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षड्दर्शन समुच्चय का नया संस्करण
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एकान्त ही ठहरता है अन्तिम सत्य नहीं । जब कि 'सर्व- योगाचार, सौत्रान्तिक, वैभाषिक'। दोन संग्रह के मत से अद्वैत ही अन्तिम सत्य है। बाकी इस प्रथ की विशेषता यह है कि वह इस क्रम से सब मिथ्या है। वस्तुतः नयचक्र और सर्वदर्शनसंग्रह इन दर्शनों का निरूपण करता है-वैशेषिकदर्शन का सर्वदोनों का एक ही ध्येय है और वह यह कि अपने-अपने प्रथम निरूपण है। किन्तु वैशिषकों के ही विपर्यय के दर्शन को सर्वोपरि सिद्ध करना।
निरूपण प्रसंग में ख्यातिवाद की चर्चा की गयी है-उसी माधवसरस्वती (? ई० १३५०) ने 'सर्वदर्शनकौमुदी' में सदसत्स्याति को मानने वाले जैनो का दर्शन पूर्व पक्ष में नामक ग्रंथ लिखा है जो त्रिवेन्द्रम् संस्कृत ग्रंथमाला में निरूपित है। मोर वैशेषिकों द्वारा विपरीतख्याति की ई. १९३८ में प्रकाशित है । इस ग्रंथकार ने भी वैदिक- स्थापना के लिए उसका निराकरण किया गया है। प्रतअवैदिक-इस प्रकार का दर्शनविभाग स्थिर किया है। एव जैनदर्शन का निरूपण पृथक् करने की मावश्यकता वेद को प्रमाण मानने वालों को वह शिष्ट मानता है लेखक ने मानी नही है। और वेद के प्रमाण को स्वीकार नहीं करनेवाले बोद्ध को बंशेषिक के अनन्तर नैयायिक दर्शन का निरूपण है प्रशिष्ट। माधव सरस्वती ने वैदिक और प्रदिक एस (०६३) और क्रमश: मीमांसा, सांख्य मौर योगदर्शन दो भेद दर्शनों के किये हैं। वैदिक दर्शनो मे इनके अनु- कानिरूपण सार तर्क, तंत्र और साख्य ये तीन दर्शन हैं। तर्क के दो
___ राजशेखर का 'षड्दर्शनसमुच्चय' प्राचार्य हरिभद्र के भेद है-वैशेषिक और नैयायिक । तन्त्र का विभाजन
'षड्दर्शनसमुच्चय का अनुकरण होते हुए भी सामग्री की इस प्रकार है
दृष्टि से विस्तृत है। इसमें तत्तत् दर्शनों के प्राचारों तन्त्र
पौर वेशभूषा का भी निरूपण है। इस ग्रंथ में दर्शनों का
परिचय इस क्रम से हैशब्दमीमासा अर्थमीमांसा
१जैन, २ सांख्य, ३ जैमिनीय, ४ योग, ५ वैशेषिक (व्याकरण)
और ६ सौगत । योगदर्शन का परिचय, अष्टांगयोग, जो
कि सर्वदर्शन साधारण प्राचार है, उसका परिचय देकर कर्मकाण्डविचार ज्ञानकाण्डविचार =पूर्वमीमांसा
उत्तरमीमासा
सम्पन्न किया है। तथा उक्त सभी दर्शन जीव को मानते है जब कि नास्तिक उसे भी नहीं मानते यह कहकर
चार्वाकों की दलीलों का संग्रह करके उस दर्शन का भी भट्ट प्रभाकर
परिचय अन्त में दे दिया है। ये राजशेखर वि० १४०५ सांख्यदर्शन के दो भेदों का निर्देश है-सेश्यरसांख्य में विद्यमान थे ऐसा उनके द्वारा रचित प्रबन्ध कोश की योगदर्शन और निरीश्वरसाख्य-प्रकृतिपुरुष के भेद का प्रशस्ति से ज्ञात होता है । यह षड्दर्शनसमुच्चय यशोप्रतिपादक । इस प्रकार वैदिक दर्शनों के छह भेद हैं- विजय जैन ग्रन्थमाला मे वाराणसी से वीर सं० २४३८ योग, साख्य पूर्वमीमांसा, उत्तरमीमांसा, नैयायिक, और में प्रकाशित है। वैशेषिक ।
प्राचार्य मेरुतुंगकृत (ई. १४वी का उत्तरार्ध) 'षड्प्रवैदिकदर्शन के तीन भाग हैं-बौद्ध, चार्वाक और
२. सर्व दर्शनकौमुदी पृ०४। पाहत । तथा बौद्धदर्शन के चार भेद हैं-माध्यमिक,
३. सर्व दर्शनकौमुदी पृ० ३४ पौर पृ० १०८ । लेखक १. वेदप्रामाण्याभ्युपगन्ता शिष्टः । तदनभ्युपगन्ता बौद्धो- ने जनदर्शन का पूर्व पक्ष जो उपस्थित किया है वह ऽशिष्ट: । -पृ०३।
प्रभ्रान्त नहीं है।