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________________ ३४, वर्ष २३ कि.. अनेकान्त पर इसने स्वीकृत नही किया" यमदण्ड ने हाथ जोडकर सामन्तगण भी दग रह गये, और यमदण्ड प्रसन्नता से निवेदन किया। फूल गय।। __ "तुम भ्रम मे हो यमदण्ड" महाराज ने मुस्कराकर "तुम विद्य च्चर हो! ख्यात चोर विद्यु च्चर ।" उत्तर दिया, वे भिक्षुक की रक्षा के लिए उसे भी क्षमा राजा ने अविश्वास प्रकट किया। देने को तैयार थे। "हाँ श्रीमान, कुख्यात चोर विद्य च्चर मै ही हूँ।" 'मुझे चोर परीक्षा मे भ्रम नही हो सकता महाराज! विद्यच्चर न विश्वास प्रकट करना चाहा। चोर यही है, यमदण्ड अपने विचार पर दृढ रहा । "तुमने इसके पूर्व अपराध क्यो स्वीकृत नही किया" महाराज विम्मित थे। नगर रक्षक जिसे विश्वास महाराज ने प्रश्न किया । और दृढ़तापूर्वक चोर कहता है : वह व्यक्ति सैकड़ो प्रयत्न "इसका उनर यमदण्ड दे सकता है थीमान्" उसने करने पर भी अपना अपराध स्वीकृत नहीं करता । यमदण्ड उत्तर दिया । इस कला में विशेष दक्ष था अवश्य । पर उससे भी तो महाराज ने यमदण्ड की ओर देखा और यमदण्ड ने भूल हो सकती है ? यह सम्भव है कि वह असफल होने सारी कथा सुना दी। यमदण्ड और विद्य च्चर मे कैसे पर भी निरपराध को ही दंड दिला कर अपनी रक्षा होड लगी। और किस प्रकार से उसने यमदण्ड को पराकरना चाहता हो। जित करने का प्रयत्न किया। यमदण्ड ने सभी महागज ! अन्त तक किसी भी निर्णय पर नहीं वतान्त सुना दिया। पहुँच सके । हार कर उन्होने चोर की ओर देखा। "फिर इतना ग्राम क्यो सहा? महाराज ने दूसरा "मैं तुम्हे मुक्त करता हूँ" उन्होने कहा । प्रश्न किया। चोर की अोठो पर हास्य की एक हल्की-सी रेखा 'नरक और निगोद में मैंने इससे भी अधिक त्रास प्रस्फुटित हुई और अपनी व्यंगभरी दृष्टि से यमदण्ड की सहा है महाराज, उसकी तुलना में इसकी क्या गणना पोर देखा। हो सकती है ? विद्य च्चर ने सरलवाणी मे उत्तर दिया । __ "महागज, यही ख्यात चोर विद्यच्चर है" यमदण्ड महाराज विद्य च्चर के इस उत्तर से गदगद हो गए, ने घबडा कर निवेदन किया । विद्य च्चर से उन्हें स्नेह हो गया। महाराजने निश्चय किया, "विद्युच्चर ।" महाराज ने आश्चर्य से उसकी मोर कि उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह-सस्कार कराने और देखा। अपना राज्य समर्पित कर देने का। विद्यु च्चर से उन्होने वहीं' विकट चोर जिससे पराजित होकर मुझे आप इसके लिए स्वीकृति मागी। के राज्य में प्राश्रय लेना पड़ा था। यमदण्ड ने उत्तर "मुझे राज्य की अभिलाषा नही है महाराज, ! मुझे दिया। इससे घणा है" विद्य च्चर ने उपेक्षापूर्वक उत्तर दिया। "विधुच्चर ।" महाराज ने भिक्षक की ओर मुख "क्या कहने हो विद्य च्चर !" महाराज को विश्वास फेरा, 'मैं तुम्हे क्षमा करता हूँ, पर तुम सत्य स्वीकार कर न हुआ। लो। राजमहल से रत्न तुम्ही ने चुराये है न । "मै सत्य कहता हूँ महाराज, मै भी राजकुमार हूँ, ___ "विद्युच्चर फिर भी चुप रहा।" मेरे पिता ने मुझे राज्य देना चाहा था, पर मै उसे निर्भय होकर कहो विद्यच्चर ! मै तुम्हे अभय वचन अस्वीकृत कर पाया हूँ" विद्य च्चर ने आगे कहा । दे चुका हूँ। महाराज उसे चुप देख कर बोले । __ 'तुम राजकुमार हो' राजकुमार होकर भी घृणित चौर "यमदण्ड सत्य कहता है श्रीमान," विद्यच्चर ने कर्म करते हो । महाराज ने पाश्चर्य प्रकट किया। स्वीकृत किया। 'यमदण्ड को दिए गए वचन की पूर्ति के लिए मैंने महाराज के प्राश्चर्य का ठिकाना न रहा, सभी चोरी की है महाराज! मुझे धन की प्रावश्यकता नहीं,
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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