SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म की कहानी : प्रपनी जबानी ३६ इस पर वरकुमार को सशय हुप्रा। मेरे माता-पिता पाया। कोन है ? इस प्रश्न का उत्तर उसका मन खोजने लगा। विद्या के प्रताप से अमरावती मे विद्याधरों ने अपने वास्तविकता का पता चलने पर वरकुमार का मन संसार रूप भयकर बना लिये। प्रकाश पर वे सब छा गये । से उदास हो गया और उसने जैन दीक्षा धारण कर लो। बौद्ध रथ उन्होने नष्ट-भ्रष्ट कर दिये और माणिक्यादि घोर तपस्या की उसने । और अनेक विद्यानो की से सज्जित जैन रथ को सारे नगर में बड़ी घूम-धाम से सिद्धि कर ली। निकाला। जैनधर्म का प्रभाव अक्षुण्ण बनाये रखने के उद्देश्य सारी जनता प्रसन्न हुई और जैन धर्म की प्रभावना से वैरकुमार मुनि की विद्यामो का स्मरण जनता को हो मे चार चाँद लग गये । तमिल व कन्नड़ साहित्य के निर्माण में जैनाचार्यों का विशेष योगदान डा० प्रार. वी. के. राव नयी दिल्ली-१७ अप्रैल, महावीर जयन्ती के पावन काव्य" की लेखिका सुश्री हेम भटनागर को उनके शोधपर्व पर श्रमण जैन प्रचारक संघ द्वारा मावलकर हाल में पूर्ण कार्य के लिए एक स्वर्ण पदक और २५०० रुपये मायोजित सास्कृतिक मन्ध्या का उद्घाटन करते हुए तथा एक प्रशस्ति भट का। केन्द्रीय शिक्षामंत्री डा. वी० के० प्रार० वी० राव ने प्रारम्भ मे भाषण करते हुए स्वागताध्यक्ष सेठ कहा कि हमारे देश में प्राचीन काल मे भजन को विशेष मुल्तान सिंह जैन ने कहा कि धर्म प्रचार मे सगीत का महत्व दिया जाता रहा है। भजन करने एवं सूनने से विशेष योगदान है। उन्होने संघ द्वारा किये जा रहे मन को अपार शान्ति व पानन्द की प्राप्ति होती है। कार्यों की प्रशमा करने हुए प्रागा प्रकट की कि साहू जी भजन मन की एकाग्रता के लिए अनुपम साधन है । डा० को मंरक्षता में और उनके मागदर्शन में यह सघ अपने राब ने कहा कि भजन किसी भी धर्म का हो सभी का उद्देश्य की शीघ्रातिशीघ्र प्राप्ति करेगा। उद्देश्य एक ही है और वह है ईश्वर भक्ति। उन्होंने माह शान्तिप्रमाद जैन ने अध्यक्ष पद से भाषण कहा कि जैन धर्म एक अति प्राचीन धर्म है। उन्होंने प्रागे करते हुए कहा कि उपदेश का अधिक प्रभाव भजन और कहा कि कन्नड भाषा मे प्रथम साहित्य जैन धर्म से मगीत के माध्यम से होता है। यही कारण है कि जैन पाया । इसी प्रकार तमिल साहित्य के निर्माण मे जैन धर्म में भजन काव्य प्रचुर मात्रा में मिलता है। हमारे मुनियों का भारी योग रहा है। डा० राव ने संघ द्वारा मुनियो ने तत्व के मुनियो ने तत्व की बाते मंगीत और भजन के माध्यम से किये जा रहे प्रयासों की प्रशसा करते हए कहा कि आज ही कही है। उन्होंने इस बात पर हर्ष प्रगट किया प्रावश्यकता है कि तमिल भाषा और कन्नड भापा मे कि श्रमण जैन भजन प्रचारक संघ इस ओर प्रयत्नशील पाये जाने वाले साहित्य का और दूसरी भाषामो में अन- है। उन्होने प्रागा प्रगट की कि सारे समाज का सहयोग वाद करके उसे जन-जन तक पहुँचाया जाये । इस पुण्य कार्य में मिलेगा। सुश्री हेम भटनागर ने इस अवसर पर कहा कि श्रमण इस अवसर पर डा० राव ने "शृंगार युग मे संगीत जैन भजन प्रचारक संघ द्वारा दिये गये प्राज के इस पुर
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy