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२१६, वर्ष २३ कि. ५-६
अनेकान्त फल इन दो प्रों में से बेल का फल ही ग्रहण करना प्राकृत शब्दों से प्रथं में भिन्न हैं। यही नहीं, निम्नलिखित चाहिए । और यहाँ स्पष्ट रूप से मालूर का अर्थ बेल का ऐसे शब्दो की सूची प्रस्तुत है जो प्राकृत कोशों में लक्षित फल है। एक अन्य स्थल (४.३२.२) पर मालूर का अर्थ नही होतेटिप्पण मे भी बिल्बफल बत् लिखा हुप्रा मिलता है।' पउमचरिउ टालिउ
छिव्वर-चपटी (१, २ ११) टिप्पणी मे इसका अर्थ शतखण्ड लिखा हुआ मिलता घुम्भल-शेखर (१७, १२, २) है। परन्तु यह अर्थ ठीक नही है। पउमचरिउ को पक्ति है- जालोलि-ज्वालावली (८, २, ६) केण पहज्जणु बद्ध पडेण मेह महागिरि टालिउ केण। णियासण-निवसन (६, १४, ४)
३१.६.८ णियल-निगड (१, ५, ६) इस पंक्ति का अर्थ है-वस्त्र से प्रभजन (पवन) णियच्छिय-निग्रच्छ दृश् (१६, ६, ६) को कौन बांध सकता है और सुमेरु पर्वत को कोन हटा दोर-पशु (२, ७, ३) सकता है।
णाइसप्प-नसर्प (४, ६, ६) एक अन्य स्थल पर भी सुमेरु को हटाने के अर्थ मे जिणाल-जिनालय (६, २, ५) 'टालई' शब्द का प्रयोग मिलता है । देखिए
डोह -क्षोभ (२, १३, ४) । मेह विटालइ बढामरिसु तहो अण्णु णराहिउ तिणुसरिसु । लजिया-दासी (२३, ४, २)
पउमचरिउ के शब्दकोश मे भी 'टाल' का अर्थ हटाना रसय (रसक)--मद्य-भाजन (२६, ७, ६) (गुजराती टाल) है। अतएव हटाना या खिसकाना सरुजा-वाद्य विशेष (४०, १७, ४) अर्थ उचित है।
सोयवत्ति-मिष्टान्न विशेष (५०, ११, ६) रहोला
मुसुमूर-चूर्ण, चरन (३८, ६, ५) पउमचरिउ की एक पक्ति है
टिविल-दुलकिया, छोटी ढोलक (२४, २, २) जो डिण्डीर णियह मन्दोलह णावह सो जे हारु रलोला। प्राडोह-विलोडन (२६, ७, १)
१४.३.७
खडवक-पर्वत (३१ ३, ६) इसकी टिप्पणी में 'रलोल इ' का अर्थ 'विलासति'
डेक्कार-गर्जना, डकारना दलाकना (२४, १३, ३) किया गया है। किन्तु रङ्खोलइ शब्द दोलय का समानार्थी भज्जिय-भाजी, पत्ती वाली शाक (५०, ११, ११) है। प्रतः इसका अर्थ है-झूलना। प्राकृत के शब्दकोशो
पत्तिय-पत्नी (४६, २०, ६) मे यही प्रथं मिलता है। उक्त पंक्ति मे तथा दो अन्य
तुणव - भेगे (२६, १४, ३) स्थलों पर प्रयुक्त शब्द का भी यही अर्थ हैं । स्वयं टिप्पण.
जरवणी-सन्तापदायिनी (४१, ४, ४) कार ने अन्यत्र यह अर्थ दिया है
प्रायल्लिय-पीड़ित (२७, ३, ७) पवलय-माला-रलोलिराइं मरगय-रिज्छोलि-पसोहिराई।
प्राहुट्ठ- प्रर्द्ध चतुर्थ (४०, १८,१०) यहां 'रङ्खोलिराई' शब्द के टिप्पण मे लिखा है- गत्तल-गतं (४६, ७, ७) प्रान्दोलिता (नि)। प्रतएव रोल का अर्थ झूलना उचित प्रबलुय- खेद (२०, ११, ४) है। अपभ्रंश के प्रकाशित तथा प्रप्रकाशित लगभग दस पोट्टिउ - घोट डाला (४६, ४, ६) प्रन्थों मे यह शब्द झूलने के अर्थ में मिलता है। गिल्ल-होदा (४६, १३, ७)
उक्त टिप्पणों के अतिरिक्त अनेक ऐसे शब्द हैं जो वाउलि-पक्षी विशेष (२७, १५ ५) १. सभवतया पहले टिप्पण मे मुद्रण की भूल है। ह' के पाणिय-हारि-पनिहारी (२४, १, ६) के स्थान पर 'म' हो गया है।
बल-वृषभ, बेल (२७, १७, ३२)