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________________ २९, वर्ष २३ कि.१ अनेकान्त रोपण हो चुका । एक दूसरे एक दूसरे के स्नेह के प्यासे जैन आचार्यों में कोन प्राचार्य चमत्कार प्रदर्शन मे हो गये। सर्वाधिक बलिष्ठ सिद्ध हो सकता है? राजकुमार के हृदय की पीड़ा किसी को अज्ञात नही वैर कुमार आवाज पाई। रही। एक-एक क्षण उसे भारी-भरकम-सा हो गया। वैरकुमार प्राचार्य सोमदत्त का पुत्र था। सोमदत्त "उद्यान वाला वह कौन थी ?" का मामा सुभूति भी विद्वान था। परन्तु ईर्ष्याबश सुभूति "भिक्षु की पुत्री।" ने सोमदत्त को राजा से नहीं मिलाया। एक दिन सोमदत्त मिक्षु को सम्मानपूर्वक विविध सम्पदा दान से सन्तुष्ट स्वय राजा के पास अपना बुद्ध चातुर्य दिखाने पहुँच किया गया। गया। उसकी विदग्धता से राजा प्रसन्न हो गया और विवाह की रश्मे पूरी हुई। राजकुमार तेज ने तुरन्त मत्री पद दे दिया। सुभूति ने सोमदत्त का राजसी वैभव ही पट्टराज्ञी का पद देकर सुनन्दा का सम्मान किया। देखकर अपनी कन्या का विवाह उससे कर दिया। दम्पत्ति अठखेलियां करते हुए जीवन का रसपान यज्ञसेना को वर्षाकाल मे आम खाने का दोहद हुआ। करने लगे । रमणीक स्थानो की सैर, उद्यानक्रीड़ा, जल किमी जैन मुनिराज के प्रताप से उसे असमय में भी क्रीड़ा प्रादि से मनोरजन उनके दैनिक कार्य थे । मुन्दर व पके ग्राम प्राप्त हो गए । आम तो भेज दिए सुनन्दा से पूर्ववर्ती पट्टराज्ञी सुपमा यह सब देखकर ईर्ष्या से जल उठती है। यज्ञसेना के पास और स्वय ससार की नश्वरता का सौत के साथ डाह होना स्वाभाविक है। उपेक्षित अाराधन कर जैन दीक्षा ले ली। पौर निरादर की स्थिति में नारी का जीवन दूभर हो यज्ञसेना रुष्ट हो गई । पुत्रोत्पत्ति होने के कुछ दिनो जाता है । दुर्भरता के इस पास से बचने के लिए उसके बाद वह तपस्वी सोमदत्त के चरणों में अपने उस शिशु पास मात्र एक अध्यात्मिक शरण रह जाती है । को रख पाई। सुषमा का जीवन धार्मिक परिवेश में व्यतीत होने इस उपसर्ग को एक विद्याधर ने दूर किया । उसने लगा। लक्ष्य बदल गया। मन की गांठ भी कुछ ढीली उस लड़के को स्वय स्वीकार कर लिया और नाम रखा पढ़ने लगी। उसने जैन रथोत्सव कराने का आयोजन वरकुमार । किया। वैरकुमार बड़ा हो गया । विद्याधर ने उसे अपने इस घोषणा को सुनकर सुनन्दा चौकी। उसका सौत बहनोई के पास अध्ययनार्थ छोड़ दिया। समस्त विद्याओं डाह उसके चक्कर लगाने लगा। ईप्यों और क्रोध के में वह अत्यन्त शीघ्र ही पारगामी हो गया। बीच सुनन्दा जल उठी। जंगल मे एक दिन एक विद्याधरी विद्या सिद्धि कर मेरा भी बौद्ध रथोत्सव होगा और वह जन रथोत्सव रही थी। काटों से वह छिद चुकी थी। वरकुमार ने उसे से पूर्व होगा। सुनन्दा की कठोर घोषणा हो चुकी । काटो से मुक्त किया । फलत: विद्याधरी को विद्यासिद्धि ईर्ष्या व क्रोध की सीमा अभी तक व्यक्तिगत ही थी पर हो गई। अब वह साम्प्रदायिक देहली तक पहुंच चुकी। जैन और विद्याधरी से सात दिन के लिए राज्य पाकर वरबौद्ध दोनो सम्प्रदाय अपने-अपने प्रयत्न करने लगे। कुमार ने अपने छोट भाई से राज्य छान कर पिता का सीधे-साधे धर्म को आज भी कोई जल्दी स्वीकार राज्यासीन कर दिया। नही करता । जब तक उसके अनुयायी जनता के समक्ष वैरकूमार के साथ इसी बीच विद्याधरी का परिणय विशेष चमत्कारात्मक शक्ति का प्रदर्शन न कर दे, जनता हो गया। सन्तुष्ट नहीं होती । चमत्कृति प्रधान इस युग में प्राचार्य पिता को राज्यासीन कराने मे माता को असन्तोष अपने-अपने दांव लगाने लगे। हुमा । इसका सकेत वरकुमार को मिल भी गया।
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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