________________
अपभ्रंश शब्दों का पर्व-विचार
२१७
रावियाई कोहलकुलई भयतसियाई रसियह रणाहलई। इसका का अर्थ किया गया है-दुष्ट बैल के द्वारा
१३.११.६ (तेलवाहक बैलों की) जोड़ी को लात मार देने से तेल प्रसग है-राजा भारत दिग्विजय के हेतु मालवा नष्ट हो गया। होते हुए दक्षिण के देशो पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित
इस अर्थ में दुष्ट बल के साथ जुड़ा हुमा दुष्ट विशेकरते हए विजयाच पर्वत के निकट पहुँच गये। वहाँ पर षण पर्थ की दष्टि से ठीक नहीं है। क्योंकि 'कल्होड' का गुफा के द्वार से दूर डेरा डाला। राजा की षडंग सेना प्रथं दुष्ट नही है। डॉ. विमलप्रकाश जैन ने अनुवाद ने वहाँ प्रावास किया। वहा के सरोवर भैसो के झण्डों से करते समय 'दष्ट' प्रथं किया, पर शब्द-कोष के अन्तर्गत मदिल हो कीचड युक्त दिखलाई पड़ रहे थे । पके हुए लिखा हैफलों का स्वाद लिया जा रहा था, शादल (हरी-हरी कल्होड (दि.)-वत्सतर, बछड़ा (जबूसामि पृ० ३०४) घास) काटी जा रही थी। उड़ाया हुमा कोकिल वृन्द
यह स्पष्ट है कि उक्त 'कल्होड' शब्द का प्रयोग भय से अमित था। णाहल-चीते दहाड रहे थे। सैकडों
विशेषण के रूप मे हुमा है, किन्तु यहाँ उसका अर्थ दुष्ट झण्डों मे दसो दिशाओं में चिघाड़ते हुए हाथी इधर-उधर
या बछडा नही है । वत्सतर का अर्थ सस्कृतकोशों में क्षुद्र घूमते फिर रहे थे।
वत्स है परन्तु क्षुद्र वत्म का अर्थ दुष्ट नहीं होता । वाचइन प्रसंगो को ध्यान से देखने पर स्पष्ट हो जाता
स्पत्य कोश मे इसका विवरण इस प्रकार हैहै कि नाहल या णाहण का अर्थ शबर या म्लेच्छ न
वत्सतर पुं. स्त्री क्षुद्र वत्स. पल्पत्वे तरप् । शुद्रवत्से । होकर बाघ या चीता है । पुष्पदन्त के प्रभाचन्द्र के टिप्पण
अप्राप्तवमनकाले गवादी अमर: स्त्रियां डीप । वत्सतरी के अतिरिक्त एक टीका और मिली है, जिसमे णाहल का
(पृ० ४८४४) अर्थ व्याघ्र किया गया है जो उचित है। शब्द के विकास
वस्तुत: 'कल्होड' शब्द देशी है। इसलिए प्राकृत के का दृष्टि से भी देखें तो यह शब्द इस प्रकार है
शब्दकोशो मे नही मिलता। पाइप्रसदमहण्णव में देशीणाहल-णाहर-नाहर
नाममाला से संकलित किया गया है। उसमें इसका वत्समाज भी नाहर शब्द एक विशेष प्रकार के बाघ के
तर अर्थ ही किया गया हैअर्थ मे देश के कई भागो मे प्रचलित है। अतएव मेरी
कल्होडो बच्छयरे बगम्मि कंडरकाउल्ला।-देशी ४,३२६ दृष्टि में 'णाहल' का अर्थ चीता होना चाहिए । यद्यपि प्राकृत के सबसे बृहत कोश 'अभिधान राजेन्द्र कोष' मे
'वत्सतर' का अर्थ क्षुद्र वत्म न होकर जवान बछडा
है। और इससे भी स्पष्ट अर्थ है-गाडी, हल प्रादि में णाहल का अर्थ म्लेच्छ विशेष है, किन्तु मूल में वह
जोतने योग्य बैल । अभिधानचिन्तामणि में यही अर्थ है-- 'लाहल' शब्द है। कहा गया है
वत्सः शकृत्करिस्तो बम्यवत्सतरौ समो। ४,३२६ णाहल-लाहल न० । लाहललाङ्गललाङ्कले वा अर्णः ॥१२२५६ इत्यावेलस्य वा णः । म्लेच्छविशेषे ।
अल्पावस्था वाले बछड़ा-बछियों को वत्स, शकृत्करि (पभि० को० पृ० २०१६) जाहल शब्द 'णाह' से व्युत्पन्न
तथा तर्ण कहते है तथा जुतने योग्य बैल को दम्य मौर हुमा है और उसका अर्थ वन का स्वामी नाहर तथा
वत्सतर कहते है। अतएव यहां कल्होड का अर्थ जोतने जम्बूस्वामीचरित के सन्दर्भ के अनुसार चीता है ।
योग्य बैल है; दुष्ट बैल नही। अधिक से अधिक हस उन्हें
युवा बैल कह सकते हैं। इस प्रर्थ की पुष्टि गोस्वामी यह शब्द वीर कवि विरचित जंबूसामीचरिउ मे तुलसीदास की शब्दावली से भी होती है, कवितावली की मिलता है । इसका प्रयोग इस प्रकार हुप्रा है
पंक्तियां हैकल्होडबइल्ल जायरेल्लु संघाडल्लालिउ गयउ तेल्लु । सोहै सितासित को मिलिबो,
५.७. २३
तुलसी हुलसै हिय हेरि हलोरे।
कल्होण