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________________ २६, वर्ष २३ कि० १ अनेकान्त कृष्ण पक्ष में उपवास करने पर उद्यापन करने को कहा। जिण पुज्जा घणभद्दो जिणमह दाणरया ॥ यह सब सुनकर कोयल मूछित हो गई। जल सिंचन विविह पहावण विरहि पालहि जीवदया। कर उसे सचेत किया गया। पश्चात् वह धर्मोपदेश श्रवण पडहु देखि ण सक्कद दुम्भासहि रज्ज। कर सन्यास पूर्वक दिवगत हुई। कोहाणल संजुती सुण्हहिं सिरे पडइ । दम्पति ने भी कोकिल पंचमी व्रत विधिपूर्वक पूरा परि वि सतह लोयहं टंकर देइ खणे ॥ किया भोर समाप्त होने पर उसका उद्यापन किया। जिणमइ वह संताविय जाणिय अप्प मणे । कालान्तर में वे भी सलेखना पूर्वक स्वर्गवासी हो गये। तहिं भवसरि सुयसायरु पत्तउ तासु घरे ॥ जीव दया पालन करने का यह फल है। कोकिल प्रवहीसह पडिगाहिउ जिणमइ भत्तिकरि । पंचमी व्रत इसकी प्राप्ति का साधन है। उच्चासणि पय-खालिय भोयण झत्तिकउ ॥ कोइलपंचमीकहा मखयदाण भणि मुणिवह पवराणि ठियउ । बंदिवि जिणमइ पूंछिउ पखिणि वावरिउ । रिसहपह जिण पविवि सरसइ चित्त परि। गेह कवाडे लोणी पेक्खइ मणिचरिउ ।। कंदकुंदगणि पह-ससि 'पंकयणंदि' भरि ॥ गुह भायर हरि भूसण णिज्जिय पंचसरे । भवहीसरु मणि भासइ पइ सुणहि थिए। गुरु 'परिद कित्ती' सर विमाणवियरे ॥ एह जणि तुवणाह हो षणमइ मुइयचिरु । बंदभि वयंविहि भासमि णिसिणउ भाउकरि । अन्तराय मणि दाणहो पाविय दुक्खभरु॥ जंबुदोउ भरहंतरि 'कुरु जंगल' वरिसे ।। मुणिवरवयणं देहि मपच्छत्तावसरु । सुरसरि बलकल्लोलहि अवलिय रायपुरे। हाहा माणुस णिग्घिणु सावय मग्गचुउ ॥ 'पोरसेण' णिव पालिय वज्जिय चोरणरे ॥ हिंबह भव सरिणाहे दुक्खन यजुभो। पट्टपरिणि सुहमह मिग-णयणि । सामिय तह उवएसह जह मणुयत्तभवे ॥ बणि धणवाल पुरषिणि षणमह ससि-वर्याण ॥ पक्खिणि तुव गिर पाले वि गच्छा लडजवे । तणाहगुणसंपण्णउं षणभद्दो पवरू । मणिवर भासह कोइल पंचमि विहि करह। वणिजिण भत्तहो गंदणि जिणमा गहियकर । तिमिरपक्खि प्रासादहिं उबवासे चरह। पुज्जमहिम मुणिभोयण साविय दिढ कुसलि ।। पञ्च परिस कत्तिय तम उज्जवणउ णिसुणि ॥ सुन्हा चरण ण भावइ सासुहि विहिय कलि। साम वण्ण जिणणाहहो पुज्जाण्हवण मणि । दाणपुज्ज विरयंतहं कलहु जि होइ घरे । मल्लरि कलसभिंगारा चामर पचतहिं ।। जिपमह दाण विहणी अच्छइ दुक्खभरे । घंटाघय कंसाला जिणचेयालयहि । ता घणवाल वणीसह कालेचत्त तणु ॥ किज्जइ विविह पहावण णच्यणतूरविहि ।। परिवेवण दंपइ किउ जाय विसण्णमणु । गीय सद्दभेरी खदंसिय परमदिहि । घणमइ भज्ज अलक्खणि पोसह अप्प तण ॥ जल चंदण कप्पूरहि अक्खयमल्लयहि ।। भत्तारहोण विरोवइ सो सुणकरइ खणु। चरुदीवालि पूवहि बहुफल युत्तहिं । सुण्हा सामुहि भासिउ पियरह मेलि घम्रो । भुति पुराण मुणीसहो वच्छलेण सह ।। कत्तियकिण्ह च उद्दसि भोयण वहुल को। विमल गणेहि पसाहिय सजय वित्तिजहु । देव पियरजण छडिवि अप्पुणि भुत्तिकया । पच भेय पक्वण्णइ पंच सुथाल भरि । णिसि प्रज्जीण करालिय दुहि पाण गया। कुंभपतिलमाणादिहिं भविय घरे । सावयकुलु छंडेप्पिणु अत्तितिरिक्खि हुआ। इय मुणि वयण सुणंती कोइल मुच्छ गया ।। गिह अग्गेंदु मडालहि कोइल पाव कया। अप्प भवतरि जाणेवि कंदती घुलिय ।
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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