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२६०, वर्ष २०, कि० ५-६
प्रारम्भ हो जाना चाहिए थे। जैन विद्यामों के मध्ययन- ६. जैनकथामोंका विकास-क्रमसे अध्ययन किया जाय। मनुसंधान के लिए संस्कृत भाषा का जान प्रत्येक शोधार्थी ७. राजस्थान की जैन विद्यापों से सम्बन्धित सामग्री को मावश्यक है। जैनदर्शन की महानता ही लोगों से का किसी एक संस्थान में संग्रह किया जाय, जहाँ शोध करवा लेगी । चिन्तित होने की जरूरत नहीं है।
विद्वान् प्राकर कार्य कर सके। अध्यक्षीय भाषण देते हुए डा० दशरथ शर्मा ने जैन ८. जैन विद्या पर शोध निबंध पढ़ने वाले विद्वानों कथाप्रन्थों के उद्धरण देते हुए कहा कि जैन साहित्य में को पर्याप्त सुविधाएं जुटाई जाये। वह जन-जीवन चित्रित है जो वास्तव में इतिहास कहलाने ६. जैन स्रोतों के प्राधार पर राजस्थान का सास्कृ. योग्य है। इस दृष्टि से जैन विद्याओं का अध्ययन अनु- तिक इतिहास लिखा जाय । संधान पाज के युग के लिए अनिवार्य हो गया है। न
१०. प्रति वर्ष राजस्थान इतिहास कांग्रेस के अवसर केवल इतिहास और संस्कृति के ज्ञान के लिए अपितु
पर यह राजस्थान-समिनार मायोजित किया जाय । जीवन में सामञ्जस्य और शान्ति के लिए भी जैन धर्म दर्शन
समापन : के सिद्धांत अधिक व्यावहारिक हैं । मानव का चारित्रिक
अन्त मे सेमिनार के संयोजक प्रो. प्रेम सुमन जैन ने विकास जैनधर्म के अनुकरण से अधिक सुलभ है। किन्तु
दोनो बैठकों के अध्यक्षो, मुख्य अतिथि तथा प्रतिनिधियों का जैन समाज में जो जैनत्व नजर नहीं पा रहा उसके लिए
माभार मानते हुए तथा समाज की सहयोगी संस्थानों एवं विद्वानों को भी अपना दायित्व समझना होगा। विद्वान्
सहकर्मियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन करते हुए सेमिनार का विचारकों ने अभी अपने-अपने विभिन्न सुझाव प्रस्तुत किए ममापन किया। हैं। उनमें से किसी को भी तुरन्त लिया जा सकता है।
स्वागत सहयोग: जैन कथा कोश तैयार करने के साथ-साथ जैनकथानों के
बीकानेर में राजस्थान सेमिनार के संयोजन में स्थाविकास-क्रम का भी प्रध्ययन होना चाहिए । राजस्थान
नीय श्री प्रात्मानन्द जैन सभा, श्री श्वे. तेरापथी महासेमिनार के प्रायोजन से पापने जैन धर्म के संबंध में लोगों
सभा, श्री जैन साधुमार्गी सघ तथा श्री दिगम्बर जैन को इतना सब सुनने समझने का अवसर दिया। मै चाहता
समाज का पूर्ण सहयोग प्राप्त रहा । व्यक्तिगत रूप है कि युवक कार्यकर्ता प्रागे आकर कुछ ठोस कार्य हाथ में
से श्री मोतीचन्द खजाची, श्री रामप्रसाद जैन, श्री ए. के. ले और इन्हे पूरा करें।
जैन, आदि का पार्थिक सहयोग भी रहा। जे. भार. निष्कर्ष-ज्ञापन : द्वितीय बैठक के अन्त में जे. प्रार. एस. के स्थानीय
एस. के स्थानीय सदस्यो ने तो, दिन-रात एक करके इस सदस्य श्री प्रकाश परिमल, उप-निदेशक सादूल राज
सेमिनार को सफल बनाया। सोसायटी इन सब महानुस्थानी रिचर्स इन्स्टीट्यूट, ने सेमिनार मे रखे गए विभिन्न
भावों के प्रति अपना प्राभार व्यक्त करती है। सुझावों को संक्षेप मे इस प्रकार प्रस्तुत किया
जैन विद्यानों के उच्चस्तरीय प्रध्ययन-अनुसन्धान को १. जैन विद्या के ग्रन्थों की वर्णनात्मक सचियों का गति देने की दिशा में जैनॉलॉजिकल रिसर्च सोसाइटी के निर्माण किया जाय ।
तत्त्वावधान में प्रायोजित इस सेमिनार से यह प्रेरणा २. प्रत्येक युगके जैन साहित्यका इतिहास लिखा जाय। मिलती है कि सम्पूर्ण भारतवर्ष तथा विदेशों में जैन ३. पुरातत्त्व एवं अभिलेखीय सामग्री की सुरक्षा की विद्यामों के अध्ययन-अनुसन्धान के जो प्रयत्न चल रहे है, व्यवस्था हो।
उनमें परस्पर सामञ्जस्य स्थापित करने, अनुसंधान कार्य ४. विश्वविद्यालयों में प्राकृत एवं अपभ्रंश का मध्या- को सही दिशा देने तथा अनुसन्धातामों को विभिन्न प्रकार पन प्रारम्भ हो।
से सहयोग देने की दृष्टि से इस प्रकार के प्रायोजन सभी ५. अपेक्षित शोष-कार्यकी विषय सूचियां प्रकाशित हों। क्षेत्रों में अपेक्षित हैं।