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________________ 'प्रमाण प्रमेय कलिका' के रचयिता नरेन्द्रसेन कौन ? रायप्पा घरणप्पा टोकण्णवर अनुवादक :-जी० ए० शेट्टर पंडित दरबारीलाल कोठिया से संपादित, श्रीमाणिक- श्रीमत्स्वामी समन्तभद्रमतुल वन्दे जिनेन्द्रमुदा ।। चन्द्र दिगम्बर जैन ग्रथमाला मे ४७वं ग्रथ के रूप में -न्याय वि० वि० प्रतिम प्रशस्ति श्लोक २ प्रकटित-'प्रमाण-प्रमेय-कलिका' नामक संस्कृत न्यायग्रंथ इस प्रशस्ति श्लोक में उल्लिखित विद्यानन्द, अनन्तप्राचार्य नरेन्द्रसेन की कृति है। इसकी प्रस्तावना में प. वीर्य, पूज्यपाद, दयापाल, सन्मतिसागर, कनकसेन पौर दरबारीलाल कोठिया ने सात नरेन्द्रसेनो का उल्लेख स्वामी समन्तभद्र जैसे प्राचार्यों की श्रेणी मे नरेन्द्रसेन को किया है। गिनकर उनके निर्दोष नीतिपालन को वादिराज सूरी ने उनमे १ला तथा दूसरा एक ही व्यक्ति; तीसरा एक श्रद्धापूर्वक स्मरण किया है । सपादक ने इनके सिवा दूसरे अलग व्यक्ति; चौथा, पांचवां तथा छठा एक ही व्यक्ति साधनो के प्रभाव में-वादिराज सूरी के-पार्श्वनाथ और सातवा एक अलग व्यक्ति-इस तरह चार नरेन्द्र चरित को अन्तिम प्रशस्ति में उल्लिखित शकवर्ष १४७सेनो को उन्होंने पहचाना है। इन चारो में-अन्तिम- (सन् १०२५)-को वादिराज का समय जानकर-न्याय(सातवां) व्यक्ति ही सभवतया इस प्रमाण प्रमेय कलिका विनिश्चय-विवरण के अन्तिम प्रशस्ति मे उल्लिखित-- का रचनाकार हो सकता है । और रचनाकार का जीवित- नरेन्द्र मेन, वादिराज के समय से पूर्व हुमा होगा; ऐसा काल सन १७३०-३३ तक निर्धारित कर अन्त में यही लिखा है। सातवाँ व्यक्ति---'प्रमाण-प्रमेय कलिका' का रचनाकार यहाँ पर ध्यान देने की बात यह है कि वादिराज के होने का निश्चय करते है, पर उनका यह निश्चय निम्न इस प्रशस्ति में पाए हुए सभी मुनिगण, वादिराज से पूर्व कारणों से ठीक नही जॅचता है। के ही होना आवश्यक नहीं है। हो सकता है कि कुछ ___उनके सपादन के लिए प्राप्त दोनों प्रतियाँ-अर्वा- वादिगज के समकालीन भी रहे हो।। चीन काल में प्रति की गयी है। इन्हीं प्रतियो के आधार वादिराज के गुरु कनकसेन के शिष्य दयापाल के पर उनका निर्णय अवलवित होमे से, (उनका निर्णय) बारे मे शिवमोग्ग जिले के, नगर (होम्बुज) का क्रमांक ऐसा हुया है। ३५वे शिलाशासन में-"राजमल्ल देवरिगे-गुरुगले निसिद कर्नाटक से अन्य प्रान्तीय लोग, मूल के प्रतिलिपि कनकसेन भट्टारक शिष्य शब्दानुशासनक्के-प्रक्रियेयेन्दु रूपकर ले जाने का रूढि-प्राचीन काल से ही है। नरेन्द्रसेन सिद्धियं माडिद दयापाल देवरू"-(कन्नड़)-हिन्दी अनुकी 'प्रमाण प्रमेय कलिका' भी इन्ही प्रतिलिपियों में से वाद :-"कन कसेन के शिष्य, रायमल्ल के गुरू दयापाल एक क्यो न होगी ? ने शब्दानुशासन की प्रक्रिया की रूपसिद्धि को रचा है।" पहले नरेन्द्रसेन के बारे में संपादक ने प्रस्तावना में ऐसा वर्णन उक्त शासन में है। इस शासन का समय सन् वादिराज सूरी का-न्याय-विनिश्चय-विवरण के अन्तिम १०५० है। शासनाल्लिखित दयापाल तथा वादिराज के प्रशस्ति दूसरे श्लोक का उद्धरण देते हैं न्याय विनिश्चय विवरण के अन्तिम प्रशस्ति में उल्लिखित विद्यानन्दमनन्तवीर्य सुखद श्री पूज्यपादं दया दयापाल एक ही व्यक्ति है, ऐसा निर्धार कर सकते है । पालं सन्मतिसागरं कनकसेनाराध्यमम्यद्यमी। ऐसे निश्चय से यह स्पष्ट हो जाता है कि दयापाल, वादिराज शृखयनीति नरेंद्रसेनमकलक वादिराज सदा तथा नरेन्द्रसेन तीनों समकालीन थे।
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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