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२१८, वर्ष २३, कि० ५-६
इस प्रकार के अनेक क्षब्द महाकवि पुष्पदन्त रचित सिद्धकपा-नरसेन 'महापुराण' में उपलब्ध है। सम्भव है कि इनमे से कई वरटियाल (१,१,१) जग्णवाम-जनवासा (१, १२) शब्द 'देशी नाममाला' या पाइयलच्छो नाममाला' में गूडर-गूदड़ (१ १०) लगुष्ण-लगुन (१, १२) समान या भिन्न अर्थ में देखने को मिल जाये, किन्तु संट (१, १३) जण-मत (१, १४) प्रधिकतर शब्द नये टकसाली या भिन्न भाषाम्रो से प्रागत किकाण (१,१५) पहाड-पहाड (१, २३) है। कतिपय वाद-सस्कृत को काव्य परम्परा से समागत घाड-घाटी (१.२३) टोपरी-टोपी (१,२६) है। ऐसे शब्दो की सख्या भी कम नहीं है जो प्रायतर टाटर शिरस्त्राण (१,२६) वाखरु (१, २६) भाषानों के कहे जाते है। विशेष कर महापुराण में ऐसे चाटी (१, ३२) कचोल कटोरा (१, ३५) शब्द प्रचुर है, जो द्रविड भाषाओं के है। उनमे से कुछ
राणा-राजा (१, ३६) विल्लहई-बिललाती(१, ३७) सब्द देशी नाममाला मे भी मिलते है। प्राकृत बोलचाल
लह-लोहू, रक्त (१, ४४) पाछे-पीछे (१, ४४) की भाषा होने के कारण अनेक देशी प्रवाहो के शब्द
णातिय उ-नाती (१,४६) कबलि-कण्ठ का प्राभूषण (१,५४) सहज ही चिर काल से व्यवहृत होते पा रहे है।
कडय-कडा (२, १६) दमाम-दमामा वाद्य (१, ५४) ___महापुराण के अतिरिक्त कई अपभ्रश के हस्तलिखित छइ-है (२-१६) डि चाद्यविशेष (४२, १) तथा अप्रकाशित प्रबन्ध काव्यों में ऐसे शब्द मिलते है नो
संतिणाहचरिउ-महिंदु अन्य काव्य-कृतियो में तथा कोशो मे नही मिलते। ऐसे
सवील-पक्षिविशेष (१, ६) दुगालि (१, ७) ही कुछ शब्दो की सूची यहाँ प्रस्तुत है
विट्टिर-टिटहरी (१. ६) डुर इव (१, ४) सुदंसण चरिउ (प्रब प्रकाशित)
सप्पर (१, ३)
डोहिय (१, ७) मंट (६,११) फरिय (५, २१)
वरकर (१,८) णिन्भमि उ (२, १६) गोल्ली (४, ६) ट रट र (८,१६)
भट्ठउ (१, १४) छायाल-छियालीस (३,११) खुटु (६, ११)
घवघव (३, ७) चडफड-छटपटाना (२, २०) ममण (३,७) थडा (२, १३)
रिट्रणेमिचरिउ-धवल झडा (२ १३) रिट्ठी का गुली (४, ५) डेडा (३, ७) छेर इ-छिनत्ति (६, ११)
ललक्क (४१, ६) दट्टर (२३, ६) घुग्घुर (३, ७) सल्लइ (४, ६)
डिक्कर (१३, १०) विट्टल (१३, १२)
पहिल्नी-प्रथम, पहली (१४,१) लड मनोज्ञ ? (१४, ५) जिनदत्तचरित-लाखू
वियाई (१४, ६) वहल-विल (१४, १०) णी उ-नीच (१८) खणरूवा-विद्युत् (५, ६) मद्दि (१४, १४) गारी (१४, १६) हीर-अधीर (४,५) पायाल-शेष (४, ३) मिग्गु-मृग (१४, १६) चदोबा-च दोवा (१५, १ मल्हाविय-भ्रमित (४, ३) विच्छिडु-निरन्तर (३, ३३) भडारी (१५, ३)
ढोउ (१६, १०) फर-खेडा, गाव (३, ३१) सीयर-स्वीकार (३,३०) रडी विधवा (१५, १०) माढा (१५, १३)। बालुम्वि-गयचकित (३,२७) कंधर मेध (३, २५) प्रल्ल-पशु विशेष, व्याघ्र ?(१३,६) विसउ विश्रुत, प्रसिद्ध(३ २५) तिमिय-मत्स्य (३, २५) अणुवैक्ख अनुप्रेक्षा, अनुचिन्तन (१५,४) प्रलयद्द सर्प (१, ११) उक्कोविय उद्घाटित(१,१९) पिछल्ली-पिछली-पिछली (१४, १) वणफणि-मयूर (२, १५) भुसुरु ताम्बल (२, १७) इगम-जाति विशेष के देव (१४, ३) णिहुवउ-मौन (३, १०) बरु-श्रेष्ठ (३, १२) मोट्टिया 'मोट्टियारुण धडियउ वज्जे' (१४, १२)