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ज्ञात कवियों की कतिपय अज्ञात हिन्दी रचनाएं
डा० गंगाराम गर्ग
संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रश भाषाश्रो की तरह हिन्दी भाषा मे भी पर्याप्त जैन साहित्य लिखा गया है। हस्तलिखित ग्रन्थ भण्डारो की खोज करने पर अनेक जैन कवि प्रकाश में आए है फिर भी कुछ घच्छे कवि ऐसे हैं जिनकी समस्त रचनाएं उपलब्ध नहीं हो पाई है। यहाँ कुछ प्रसिद्ध कवियो की प्रज्ञात रचनाओंों का परिचय प्रस्तुत है
हर्षकोति
डा० प्रेमसागर जैन ने इन्हें हर्ष कति रिसे पृथक मानते हुए इनका निवास स्थान जयपुर क्षेत्र मे होने की सभावना प्रगट की है। हर्षकीर्ति की रच नाऐं जयपुर के वधीयन्द, भूणकरण और ठोलियो के जैन मन्दिरों तथा टोक के पांच मन्दिरो मे मिलती है । दूसरे हर्ष कीर्ति की रचनाम्रो पर ढूढ़ारी भाषा का पर्याप्त प्रभाव है। इन दो कारणों से हर्षकीर्ति ढू ढ़ाड़ प्रदेश के प्रतीत होते है। हर्ष कोति की एक रचना बड़ोदा गाँव मे लिखी गई, जो सवाई माधोपुर के पास स्थित है। इससे हर्षकीर्ति का मुख्य साधना स्थल बडोदा गाँव प्रतीत होता है। डॉ० प्रेमसागर जैन ने हिन्दी जंन भक्तिकाव्य पौर कवि में हर्षकीति की 'पंचगति बेलि', 'नेमिनाथ राजुल गीत', 'मोरा' 'नेमीश्वर गीत, बीस तीर्थकर खड़ी 'चतुर्गति बेलि', 'कर्महिण्डोलना' छहलेश्या' 'कवित्त और भवन व पद संग्रह प्रादि रचनाओ की चर्चा की है। उक्त रचनात्रों के अतिरिक्त इनकी निम्नाकित रचनाएं प्राप्त हुई है
१. त्रेपन क्रिया जयमाल :
इस ग्रंथ की रचना बड़ौदा गाँव मे सवत् १८६४ में हुई। इसमें २६ छंदों मे आवकों की ५३ वा का वर्णन किया गया है ।
२. सोमन्धर का समोसरण :
इसमें ६ मोटक छंदों में तीर्थंकर सीमंधर स्वामी के
समवशरण का उत्सव वर्णित हुआ है ।
३. जिनराज को जयमाल :
इसमे १० छदों मे जिनेन्द्र के नाम स्मरण की महत्ता कही गई है।
४. बारहमास्यो :
इसमे २१ छदों मे राजुल की विरहावस्था का चित्रण है । राजुल के विरह को उद्वीप्त करने वाला प्राकृतिक चित्रण भी बड़ा मर्मस्पर्शी बन पड़ा है :हो स्वामी चंतज प्राथा मोरीया, नर नारी मो
भंवर गुजार करें घणा, प्रति ही गुण सोहै ॥१६॥ हे स्वामी साला धन मोरीया, मोरी सब बेलि
मोरी चम्पा केतको मुझ सही |१७| ५. जिनजी को बधावो
यह आदि तीर्थकर के जन्मोत्सव का बधाई गीत है। ६. परनारी-निवारण गीत :
इस गीत में परनारीगमन को स्वास्थ्य, सम्मान श्रीर श्रात्म-शान्ति का विनाशक कहा गया है
जीव तपं जिम बीजली रे, मनड़ो रहे न ठांम काया दाह मिटं नहीं, गाँठ न रहे दाम । विनोदीलाल :
डा०
प्रेमसागर जैन पोर पं० परमानन्द ने क्रमशः 'हिन्दी जन भक्ति काव्य और कवि तथा श्रनेकान्त में प्रकाशित 'अग्रवालों का जैन संस्कृति मे योगदान' निबन्ध में विनोदीलाल का परिचय देते हुए उनको 'भक्तामर कथा' 'सम्यक्त कौमुदी' 'श्रीपाल विनोद' राजुल पचीसी' 'नेमिनाथ का व्याला' 'फूलमाला पच्चीसी' और 'नेमिनाथ का बारहमासा आदि सात एचनामों की चर्चा की है। कवि विनोदीलाल के सर्वयों की मर्मस्पर्शिता 'रसखान' की याद दिला देती है। तेरहपंथी