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________________ साहित्य-समीक्षा [समीक्षार्थ प्रत्येक पुस्तक की दो प्रतियां प्राप्त होना आवश्यक है।] भरत पौर भारत-ले० डा. प्रेमसागर जैन, सफल हमा। कागज व छपाई प्रादि सभी प्रच्छी हैं। प्रकाशक-दिन कालेज प्रबन्ध समिति, बडौत (मेरठ) माकार डिमाई, पृष्ठ संख्या ४८ । सुसंगीत जैन पत्रिका-सम्पादक डा. जयकिशन प्रसाद खडेलवाल, प्रागरा। प्रकाशक श्रमण जैन भजन भारत यह नाम ऋषभ के ज्येष्ठ पुत्र भरत सम्राट के पर प्रचारक संघ, देहली-मेरठ। पृष्ठ संख्या १००। साईज नाम से प्रसिद्ध हुमा है या दुष्यन्त पुत्र भरत के नाम से, २२४ ३६=८ । मूल्य २ रुपये। यह विवाद कुछ समय से चल रहा है। विद्वान् लेखक ने मग्निपुराण, मार्कण्डेयपुराण, ब्रह्माण्डपुराण, नारद जैन साहित्य में संगीत अधिक प्रतिष्ठित रहा है, पुराण, स्कन्दपुराण, श्रीमद्भागवत और महापुराण के इसकी पोषक प्रस्तुत पत्रिका है । इसके प्रारम्भ में उद्धरणों को देकर यह सिद्ध किया है कि यह क्षेत्र ऋषभ डा. प्रेमसागर का एक लेख है- 'सगीत की निष्पत्ति के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष प्रसिद्ध हमा है। हर शिव से।' इसमें संगीतोपनिषद् सारोद्वार के एक उक्त सभी ग्रन्थो मे इसका उल्लेख स्पष्ट रूप से किया श्लोक (२।४) के प्राशय से यह सिद्ध करने का प्रयत्न गया है । लिंगपुराण (४७.१९-२३) मे तो यहाँ तक कहा किया गया है कि संगीत की उत्पत्ति तीर्थकर ऋषभदेव गया है कि "नाभि ने मरुदेवी पत्नी से अतिशय बुद्धिमान् से हुई है। उक्त लोक में प्रयुक्त हर (शंकर) शब्द ऋषभ नामक उस पुत्र को उत्पन्न किया जो सब क्षत्रियों वृषभनाथ का वाचक है। उनके १००८ नामों मे शिव, मे श्रेष्ठ था। ऋषभ के सौ पुत्र हए, जिनमे भरत ज्येष्ठ शंकर व हर प्रादि है। लेख पठनीय है। 'जैन परिप्रेक्ष्य था। ऋषभ ने भरत का राज्याभिषेक किया मोर स्वय मे भारतेन्दु हरिश्चन्द्र' शीर्षक मे जो भारतेन्दु जी की वैराग्य को प्राप्त होते हुए इन्द्रिय-सर्पो को जीतकर पौर कविता दी गई है, वह परम अहिंसा धर्म का प्राचरण परमात्मा को प्रातःकरण मे स्थापित कर वस्त्र का परि करने वालों को 'नास्तिक' कहने एवं 'हस्तिना ताड्यमानो पिन गच्छेज्जिनमन्दिरम्' जैमी उक्ति गढ़ने वालों की त्याग करते हुए नग्नता को स्वीकार किया। इस प्रकार वे शैव पद (मुक्ति) को प्राप्त हुए । उन्होंने हिमाद्रि--- विवेकहीनता की परिचायक है। श्री मुनि विद्यानन्द जी हिमालय-के दक्षिण दिशागत क्षेत्र को भरत के लिए का 'भाषा एव शब्द' शीर्षक लेख में महत्वपूर्ण सामग्री दिया था। उसी भरत के नाम से विद्वान इसे भारतवर्ष प्रस्तुत की गई है। अन्य सभी लेख उपयोगी हैं। अन्त में कहते है ।" इनके अतिरिक्त एकनाथी भागवत, सूरसागर, सुप्रभात स्तोत्र, दृष्टाष्टक स्तोत्र, महावीराष्टक, भावाशिवपुराण, मत्स्यपुराण, पुरुदेव चम्पू और वसुदेव हिण्डी ष्टक (मराठी) और कछ माध्यात्मिक भजन प्रस्तत किए मादि के अन्य भी कितने ही प्रमाण दिये गये है। गए है। मुखपृष्ठ पर जो सरस्वती का चित्र दिया गया 'वीरभोग्या बसुन्धरा' शीर्षक में क्षत्रिय धर्म पर भी है वह पतिशय मनोहर है। पत्रिका की साज-सज्जा व प्रच्छा प्रकाश डाला गया है। अन्त मे प्रभिधान राजेन्द्र छपाई मादि सभी उत्तम है। इसमें जिन-जिम महानभावों काश के प्राधार से ऋषभ के १०० पुत्री के नामों का भी का सहकार रहा है उनके लिए धन्यवाद देना चाहिए। निर्देश किया गया है । ऋषभ के १६ पुत्रों के नाम विल्ली जैन गयरेक्टरी-सम्पादक श्री सतीशकुमार श्रीमद्भागवत के अनुसार भी दिए गए हैं । ऐसी उपयोगी जैन मादि । प्रकाशक जैन सभा, नई दिल्ली। पृष्ठ संख्या पुस्तक के प्रस्तुत करने में लेखक का परिश्रम पूर्णतया ३२८ । प्राकार २०४३०८ । मूल्य १२ रुपये।
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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