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________________ शात कवियों की कतिपय प्रशात हिन्दी रचनाएं २४१ मन्दिर टोंक के गुटका न० ५०ब में 'विनोदीलाल' के तीन मलिनाथ बिन उमहा जोषा, गीत भी उपलब्ध है मुनिसुबत जिन जगत समोषा । १. सुमति कुमति को झगड़ो : समोधि जगत उधार कीन्हो । यह गग सारग मे लिखा हा १२ चरण का गीत नमि जिनेस मनाइए । है । इस गीत मे कृमति और सुमति दोनों ही 'चेतन' को श्री नेमिनाथ जिनन्द के गुन । अपने वश में करने का प्रयत्न कर रही है। चेतन के प्रति मधुर सुर स्यों गाइए । कुमति का व्यवहार कुनागे जैसा ही हैकुमति कहै सुनि कंत बावरे, यह तोकू फुसलावं। विश्वमूषरण : यह दूती चंचल सिवपुर की, कितेक कंद याहि प्रावे। प्रागरा जिले में स्थित हथिकात नगर के प्रसिद्ध हो सूधी प्रापनि घर बैठी, ताों ग्रंक लगावै। भट्टारक विश्वभूषण की 'निर्वाण मंगल', 'अष्टाह्निका कथा', तो सौं कत पाय कर भोदू, क्यों नहिं नाच नचावं। 'पारती', 'नेमि जी का मंगल', 'पार्श्वनाथ का चरित्र', २ जिन गारी: पचमेरु पूजा', "जिनदत्त चरित्र', 'जिनमत खिचरी' पौर इस गीत को रचना फागुन शुक्ला १३ सवत् १:४३ पदा का काव्यात्मक परिचय 'हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और मेहई । इस गीत मे कवि ने कूमति के दुश्चरित्र की चर्चा कवि' में प्राप्त है। विश्वभूषण की अन्य एक रचना तेरहकरते हए चेतन को 'सूमति' को ध्याहने का प्रेरणा दी पथी मन्दिर टोक के एक गुटके में मिली है। मुनीश्वरां को बोनती: गारी तो एक सुनो तुम चेतन, सुनत श्रवण सुखवाई। तुम्हरी तो कुमति बुर ढंग लागी, समझत नहि समुन्नाई। दू ढाडी भाषा के इस गीत में ८ चरण है । इसमें अति ही प्रचंड भई दारी डोल, जोबन की मतवारी। मुनि के गुणो की प्रशसा करते हुए उनके प्रति कवि ने पंचन स्यों बारी रति मान, कान न करत तुम्हारी। अपना भाव-भ शरीर अपनी भाव-भीनी श्रद्धा प्रकट की है बाईस परीस्या सहै दिन राति, छांडो संग कुमति बनिता को, घर ते बेड निकारी वे। असुभ करम पर जालतां । व्याहौ सुमति बधू सो बनिता उर न ब्याहनहारी वे। भवि जीवानं समोधनहार, ३. चौबीस तीर्थवरो की स्तुति प्राप तिरंजो भव त्यारता। इस रचना में कवि ने चौवासो तीर्थरो के प्रति अंसा जो मुनिवर है कोई प्राजो, अपना भक्ति-भाव प्रदर्शित किया है ज्यांन नति उठि करस्यां वंदना । श्री कुंथनाथ रिक्षा करौ मेरी, विसभूषण इहि कोयो छ वषाण, परह जिनन्द सरनि हो तेरी । जे र भणे जी भव सुख लहै । -राजकीय महाविद्यालय, टोंक
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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