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वत्स जनपद का राजनैतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास
डा० शशिकान्त एम. ए., डी. प्रार., पी-एच. डी.
वत्स जनपद भारतवर्ष के मध्यदेश में अवस्थित था मूल्यवान् विविध सामग्री प्राप्त हुई है । और इसकी राजधानी यमुना नदी के उत्तरी तट पर स्थित अब तक प्रकाश मे पाये प्राचीन स्थल यह सूचित कौशाम्बी नगरी थी जिसकी पहचान इलाहाबाद जिले के करते है कि यह प्रदेश मानव के प्राचीनतम पावास-स्थलों कोसम प्राम से की जाती है । बौद्ध एवं जैन साहित्य तथा मे से एक था और यहां भारत की पूर्व-पाषाण युगीन, भास के नाटकों में प्राप्त ज्ञातव्य के अनुसार भारत के मध्य-पाषाण युगीन, नव्य-पाषाण युगीन एव ताम्र-पाषाण छठी शती ई० पू० के राजनैतिक मानचित्र के प्राधार युगीन सभ्यताओं का क्रमिक विकास हुआ था। यहा के पर यह प्रतीत होता है कि वत्स जनपद यमुना नदी के ताम्र-पाषाण युगीन लोगो का पश्चिम भारत मे बसे उभय तटों पर गगा-यमुना दोघाब के निचले भाग में अपने समवतियों से भी सहज सम्पर्क था। पौराणिक स्थित था। दोमाब में पश्चिम की ओर इसका प्रसार
अनुश्रुतियों से ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल मे पांडु-गगा प्रौर सेगर-यमुना सगमो तक का तथा पूर्व वत्स प्रदेश प्राय' काशी राज्य के अधीन रहा। कौशाम्बी
पार गगा-यमुना सगम तक था, भार इसका सामाग्रा में प्रकाश मे पाया पुरातात्त्विक साक्ष्य यह सूचित करता को उत्तर मे गंगा, पूर्व में करमनासा, दक्षिण में सोन
म गगा, पूर्व में करमनासा, दाक्षण म सान प्रतीत होता है कि वशो की प्रार्य जाति यहां महाभारत तथा पश्चिम मे केन नदिया पावृत करती थी। अक्षाश
युद्ध (१५वी शती ई० पू०) के सौ-दो सौ वर्ष पहले ही २४.४ व २६२ उ० तथा देशान्तर ८०° व ८४° पू० के पाकर बसी होगी। मध्य स्थित कानपुर, फतेहपुर, इलाहाबाद, वादा, मिर्जापुर, वाराणसी, गाजीपुर और रीवा के वर्तमान जिलो का
हस्तिनापुर के विनाश के उपरान्त लगभग १३वीअधिकाश भूभाग इसके अन्दर समाविष्ट था। कोसल,
१२वी शती ई० पू० मे परीक्षित् के छठे वशज कुरु राजा काशी, मगध, अग, कलिंग, चेदि, अवन्ति, कुरु और पचाल
निचक्ष ने कौशम्बी को अपनी गजधानी बनाया और जनपद उसे प्राय: वृत्ताकार व्यूह मे घेरे हुए थे और थल
तत्पश्चात २३ अन्य कुरु राजानो ने कौशाम्बी से ही राज्य मागों एवं अन्तर्देशीय जल मार्गों द्वारा प्राचीन भारत के
किया जब तक कि उसका विलय मगध साम्राज्य मे नही महत्त्वपूर्ण राजनैतिक एवं व्यापारिक केन्द्रो से इसका हो गया। उक्त राजाओं में से शतानीक द्वितीय और व्यवस्थित सम्पर्क था ।
उसका पुत्र उदयन छठी शती ई०पू० मे विद्यमान थे। प्रायः गत सौ वर्षों में की गयो खोजो के फलस्वरूप
लौकिक संस्कृत साहित्य एव जैन, बौद्ध तथा ब्राह्मणीय इस प्रदेश मे ऐतिहासिक महत्त्व के लगभग एक सौ स्थल
धार्मिक साहित्य में उदयन के व्यक्तित्व एवं कार्यकलापो प्रकाश में प्रा चुके है, और उन स्थलो से ऐसी काफी
से सम्बन्धित कितने ही प्रसग मिलते है। अवन्ति के सामग्री मिली है जिसकी सहायता से इस प्रदेश के प्राचीन
राजा प्रद्योत की पुत्री वासवदत्ता के साथ उसके प्रणय की इतिहास का पुननिर्माण किया जा सकता है। कौशम्बी
कथा प्राचीन भारतीय साहित्य में विशेष रूप से लोकप्रिय और भीटा में बड़े पैमाने पर पुरातात्त्विक खुदाई भी हुई
थी। उदयन लगभग ५५५ ई०पू० में सिंहासनारूढ़ हुमा है और वहां खुदाई द्वारा ऐतिहासिक दृष्टि से प्रति
प्रतीत होता है । तत्पश्चात् ही उस समय विद्यमान राज्यो लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा पी-एच. डी. की उपाधि का विघटन तेजी से प्रारम्भ हो गया और प्रायः एक के लिए स्वीकृत शोध-प्रबन्ध का सार-संक्षेप । दशक के भीतर ही वत्स के पूर्व में सर्वशक्ति-सम्पन्न