________________
२१९
प्रपत्रंश शब्दों का प्रर्ष-विचार अपभ्रंश के कई प्रकाशित काव्यों में भी ऐसे शब्द पियलि-टीका, तिलक (८, १४, १४) मिलते है जिनके दर्शन प्राकृत-कोशो में नहीं होते । विशेष रसट्ट-रसाढ्य (४, ८, १४) रूप से 'प्राकृत शब्द-महार्णव' में नही पाये जाने वाले
खुद एक वाद्य (५, ६, १३) शब्दों की तालिका इस प्रकार है :
सलसलिय-सलसलाया, कांसे का शब्द (५, ६, ८) करकंडचरित
हूहुय-शंख का शब्द (१, १५, ६) काणि-लज्जा (१, २, ६)
भविसयत्तकहा टेवंत-टेना, तेज करना (१०, १६, ८)
गयारि-गवार (१४, ५, ७) णण्ह-स्निग्ध (८, २, ६)
प्राभुरीय-दही बडा ? (१२, ३, ६) पेइया-पेटिका, पेटी (१, ७, २)
खज्जा-खाजा, एक प्रकार का पक्वान्न (१२, ३, ४) फेंफरि-फल विशेष (६, २१, ५)
सुहाली-एक प्रकार का पक्वान्न (१२, ३, ४) जंबूसामिचरिउ
हुक्कडं ? (२, २, ६) उसं-पोस (१० ७, ६) प्राकृत शब्द मे उस्स है।
ढोक्कर प्रायुध विशेष (२, २, ७) उच्चेडिय- उच्चाटित, उचटा हुअा (६ ४, ६)
णिरारि उ-अलग किया हुअा (२, १२, ३) उण्णाह-बाढ (६, १०, १)
मंच्छुडु-शीघ्र (२, १४, ३) उद्दम-उपदेश (प्रशस्ति २०)
यद्यपि महाकवि धनपाल कृत 'भविसयत्तबहा' के उडम-रोमाचिन (१, ८.३)
विशिष्ट शब्दो का संकलन 'पाइन-सह-महण्णव' के द्वितीय उप्पुछिय-ऊपर से पोंछी हुई (१०, १६, ६)
सस्करण में किया गया है, फिर भी अनेक शब्द ऐसे है उपफेरिय सवारी हुई (१०, १६, ६)
जो उममे पाकलित नही हो सके है। उन सबका उल्लेख उल्लिच्चण-रहट (४, ११, ६)
करना इस छोटे से निबन्ध में सम्भव नही है । इसी प्रकार प्रोडिय-उठाने वाला (१, ११, ६)
अपभ्रश के अन्य अप्रकाशित तथा प्रकाशित काव्यो में प्रोडिय-उठाने वाला (१, ११, ८)
अनेक शब्द ऐसे मिलते है जो प्राकृत के कोशो मे परिपोहालिय-प्रवलिप्त (६, १०, १३)
लक्षित नहीं होते है। कचाइणि-कात्यायनी (५, ८, ३५) डोह-दोह , अवगाह (४, २१, ३)
उक्त तथ्यों को ध्यान में रखने पर स्पष्ट हो जाता तरिया तैराक (१०, ११, ७)
है कि अपभ्रश की शब्द-सूची प्राकृत से अभिन्न नही है । तोर-तुम्हारा (४, १८, १) छत्तीसगढी तोग, तोला यद्यपि कही कही अपभ्रंश गन्दो की बनावट तथा अर्थ थगदुग-वाद्य (५. ६, ११)
समझने के लिए प्राकृत शब्द समूह से बहुत कुछ सहायता कच्छड य-कछोटा (५, ७, १३) प्राकृतशब्द. कच्छोटी मिलती है, किन्तु अपभ्र श का भुकाव देशी भाषामो के घडि-कुण्डल (१०, १६, ४)
अधिक निकट होने के कारण इसपे देश्य शब्दो की प्रचुनेसणय-वस्त्र (५, ६, ११)
रता है। जो विद्वान यह कहते है कि अपभ्र श मे ६५ पट्टोल-वस्त्र विशेष (४, ८, ६)
प्रतिशत से अधिक शब्द वे ही है जो पाइय-सद्द महण्णवो पड्डल-पाटल पुष्प (८, १६, ४)
तथा देशी नाममाला आदि मे पाये जाते है, व केवल पद्धा-स्पर्धा (१, ११, १३)
अपभ्रश के कुछ प्रकाशित तथा परिशिष्ट मे सलग्न शब्दपल्लीवण-चोरो के निवास योग्य सघन वन (५, ८, २४) कोशो के आधार पर निर्मित अपनी धारणा प्रकट करत पारग्गह-युद्ध (६, १, १२)
है। और जिन विद्वानो का यह मत है कि अपभ्रंश कोश