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अपभ्रंश शब्दों का प्रचं-विचार
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इसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार किया गया है। मवत्ति उन्होने भोजन की थाली मे सुन्दर सूक्ष्म पेय के साथ पउमरिउ के उपयुक्त सन्दर्भ में ही एक पक्ति इस भोजन परसा।
प्रकार है-- यहां पर सर्वप्रथम 'वड्ढिउ' शब्द विचारणीय है। विजणेहि स-महिय-बहि-खीरेहि सिहरिणी-भूमबत्तिसोबीरहि । टिप्पण मे इसका अर्थ 'परोसितः' तथा हिन्दी अनुवाद
५०.११.१३ परसा किया गया है। सामान्य रूप से वड्ढिउ का अर्थ यहाँ टिप्पणो के आधार पर 'सिहरिणि' का अर्थ वधित-बढ़ा हुआ है।
बधारा हुँमा तथा 'धूमवत्ति' का अर्थ कांजी किया गया है, अर्द्धमागधी कोण मे वढि के तीन प्रों का उल्लेख जो गलत है। धमवत्ति का अर्थ हीग मे बघारा हुमा है।' मिलता है-उपज; भावज और वृद्धि । पउमचरिउ में सौवीर कई स्थलों पर इसका प्रयोग हुमा है और अधिकतर स्थानो उपयूक्त पक्ति. मे पाये सौवीर का अर्थ काजी पर इसका बढ़ा या बढाया हुमा प्रर्थ लक्षित होता है। है। डॉ. हीगलाल जैन ने 'णायकुमारचरिउ' के शब्दउदाहरण के लिए
__ कोश मे सबीर-सौवीर (बटर-मिल्क, पाइपलच्छी० देवासुर-वल सरिसई वढिय हरिसई कंचुय- कवय-विसट्टइ। २६८) का अर्थ मट्ठा, तक किया है जो गलत है। (दे.
४.७.१० १० १६७) । पाइपलच्छी का पाठ हैअग्भिट्टा वढिय कलयलाई, भरहेसर वाहवली बलाई।
सौवीरं प्रारनालं, नेहो पिम्म रसोय अणुरागो।
पारनाल का तथा सौवीर का अर्थ सभी सस्कृत तथा एक अन्य स्थल पर 'वडढविय' का प्रयोग भी
की । मिलता है।
काज्चिकं काज्जिकं धाग्याम्लारनाले तुषोदकम् ।। परे प्रतहोणउ पडिरक्स किय जं लालिय पालिय बढविय।
महारसं सुधीराम्लं सौषीरं क्षणं पुनः ।। ६.१०.६
-अभिधानचितामणि, ३,७६-८० किन्तु एक स्थान पर उक्त शब्द स्पष्ट रूप से बढिया
इसी प्रकार के अन्य टिप्पण भी है जिनके कारण या उत्तम प्रर्थ में प्रयुक्त हुमा है
कही-कही अर्थ का अनर्थ हो गया है। विहि मि राम-रामण-बलहुं एमकु विवडिवमउ ण दोस।
उदाहरण के लिए पउमचरिउ के कतिपय टिप्पण इस ४५.२.६
प्रकार हैयहाँ पर 'वडिढमाउ' शब्द का अर्थ वृद्धिमान् या मालर बढ़िया है।
हे मालूर-पवर-पीवर-थणे कुवमय-वल-पफुल्लिय-लोमणे । बढ़ा हुआ-वढिप-मागे चल कर बढिया हो गया। इसका सबसे स्पष्ट प्रयोग उपर्युक्त सदर्भ मे हमा
मालर का अर्थ टिप्पण में 'बिम्बफल इव' दिया हग है है, जहाँ 'वड्ढिउ' का अर्थ परोसा न होकर बढिया है,
किन्तु यह अर्थ गलत है। स्तन की उपमा बिम्बफल से जो भोजन का विशेषण है । अतएव अर्थ होगा-भोजन
नही दी जाती । स्तन के लिए प्रायः बेल उपमान प्रयुक्त के लिए बढिया भोजन सिद्ध किया गया (पकाया गया)। किया गया है। प्रतएव मालर के कोशगत कंथ तथा बेल स्वच्छ पथ्य तथा चिकने पेय तैयार किए गए । 'लव्ह' का अर्थ सूक्य न होकर चिकना है।
२. सम्भवतया यह टिप्पण की भूल सख्या क्रम बदल
जाने से हुई है । ३ सिहरिणि की संख्या ३ धूमवत्ति १. पउमचरिउ, भाग १: सम्पा०-अनु० डॉ० देवेन्द्र- को होनी चाहिए और ४ बमबत्ति की संख्या ४ कुमार जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी।
सौवीर को होनी चाहिए।