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________________ दक्षिण भारत से प्रान्त महावीर प्रतिमाएं २४५ अलग पीठिका पर उनके शासन देवतामो को उत्कीर्ण ८. महावीर की कई प्रतिमाएँ हैदराबाद संग्रहालय में किया गया है। साथ ही स्कन्धों के समीप दोनों पोर सकलित है।" इस संग्रहालय में स्थित एक विशिष्ट दो चावरधारी प्राकृतियाँ प्रदर्शित है और ऊपर की पोर प्रतिमा मे कायोत्सर्ग मुद्रा में खडी महावीर की प्राकृति उड़ती हुई गन्धर्वो और अन्य कई मवान प्राकृतियों को के चारो ओर अन्य २३ तीर्थङ्करों को मूर्तिगत किया गया मूर्तिगत किया गया है। बिल्कुल इन्ही विवरणों से युक्त है। नीचे की ओर दो चाँवरधारी प्राकृतियाँ चित्रित है। एक अन्य प्रतिमा भी इसी गुफा मे उत्कीर्ण है। स्कन्धों के ऊपर दोनो पावों मे दो गजारूढ़ और वाद्य ७. महावीर की एक विशिष्ट ताम्र प्रतिमा दक्षिणी वादन करती प्राकृतियाँ उत्कीर्ण है । मूलनायक को केशाकन्नड क्षेत्र से प्राप्त हुई है जिसमे उ कीर्ण सिंह प्राकृति वलि गुच्छको के रूप में प्रदर्शित है। एक अन्य मनोज ही केवल इसके महावीर प्रकन होने की पुष्टि करता है। प्रतिमा मे कायोत्सर्ग मुद्रा में खडी महावीर प्राकृति को पद्मासनस्थ देवता के हाथ योगमुद्रा में प्रदर्शित है। मम्तक २ खडी और २१ प्रासीन तीर्थरो की प्राकृतियों मे के चारों ओर सप्तफणो मे निमित एक छत्र के साथ ही वेष्टित चित्रित किया गया है। देवता के पृष्ठ भाग में शासन देवतामों और ग्राभरण व अल करणो से युक्त वृत्ताकार प्रभामण्डल और विरेवात्मक किरीट, जिस पर सेवक-से विकारों की भी प्राकृतियो का भव्य सयोजन हुअा कलश स्थित है, उत्कीर्ण है । वारगल से भी महावीर की है। सहायक प्राकृतियों के अलकृत होने के बावजूद मुख्य दो प्रामीन प्रतिमाएँ प्राप्त होती है, जिनमे से एक मे प्राकृति तुलनात्मक दृष्टि से बिल्कुल मादी है। देवता को मृत्ताकार प्रभामण्डल और गुच्छको के रूप मे पीठिका पर उत्कीर्ण लेख इस प्रतिमा को १०वीं-११वी प्रदर्शित केशावलि से युक्त चित्रित किया गया है। दूसरी सदी में प्रतिष्ठित बतलाता है। किन्तु इस प्रतिमा की प्रतिमा मे ये दोनो ही विशेषताएँ अनुपलब्ध है । चालुक्यों पहचान महावीर अंकन से करना पी०सी० नाहर का के विशिष्ट कलाकेन्द्र बादामी (६५० ई.) से भी तर्कसंगत नही प्रतीत होता है। उनकी धारणा है कि महावीर की एक मनोज्ञ प्रतिमा उपलब्ध होती है। यह चित्रण पार्श्वनाथ का होना चाहिए क्योंकि सप्त महावीर की कल विशिष्ट मूर्तियाँ दक्षिण भारत के प्रसिद्ध सर्पक्षणों का घटाटोप २३वे तीर्थ छुर की ही विशेषता कला-केन्द्र एलोरा में भी उत्कीर्ण है ।" गुफा न० ३०, है। स्वय हडवे ने महावीर के दोनो पाश्वं स्थित ३१.३२ (इन्द्रमभा), ३३, ३४ मे महावीर को अनेकशः प्राकृतियो की पहचान धरणेन्द्र और पद्मावती से को अपने यक्ष-यक्षिणी, मातङ्ग भौर सिद्धायिका के साथ है, जो पार्श्वनाथ के शासन देवता है । महावीर के शासन ध्यान मुद्रा मे पासीन चित्रित किया गया है। इन चित्रणो देवतागों का नाम मातंग और सिद्धायिका है । जहाँ तक में महावीर को लांछन (सिंह), त्रिछत्र, श्रीवत्म यादि से पीठिका पर उत्कीर्ण सिंह प्राकृति के प्रौचित्य का प्रश्न युक्त प्रदर्शित किया गया है । ये ममस्त मूर्तियां वी है वह महावीर के लाछन रूप में उत्कीर्ण न होकर शताब्दी से ११वी शताब्दी के मध्य निर्मित हुई प्रतीत सिंहासन का प्रतीक है। मै भी मात्र सिंह के प्राधार पर होती है। इस प्रतिमा की महावीर प्रकन से पहचान करना उचित -पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी-५ नहीं समझता। १०. Rao, S. Hanumantha, Jainism in the ८. Hadaway, w. S., Notes on Two Jaina Deccan, Tour. Indian History, 69.XXVI, Metal Images, Rupam, No. 17, Jan. 1948, Pts. 1-3, pp. 45-49. 1924, pp. 48-49. ११. Gupte, Rames Shankar & Mahajan, B. D. ६. Nahar, P.C., Note on Two Jain Images from South India, Indian Culture, Vol. I.. Ajanta, Ellora and Aurangabad Caves, July 1934-April 1935 Nos.1-4,pp. 127-28. Bombav, 1962, pp. 129-223.
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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