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२४४, वर्ष २३, कि० ५-६
अनेकान्त
पोर) और बाहुबलि की भाकृतियां निर्मित हैं । पाश्र्वनाथ प्रदर्शित किया गया है। पीठिका के मध्य मे चित्रित सिंह के मस्तक पर पांच सर्पफणो का घटाटोप प्रदर्शित है। देवता का लांछन है और पार्श्व-स्थित सिंह प्राकृतियाँ निर्मिती और शैली के प्राधार पर इस मूर्ति को स्वी पीठिका के मिहासन होने के सूचक है। प्रतिमा के काफी शती ई० मे तिथ्यांकित किया गया है। महावीर की एक भग्नावस्था में होने के उपरान्त भी पृष्ठभाग में प्रभाअन्य ध्यानमुद्रा में पासीन मूर्ति (४ इंच ऊँची) पुडुकोट्ट मण्डल रहे होने का प्राभास स्पष्ट है । महावीर की से प्राप्त होती हैं, जिसे डा० यू० पी० शाह ने राष्ट्रकूट पीठिका पर ध्यान मुद्रा मे प्रासीन एक अन्य कास्य प्रतिमा काल का बताया है।
का प्राप्ति-स्थल अज्ञात है। पात्र शैली मे निर्मित कास्य ५. दक्षिण भारत के बेल्लरी जिला के हरपन हल्लित- प्रतिमा के पादपीठ के मध्य में महावीर का लाञ्छन लुक नामक स्थल के कोगली ग्राम स महावीर की तीन उत्कीर्ण है, जिसके दोनो पोर चित्रित सिंह प्राकृतियाँ विशिष्ट कांस्य प्रतिमाए प्राप्त होती है। ये सभी सिंहासन के सूचक है । यह प्रतिमा सप्रति मद्राम गवर्नमेण्ट चित्रण संप्रति मद्रास गवर्नमेण्ट म्यूजियम, मद्रास । म्यूजियम, मद्रास मे स्थित है। में संगृहीत है। इनमें से पहली मूर्ति (३६.३ से. ६. महावीर प्रतिमानो के कई उदाहरण चित्तौड मी. ऊंची, १६.५ से. मी. चौड़ी) मे पीठिका जिले में स्थिति पल्लव युगीन वल्लिमलाई की जैन गुफाम्रो पर स्थित पद्मासन पर महावीर कायोत्सर्ग मुद्रा में उत्कीर्ण है ।' पास-पास ही में उत्कीर्ण दा महावीर में खडे है। महाबीर के दोनो पाश्वों में उनके यक्ष व मतियों मे मुलनायक की प्राकृति एक पीठिका पर ध्यान यक्षिणी का चित्रण हमा है। सिर के पीछे उत्कीर्ण प्रभावली मद्रा में पासीन है। तीन भागो में विभक्त पादपीठ के पर, जो काफी खण्डित है, अन्य पूर्ववर्ती २३ तीर्थङ्करों दो छोरों पर प्रदर्शित सिंह प्राकृतियां सिंहासन के भाव का एक वृत्त के रूप मे प्रकन ध्यातव्य है। देवता की का बोध कराते है, और मध्य में स्थित सिंह महावीर का केश रचना छोटे-छोटे गुच्छको के रूप में प्रदर्शित है। लाछन है। महावीर के दोनो पावों में दो चांवरधारी बालों के गुच्छकों का मस्तक के दोनो ओर से स्कन्धों तक
प्राकृतियाँ चित्रित है। इन दोनो महावीर प्रतिमानो के लटकते हए अकन इस प्रतिमा की अपनी विशेषता है। होनो
दोनो पाश्वों में एक स्त्री व पुरुष प्राकृति प्रदर्शित है, जो
श्री यह प्रतिमा निर्मिती की दृष्टि स उत्कृष्ट है । दूसरी सम्भवतः सम्मिलित रूप से दोनो के यक्ष-यक्षिणी प्राकृति मनोज्ञ प्रतिमा (१३.३ सें. मी. ऊँची १७.४ से० मी० के लिए प्रयुक्त हसा लगता है । इसी गुफा के बाह्य चौड़ी) मे यासीन महावीर की पीठिका के मध्य में एक
पाठका क मध्य में एक चट्टान पर भी महावीर की दो पासीन प्रातमाएं देखी जा सिंह को दो घुटने टेके उपासक आकृतियो से वष्टित सकती है। पूर्व प्रतिमानो की तुलना में ये कुछ दूर-दर प्रदर्शित किया गया है। पृष्ठभाग में उत्कीर्ण प्रभामण्डल उत्कीर्ण है। दोनो ही मनियो में पिछत्र के नीचे ध्यानमे दो गन्धर्वो और महावीर से सम्बद्ध विद्या देवियो को
निमग्न महावीर चौकोर थिका में उत्कीर्ण है । पृष्ठभाग चित्रित किया गया है। देवता के दोनो पाश्वों में उनके ।
में ममकोण चतुर्भुज के आकार का अलकरणहीन कान्तियक्ष यक्षिणी की प्राकृतियाँ स्थित है। २६ से. मी.
मण्डल प्रदर्शित है । इमी स्थल पर उत्कीर्ण एक अन्य ऊँची तीसरी प्रतिमा मे मूलनायक को तीन सिंहों का
प्रतिमा मे समकोण चतुर्भुज प्राकार के प्रभा मण्डल से चित्रण करने वाले पादपीठ पर कायोत्सग मुद्रा में खड़ा यक्त महावीर को एक पीठिका पर त्रिछत्र के नीचे प्रासान ५. Sundaram T. S., Jaina Bronzes from चित्रित किया गया है। महावीर के दोनो पावों में अलग
Pudukottai, Lalit Kala Nos. 1-2, p. 79. ६. Ramachandran, T. N.. Jaina Monuments ७. Ramchandran,T. N. Ibid., descriptions of
and Places of First Class Importance, the images are mainly based on the plates Calcutta, All India Sasana Conference, of the Vallimalai figures given in the 1949, pp. 64-66.
book.