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राजस्थानमिनार
२५९ के अध्ययन को गति मिले इसमें मेरा पूरा सहयोग रहेगा। मैं स्रोतों के माधार पर राजस्थान का सांस्कृतिक इतिहास चाहता हूँ कि प्रति वर्ष राजस्थान इतिहास कांग्रेस के साथ लिखा जाना चाहिए । राजस्थान सेमिनार के प्रायोजन से यह सेमिनार मायोजित हो ताकि विद्वान् इतिहास प्रध्ययन मुझे कई प्राशाए हैं। तदनन्तर सयोजक द्वारा धन्यवाद में जैन शास्त्रों का उपयोग करने के लिए प्रेरित हों। ज्ञापन के बाद प्रथम बैठक समाप्त हुई। प्रथम बैठक:
द्वितीय बैठक: सेमिनार की प्रथम बैठक के विद्वान वक्तामों ने दोपहर के भोजन के बाद सेमिनार की द्वितीय बैठक "राजस्थान में जैन विद्यानों का अध्ययन : एक सर्वेक्षण" ३ बजे प्रारम्भ हुई। अध्यक्ष थे डा० दशरथ शर्मा, जोधविषय पर अपने विचार व्यक्त किए। प्रो. नरोत्तम पुर विश्वविद्यालय, जोधपुर । इस बैठक मे विचार-विमर्श स्वामी ने कहा कि राजस्थान शोध-कर्तामों के लिए काम- का प्राधान्य रहा । सर्वप्रथम श्री प्रगरचन्द नाहटा ने जैन धेनु है। बहुमूल्य ग्रन्थों की सुरक्षा में जैनों का विशेष कथा कोश के निर्माण की बात कही। मापने जैन कथा योगदान है। इसका मूल्यांकन होना चाहिए। डॉ. कस्तूर- साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उसमें लोकतांत्रिक चन्द कासलीवाल, जयपुर ने सेमिनार की उपयोगिता पर अध्ययन की पोर विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया। प्रकाश डालते हुए राजस्थान के ग्रन्थ भण्डारों को सामग्री डा. गोपीचन्द्र वर्मा जयपुर ने कहा कि भारतीय संस्कृति के अध्ययन की पावश्यकता पर जोर दिया डा० रामचन्द्र का अध्ययन जैन विद्याप्रो के बिना एकांगी है। विद्वानों राय जयपुर ने जन शिलालेखों एवं मूर्तियों के अध्ययन के को इसमे स्वयं रुचि और लगन से कार्य करना चाहिए। दौरान घटित अपने संस्मरण सुनाए तथा यह अपील की कि क्योकि जन विद्या का अध्ययन करना किसी समाज विशेष जैन विद्यामों के अध्ययन-अनुसंधान को गति देने के लिए पर अहसान करना नहीं है। यदि कार्य ठीक होगा तो जैन समाज को अपना दृष्टिकोण विशाल करना होगा जैन सुविधा स्वयं मिलेगी। मापने जैनॉलॉजिकल रिसर्च सोसाशिलालेखों के अध्ययन से राजस्थान की जनभाषा एवं यटी को व्यापक होने की कामना की एव इसका नाम लोक संस्कृति का अच्छा अध्ययन हो सकता है। हिन्दी मे रखे जाने का सुझाव दिया। श्री रामबल्लभ
राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के सोमानी जयपुर ने जैन स्तम्भ लेखों का उपयोग इतिहास प्राध्यापक डा. जगतनारायण प्रासोपा ये राजस्थान में निर्माण के लिए अपरिहार्य है, इस पर बल दिया। श्री जैनविद्यामों के अनुसंधान को प्रगति के लिए यह प्रावश्यक दीनदयाल पोझा, बीकानेर ने जैसलमेर जैसे उपेक्षित जैन बतलाया कि विश्वविद्यालयों में प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषा विद्या के क्षेत्र की ओर विद्वानो का ध्यान प्राकर्षित किया के जानकार विद्वान् रखे जाने चाहिए। इससे शोधार्थियों एवं वहां एक शोध-सस्थान स्थापित करने का सुझाव एवं रुचिशील प्राध्यापको को जैन साहित्य मे कार्य करने की दिया। डा. महावीरराज गेलड़ा, बीकानेर ने कहा कि प्रेरणा मिलेगी। सहयोग भी। टीमवर्क भी प्रारम्भ किया जैन विद्यालो पर कार्य करने वालो को सामाजिक सुरक्षा जा सकता है।
भी प्राप्त होनी चाहिए । तथा जैन-शोध का समाज के प्रथम बैठक के कार्यकारी अध्यक्ष श्री अगरचन्द नाहटा
लिए भी उपयोग हो तभी प्रचुरता से कार्य हो सकेगा। ने विद्वान् वक्तामों द्वारा उठाई गई समस्याग्रो पर अपने
मापने प्रचार के लिए अग्रेजी माध्यम को अपनाने का विचार व्यक्त किए। प्रापने अपने अनुभव के माधार पर सुझाव दिया । खेद व्यक्त करते हुए कहा कि जिन जैन स्रोतो की मैने डा. कस्तूरचन्द्र कासलीवाल जयपुर ने अपभ्रश ३० वर्ष पूर्व देखा था, पाज वे नष्ट हो रहे है । यह स्थिति साहित्य के भाषा वैज्ञानिक अध्ययन किए जाने पर जोर जैन विद्यामों के अध्ययन के लिए शुभ नही है। सुरक्षा के दिया तथा कहा कि हिन्दी और प्राकृत के बीच की कड़ी लिए व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों तरह के प्रयत्न होना स्पष्ट होनी चाहिए। तभी लोग जैन विद्यामों के महत्त्व चाहिए। दूसरी बात यह कि राजस्थान के इतिहास लेखन मे को समझेंगे । विचारकों के अन्त मे पं० विद्याधर जी शास्त्री 4 स्रोतों का उपयोग बहुत कम हमा है। मतः पुनः जैन ने कहा कि इस प्रकार के प्रायोजन बीकानेर में और पहले