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________________ ४० वर्ष २३ कि.१ अनेकान्त स्कार में, मै पाने वाली पीढी के लिए एक आश्वासन उन्होने पर्याप्त योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि मैं देख रही हूँ कि वह जो भी कार्य निस्वार्थ भाव से करेगा यह मानता हूँ कि काव्य संगीत के स्पर्श से आध्यात्मिक उसके कार्य की सराहना चाहे देरी से हो पर होगी तट तक जा पहुँचता है। अवश्य । उन्होंने कहा कि मुझे इतनी अधिक जैन राग- इस अवसर पर संघ की ओर से महावीराष्टक का मालाएं देखने को मिली कि मैं उनका वर्णन अपनी पुस्तक नया रेकार्ड रिलीज किया गया। रेकार्ड की प्रथम प्रति व में किए बिना नही रह सकी। उन्होंने इस बात पर खेद श्री दि. जैन कालिज प्रबन्ध समिति बड़ौत द्वारा प्रकाव्यक्त किया कि हम लोग जैन मन्दिर की भव्यता को शित "भरत और भारत" की प्रथम प्रति संघ की ओर देखने तो जाते हैं पर जैन मन्दिरों के ग्रंथालयों मे अपार से श्री राजेन्द्रकुमार जैन ने डा. राव को भेंट की। साहित्य का भण्डार भरा पडा है पाज उनको प्रकाश मे प्रारम्भ में संघ का परिचय संघ के मन्त्री श्री सतीश चन्द लाने की आवश्यकता है। उन्होने कहा कि हिन्दी राग- जैन ने श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत किया। मालानों में है। इस श्रेत्र में भारी शोध की प्रावश्यकता इस अवसर पर आकाशवाणी के कलाकारों द्वारा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राजस्थान के जैन भजनों का एक सुन्दर कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया । ग्रन्थालयों में जो अमूल्य भण्डार भरे पड़े है उनका उद्घा सभी श्रोताओं ने कार्यक्रम की मुक्त कठ से प्रशंसा की। टन किया जाना ही चाहिए। टेलीविजन आदि पर कार्यक्रम की झलक भी ब्राडकास्ट पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष व सुप्रसिद्ध की गयी। समारोह में दिल्ली के अतिरिक्त मेरठ सहारनसाहित्यकार श्री जैनेन्द्र कुमार जैन ने कहा कि इस गवे- पुर, देहरादून, रुड़की, शामली तथा मुजफ्फरनगर और षणा से यह सिद्ध हो गया है कि हमारे मुनियों का कार्य ज्वालापुर, जगाधरी आदि अनेक नगरों से प्रतिष्ठित केवल बौद्धिक ही नहीं बल्कि काव्यात्मक क्षेत्र मे भी व्यक्तियों ने भाग लिया। साहित्य के प्रति उपेक्षा क्यों ? जैन साहित्य कितना विशाल, गम्भीर और उपयोगी है इसे बतलाने की आवश्यकता नहीं है। जैन जनेतर विद्वान उसकी महत्ता से परिचित हैं। ग्रंथ भंडारों को देखने से उसको विशालता का सहज हो अनुभव हो जाता है। ऐसी कोई प्रौढ़ भाषा और विषय नहीं जिस पर जैनाचार्यों और विद्वानों ने कलम न चलाई हो। खेद है कि इस विशाल साहित्य की आज भी सुरक्षा नहीं की जा रही है। बहुत कुछ ज्ञान भडार ऐसे हैं जो उपेक्षित दशा में पड़े हैं, न उनकी कोई सूची है और न व्यवस्था । व्यवस्था के प्रभाव में ग्रंथ दीमक व कीटकादि के भक्ष्य हो रहे हैं। दिगम्बर समाज को जिनवाणो के प्रति यह महती उपेक्षा कस कतो है। समाज के नवयुवको! जागो! और अपनी पैतृक सम्पत्ति को विनष्ट होने से बचायो। यदि तुमने जिनवाणी का संरक्षण कर लिया तो जैन संस्कृति का संरक्षण और प्रसार सभी सुलभ हो जायंगे। और वीर शासन का लोक में प्रचार और प्रसार हो सकेगा। आशा है समाज और समाज के नवयुवक पुरातन साहित्य के संरक्षण का दायित्व उठाने का प्रयत्न करेंगे। -परमानन्द शास्त्री
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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