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दक्षिण भारत से प्राप्त महावीर प्रतिमाएँ
श्री मारुतिनंदन प्रसाद तिवारी 'मानसार' के अनुसार ध्यान-निमग्न जिन मूर्तियो को बतलाते है । पृष्ठभाग मे प्रालेखयुक्त मूर्ति (ऊंचाई ३४.३ मानवाकार, द्विभुज, दो नेत्रो, एक शरीर व श्रीवत्स चिह्न से० मी०, चौडाई २२.१ सें. मी.) मे महावीर को सहित निराभरण व वस्त्ररहित उत्कीर्ण किया जाना चाहिए- उल्टे कमल के पासन पर प्रद्धपद्मासन मुद्रा में पासीन निराभरणसर्वाग निर्वस्त्रांगमनोहरम् ।
प्रदर्शित किया गया है । इस चित्रण की विशेषता है पृष्ठसत्यवक्षस्थले हेमवर्ण श्रीवत्सलाञ्छनम् ॥
भाग मे उत्कीर्ण कान्ति मण्डल से संबद्ध रूप में दो मकर
मुख वाले चौड़े दण्डो का अकन, जिसे दो छोटे स्तम्भ -मानसार, ८१-८२
दोनों पाश्वो मे सहायता दे रहे है। इन दोनों स्तम्भो के प्रागे लिखा है कि तीर्थकर को या तो समभग मुद्रा बाह्य भाग में दो क्रोधित मिह प्राकृतियों को मकर मे (कायोत्सर्ग) खडा या अभय मुद्रा का प्रदर्शन करते ।
प्रणाली युक्त घुमानों को सहायता देते हए उत्कीर्ण किया हए होना चाहिए। पचासन मुद्रा में प्रासीन होने गया है। इन दण्डों से पूनः दोनों पोर एक खड़ी चामर. पर तीर्थकर की वाम हथेली पर दाहिनी हथेली ऊपर की धारी प्राकृति को प्रकट होते दिखाया गया है । दोनो ही पोर स्थित होगी। सिंहासन व प्रभावली पर नारद, प्राकृतियां मुकुट आदि विभिन्न प्रलकरणो से सुसज्जित ऋषियों, विद्यापरों, देवगणों को खड़े या प्रासीन मुद्रा मे है। मध्य का समस्त प्रकन एक देवालय के रूप मे प्रदमूर्तिगत किया जाना चाहिए, जो देवता की वन्दना करते शित चित्रण से वेष्टित है। सपूर्ण प्रकन का सपुजन एक और भेंट चढ़ाते हुए चित्रित होगे । सिंहासन के नीचे दो देवालय के रूप में कल्पित है। इस चित्रण के ऊर्ध्व भाग तीर्थकर प्राकृतियां उपासना मुद्रा मे प्रकित होगी। साथ मे दो माल्यधारी प्राकृतियाँ उत्कीर्ण है और अन्तिम वाम ही सिद्धो, महतो को भी उत्कीर्ण किया जाना चाहिए। भाग मे मस्तक पर सप्तफणों के घटाटोप से पाच्छादित मध्यस्थ जिन प्राकृति उत्तम-दशताल-माप के अनुसार तीर्थकर पार्श्वनाथ का चित्रण हुमा है। दूसरी मोर भी निर्मित होगी।
सभवत: एक तीर्थकर प्रतिमा रही होगी, जो संप्रति नष्ट __ दक्षिण भारतीय तीर्थकर प्रतिमानो मे उत्तर
हो चुकी है । दूसरी प्रतिमा सभवत: आदिनाथ की रही भारतीय तीर्थकर प्रतिमानो के विपरीत सामान्यत:
होगी । पीठिका के मध्य भाग में उत्कीर्ण सिह प्राकृति उष्णीष का अभाव होता है और श्रीवत्स चिह्न तीर्थकर
महावीर के लाछन के लिए प्रयुक्त हुई है। इस अंकन के के दाहिने वक्ष पर उत्कीर्ण किया गया है।
निचले भाग मे दाहिने पार्श्व के निकले (projection)
हुए भाग में एक द्विभुज और तुदिली यक्ष प्राकृति प्रदर्शित तीर्थकर महावीर को दक्षिण भारतीय शिल्प में है जिसकी वाम भजा में एक थैला उत्कीणं है । इस उपयुक्त निर्देशो के प्राधार पर ही विभिन्न युगो मे प्रकन के दसरे पावं मे प्रबिका को चित्रित किया गया मूर्तिगत किया गया। कतिपय मूर्तियो का विवरण इस
१. Shah, Umakant P., Jaina-Bronzes in Hariप्रकार है
das Swali's collection, Bull. of Prince of १. श्री हरिदास स्वालि के संग्रह मे स्थित एक महा- Wales Museum of Western India, Bombay, वीर प्रतिमा को डॉ० यू०पी० शाह दक्षिण भारत की कृति No.9, 1964-66, pp. 47-48.