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________________ भारतीय अनुमान को जैन तार्किकों को देन डा० दरबारीलाल कोठिया भारतीय अनुमान को जन ताकिकों को क्या देन है, अनुमान के लिए किन घटकों की प्रावश्यकता है, उन्होंने उसमें क्या अभिवृद्धि या संशोधन किया है, इस इसका प्रारम्भिक प्रतिपादन कणाद ने किया प्रतीत होता सम्बन्ध मे यहा जैन तर्क शास्त्र मे चिन्तित अनुमान एव है। उन्होने अनुमान का 'अनुमान' शब्द से निर्देश न कर उसके परिकर का ऐतिहासिक तथा समीक्षात्मक विमर्श लैङ्गिक' शब्द से किया है, जिससे ज्ञात होता है कि प्रस्तुत है। अनुमान का मुख्य घटक लिङ्ग है । सम्भवतः इसी कारण अध्ययन से अवगत होता है कि उपनिषद् काल मे उन्होने मात्र लिङ्गों, लिङ्गरूपों और लिङ्गाभासों का अनुमान की प्रावश्यता एव प्रयोजन पर भार दिया जाने ____ का निरूपण किया है। उसके और भी कोई घटक है, लगा था, उपनिषदो मे "प्रात्मा वारे दृष्टव्यः श्रोतव्यो इसका कणाद ने कोई उल्लेख नहीं किया। उनके भाष्य. मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः,"" मादि वाक्यो द्वारा प्रात्मा । कार प्रशस्तपाद ने अवश्य प्रतिज्ञादि पाँच प्रवयवो को के दर्शन और श्रवण के माथ मनन पर भी बल दिया गया उसका घटक प्रतिपादित किया है और उनका विवेचन है, जो उपपत्तियों (मुक्तियों) के द्वारा किया जाता था। किया है। इससे स्पष्ट है कि उस काल मे अनुमान को भी श्रुति को तर्कशास्त्र का निबद्धरूप में स्पष्ट विकास प्रक्षपाद के तरह ज्ञान का एक साधन माना जाता था उसके बिना न्यायसूत्र मे उपलब्ध होता है। प्रक्षपाद ने अनुमान को दर्शन अपूर्ण रहता था। यह सच है कि अनुमान का 'अनुमान' शब्द से ही उल्लेखित किया तथा उसकी कारण 'अनुमान' शब्द से व्यवहार होने की अपेक्षा 'वाक्यो सामग्री, भेदो, अवयवों और हेत्वाभासो का स्पष्ट विवेचन वाक्यम्' 'प्राप्वीक्षिकी', 'तकविद्या', 'हेतुविद्या' जैसे किया है। साथ ही अनुमान परीक्षा, वाद, जल्प, वितण्डा, शब्दो द्वारा अधिक होता था । छल, जाति, निग्रहस्थान जैसे अनुमान-सहायक तत्त्वो का प्राचीन जैन वाङ्मय मे ज्ञानमीमासा (ज्ञानमार्गणा) प्रतिपादन करके अनुमान को शास्त्रार्थोपयोगी और एक के अन्तर्गत अनुमान का 'हेतुवाद' शब्द से निर्देश किया स्तर तक पहुँचा दिया है। वात्स्यायन, उद्योतकर, वाचगया है और उसे श्रुत का एक पर्याय (नामान्तर) बत- स्पति, उदयन और गङ्गश ने उसे विशेष परिष्कृत लाया गया है। तत्त्वार्थसूत्रकार ने "अभिनिबोध" नाम किया तथा व्याप्ति, पक्षधर्मता, परामर्श जैसे तदुपयोगी से उसका उल्लेख किया है। तात्पर्य यह कि जनदर्शन में अभिनव तत्त्वों को विविक्त करके उनका विस्तृत एवं भी अनुमान अभिमत है तथा प्रत्यक्ष (साव्यवहारिक और सक्ष्म निरूपण किया है। वस्तुतः प्रक्षपाद और उनके पारमार्थिक ज्ञान) की तरह उसे भी प्रमाण एव अर्थ- अनुवर्ती ताकिकों ने अनुमान को इतना परिष्कत किया निश्चायक माना गया है। अन्तर केवल उसम वैशद्य और कि उनका दर्शन 'न्याय (तक-अनुमान)-दर्शन' नाम से ही प्रवेशद्य का है । प्रत्यक्ष विशद है पोर अनुमान प्रविशद विश्रुत हो गया। (परोक्ष)। प्रसंग, वसुबन्धु, दिङ्नाग, धर्मकीति प्रभूति बौद्ध १. बृहदारण्य० २।४।५॥ ताकिकों ने न्यायदर्शन की समालोचनापूर्वक अपनी विशिष्ट २. श्रोतव्यः श्रुतिवाक्येभ्यो मन्तव्यश्चोपपत्तिभिः । और नयी मान्यताओं के आधार पर अनुमान का सूक्म मत्वा च सततं ध्येय एते दर्शन हेतवः ।। मोर प्रचुर चिन्तन प्रस्तुत किया है। इनके चिन्तन का
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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