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२०० वर्ष २३, कि० ५-६ उनके राघव-पाण्डवीय की कोई पाण्डुलिपि उपलब्ध नहीं नाम मिला । अभिनव पम्प ने श्रुतकीति विद्य का उल्लेख
राघवपाण्डवीय के लेखक के रूप में किया है। मेषचन्द्र ने के. बी. पाठक धनंजय तथा श्रतकीति की एकता समाधिशतक पर कन्नड भाषा मे पम्प के सुपुत्र के निमित्त श्रुतकीर्ति के राघवपाण्डवीय से निश्चित करने वाले प्रथम एक टीका लिखी पौर मेधचन्द्र के पुत्र (१) वीरनन्दि ने व्यक्ति थे। पार. जी. भण्डारकर ने इसे स्वीकार करने शक सं० १०७६ मे अपने प्राचारसार की रचना समाप्त मे संकोच ठीक ही व्यक्त किया है। किन्तु इस समानता की। इस उल्लेख के प्राधार पर पाठक पम्प का समय के आधार पर प्रस्तावित धनजय के समय की बात मे शक संवत् १०७६ के कुछ पूर्व का स्वीकार करते है। पर्याप्त वजन है।
तेरदाल शिलालेख, जिसमें श्रुतकीति विद्य का नाम धनजय तथा उनका द्विसन्धान या राघव-पाण्डवीय उल्लिखित है, का समय शक स. १०४॥ है। "इसमे और श्रुतकीति और उनके राघव-पाण्डवीय से भिन्न है : सर्व प्राचारसार के रचनाकाल मे इक्कीस वर्ष का अन्तर है । प्रथम क्योकि धनजय एक गृहस्थ थे जब कि श्रुतकीर्ति एक श्रुतकीति विद्य ने शक सं.१०४५ के बाद ही अपने तिन तथा बाद में एक प्राचार्य । दूसरे, न तो धनजय ही ग्रन्थ का निर्माण अवश्य कर लिया होगा।" परन्तु चूंकि न अन्य स्रोत जो श्रुतकीर्ति का उल्लेख करते है, ऐसा कवि ने अपना वास्तविक नाम रचना से सम्बद्ध नहीं प्रमाण देते है कि दोनों नाम एक ही कवि के है। तीसरे किया, राघवपाण्डवीय का लेखक अज्ञात रहा होगा, यहाँ धनंजय की नाममाला से वीरसेन (८१६ ईसवी) ने एक तक कि अपने समकालीनो को भी इस बात से परिचित पद्य उद्धृत किया है तथा उसके द्विसन्धान का विशेष रूप नही कराया । और पम्प, जो जैन और कवि के रूप मे से धनंजय के नामोल्लेख के साथ भोज ने (१०१०-६२ उससे अवश्य परिचित रहा होगा, ने उसके रचयिता के ईसवी अनुमानित) उल्लेख किया है, जब कि श्रुतकीर्ति विषय मे यह महत्त्वपूर्ण तथ्य सुरक्षित रखा। यहाँ फुटका समय ११०० से ११५० ठहरता है। अन्तत , यदि नोट में के. बी. पाठक ने लिखा है कि राघवपाण्डवीय नाम धनजय का द्विसन्धान दण्डि को समकक्षता के लिए प्रसिद्ध के दो संस्कृत काव्य उपलब्ध है एक ब्राह्मण और दूसरा है और भोज (ग्यारहवी शती का मध्य) के द्वारा उल्लेख जैन । परन्तु उपयुक्त जन संस्कृत काव्य, जिसका रचयिता किया जा सकता है तो निश्चय ही यह श्रुतकीति, जो पम्प ने श्रुतकीति विद्य को बनाया, ब्राह्मण संस्कृत काव्य ११३५ ईसवी मे प्राचार्य थे, की रचना नही हो सकती। की अपेक्षा लम्बा है। और वह धनंजय की रचना के रूप इसलिए इस एकता का कोई प्राधार नही है, और इस- में प्रसिद्ध है यहाँ पाठवे अध्याय की पुष्पिका और प्रथम लिए इस एकता के प्राधार पर धनजय का समय ११२३- अध्याय का अन्तिम पद प्रस्तुत किया गया है।" इससे ४० ईसवी निर्धारित नही किया जा सकता।
स्पष्ट है कि श्रुतकीति विद्य और धन जय एक ही व्यक्तिधनंजय के अध्येता
स्व और कृतित्व के दिग्दर्शक है। यहाँ यह उल्लेख करना धनंजय तथा उनके द्विसन्धान ने बहन पहले से ही प्रावश्यक नहीं कि धनंजय कोश के रचयिता कर्णाटक के विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया है। यह प्रावश्यक है दिगम्बर जैन है । कि विस्तार से उनके मन्तव्यो को यहाँ प्रस्तुत किया जाए पाठक का निष्कर्ष तथ्य संगत दिखाई नहीं देता। तथा उपयुक्त प्रमाण सामग्री के सन्दर्भ में जांचा-परखा। उनसे निर्णय में कुछ त्रुटियाँ प्रतीत होती हैं । लगता है कि जाए।
वे धनजय को तो रचयिता मानते है पौर श्रुतकीति को पाठक द्वारा श्रुतकीति तथा धनंजय की एकता धनजय की उपाधि स्वीकार करते है। परन्तु द्विसन्धान
के. बी. पाठक ने इडियन एन्टीववेरी जिल्द १४, पृष्ठ काव्य में उन्होने कही भी इस श्रुतिकीति विद्य जैसी १४-२६ में ते रदाल के एक कनडी शिलालेख का सम्पादन उपाधि का उल्लेख नहीं किया है। यहाँ तक कि नामकिया है। पैतीसवी पंक्ति में उन्हें श्रुतकीति विद्य का माला में भी इसका कोई जिक्र नहीं जिसे पाठक धनंजय