आया। वह स्वयं नजर नहीं आता था, अतएव वह दुखी थी। पर इस जल सेना लेकर गया, बहत सावधानी वर्ती तो भी वह उस