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२०४, वर्ष २३, कि० ५-६
यह समझ मे नहीं भाता कि वीर राघवाचारियर ने इन तथ्यों की उपेक्षा क्यों की । कविराज का कालनिर्णय करने के लिए उनका समय प्राधार रूप में स्वीकार नही किया जा सकता ।
प्रकान्स
वेंकट सुध्विय का खण्डन और विचार
वेंकट मुब्बिय 'दी पाच सावदी राघवपांडवीय एण्ड गद्यचिन्तामणि' नामक शोधपत्र (जनंन माफ व बी.डी. एस. सीरीज म्यू सीरीज १ व २ १९२७ पृ. १३४ ) मे ३, पाठक के निष्कर्ष का विरोध करते है : (१) तेरदाल शिलालेख के श्रुतकीति राघवीय के कर्ता के रूप मे पम्प रामायण में उल्लिखित श्रुतकीर्ति से प्रभिन्न होना चाहिए। (२) श्रुतकीर्ति कवि का मूल नाम था और धनंजय मात्र संक्षिप्त नाम था, और ( ३ ) वह तथ्य अभिनव पम्प जानते थे जिन्होंने उनका उल्लेख उनके वास्तविक नाम रामायण से किया है ।
वी.
सुव्विय के अनुसार अभिनव पम्प की रामायण का रचनाकाल ११०० ई. के बाद और १०४२ ई. के पूर्व नहीं हो सकता । श्रतएव श्रुतकीर्ति का राघवपांडवीय १०४३ ई. के पूर्व लिखा गया होगा। उन्होने धार. सिंहाचार्य के मन का उल्लेख किया है कि "त कीर्ति की रचना का वर्णन जो पम्प की रामायण में किया गया है, गत प्रत्यागत काव्य प्रकार का है, अर्थात् ऐसा काव्य जिसके एक ओर पढने से रामकथा और दूसरी ओर पढ़ने से पाडुकथा निकलती है, यह धनजय के द्विसन्धान काव्य मे लाइ नहीं होता। यहाँ यद्यपि एक ही पक्ष मे राम और पाडु की कथा शब्द चमत्कृति दिखाते हुए कही गयी है, फिर भी उसे गतप्रत्यागत काव्य नहीं कहा जा सकता; अतएव धनजय का राघवपाडवीय व श्रुतकीर्ति का रामपाडवीय अभिन्न नहीं और इसलिए धनजय मौर अतकीति एक नहीं कहे जा सकते।
बादिराज द्वारा पावर्तनाथ परिस (समाप्तिकाल बुधबार, २७ दिसम्बर १०२५ ई.) मेति पूर्वकवि सुब्बिय के अनुसार वादिराज के पूर्ववर्ती रहे होंगे । प्रत एवं अधिक सम्भावित यही है कि रामपाडवीय के श्वयिता धनजय वादिराज के पूर्ववर्ती थे । श्रवणबेलगोल
शिलालेख नं. ५४ (६७) मे प्राप्त प्राचार्य परम्परा में मतिसागर के पश्चात् हेमसेन (६८५ ई ) का नाम धाता है । इन्ही का दूसरा नाम विद्याधनजय भी था । "प्रतएव यह कहना प्रत्युक्ति नहीं होगी कि हेमसेन राघवपांडवीय अथवा द्विसन्धान काव्य के कर्ता है और यह काव्य ६६०१००० ई. मे लिखा गया है ।"
श्रुतकीर्ति का काव्य प्रकाश में नहीं आया। वह निश्चित ही संस्कृत में लिखा गया होगा तेरदार पौर । गोल शिलालेख के कति ११२२ ई. मे मान थे और उनका राघवपाडवीय नही लिखा गया ।
१०६० ई. के पूर्व
अभिनव पम्प द्वारा उल्लिखित श्रुतकीर्ति वही नही जिनका उल्लेख शिलालेख में आया हुआ है, क्योकि वे भिन्न-भिन्न परम्पराम्रो से सम्बद्ध है । "इन दोनो श्रुतकीर्ति नामक आचार्यों ने राघवपाडवीय की रचनाएँ की और वे गतप्रत्यागत प्रकार के पद्यो में थी, यह कल्पना तथ्यसंगत नही । अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है। कि उक्त दोनो श्रुतकीर्तियों में कोई एक श्रुतकीर्ति ग्रन्थ के रचयिता थे और इन श्रुतकीर्ति की प्रशंसा में भी पम्प रा यण मे अथवा श्रवणबेलगोल शिलालेख में इन पद्यो का उपयोग किया है ताकि द्वितीय श्रुतकीर्ति भिन्न सिद्ध हो
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मके । और चूकि अभिनव पम्प जैसे उच्चकोटि के कवि के सन्दर्भ मे यह सोचना व्यर्थ है कि उन्होंने अन्य कवियो द्वारा निर्मित पद्यो को अपने ग्रन्थ में सम्मिलित किया होगा, अतः यह भी निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि गतप्रत्यागत प्रकार का राघवपाडवीय पम्प रामायण मे उल्लिखित श्रुतकीति द्वारा रचा गया था न कि उक्त शिलालेख मेति श्रुतकीति द्वारा।"
धनजय और चुतकीर्ति के राघवपाडवीय भिन्न-भिन्न ग्रन्थ है, और उसमे कोई एक पूर्ववर्ती होगे परन्तु मुझे लगता है कि गतप्रत्यागत राघवपाडवीय द्विसन्धान की अपेक्षा अधिक कठिन है और इसलिए उत्तरवर्ती काव्य पहले लिखा गया और श्रुतकीर्ति ने अपना ग्रन्थ धनजय के अनुकरण पर बाद मे लिखा । यदि यह विचार तथ्ययुक्त माना जाये तो श्रुतकीति निश्चित रूप से धनजय के उत्तर.