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नलपुर का जैन शिलालेख
जिनमन्दिर बनाने वाले पेठ साहूकार सूत्र बढ़े सपन्न हों।
( उपजाति)
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चंद्रमण्डलमंडितेयं तारालिमुक्ताफलहारयष्टिः । कास्ति बावद् गगनस्य लक्ष्मीजनालय नन्दतु तावदेतत् ।। ६५ अर्थ — जब तक यह श्राकाशलक्ष्मी चन्द्र सूर्य रूपी कुण्डल से मंडित और तारागण रूपी मोतियो के हार से सुशोभित है तब तक यह जिनालय शोभायमान रहे । ( शार्दूलविक्रीडित )
चारते कागणारविन्दतरणिः श्रीदेवगुप्तप्रभुः । व्यापानगतोचितक्षितिपतिः इवेतांबर व्याकुलः । प्रासीदुसमप्रवादिकर टिशरूपंचाननस्तत्पादाम्बुजराजहसमहिमा श्रीवीरचन्द्र कविः ।। ६६ ॥ अर्थ - केशगण रूपी कमलों के लिए सूर्य, व्याख्यान के अवसर पर राजाओं को सन्तुष्ट करने वाले, जिनसे श्वेतावर व्याकुल रहते थे और जो समस्त उग्रवादी रूपी हाथियों के लिए कालरूप एक ही सिंह थे ऐसे श्री देव गुप्त स्वामी थे उनके चरण कमलो की शोभा के लिए राजहस रूप श्री वीरचन्द्र कवि थे । तस्माज्जंगमभारतीति जगति ख्याताभिधानाद्गुरोवीरेन्दोरधिगत्य सत्यमहिम भ्राजिष्णुः सारस्वतम् । सिरसिरगिरां शुद्धिः सुधानोरथोः श्रांतः प्रोतपदां प्रशस्तिमकृत श्रीदेवचन्द्रः कृती ॥६७॥
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अर्थ – उन "जगम भारती" ( चलती-फिरती सरस्वती) इस प्रकार विख्यात नाम वाले गुरु वीरचन्द्र से साहित्यिक ज्ञान प्राप्त कर ( सिद्ध सारस्वत होकर ) सत्य महिमा से दैदीप्यमान विद्वान् श्री देवचन्द्र ने परिश्रम से गूंथे गये हैं पदवाक्य जिसमें ऐसी इस प्रशस्ति को बनाया ।
(अनुष्टुप्) वास्तव्यान्वय कायस्थः शेखरः शरदात्मजः । प्रशस्तिम लिखद्वेदेरिमां सोमासमुद्भवः ॥ ६८ !
अर्थ - वास्तव्य गोत्री कायस्थ, शरद् (पिता) के पुत्र चोर सोमा (माना) से उत्पन्न शेखर ने इस बेदी को प्रशस्ति को लिखा ।
(विशेष यह प्रशस्ति मंदिर की वेदी पर सामने की तरफ उरकीर्ण की गई थी।)
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भूतः काश्यपगोत्रेऽसौ पायिकः सूत्रधारकः । वामदेवो सुतस्तस्य प्रशस्ति प्रोष्यकार सः ।। ६६ ।
कास्यप गोत्र मे पायिक नामा शिल्पी (मन्दिरनिर्माता-कारीगर हुए जिनके पुत्र वामदेव से उन्होने इस प्रशस्ति को उत्कीर्ण किया। ( शिलालेख पर टाकी से उकेरा ) ।
( वसततिलका)
श्री माथुरान्ययमहार्णवराजहंस, लोकोपकारकरणे... कलानां । सद्धर्मकर्म ॥७०॥ संवत् १३१६ अर्थ - श्री माथुर वश रूपी मानसरोवर के राजहस, लोकोपकार करने मे ।। सवत् १३१६॥
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इति शुभम् -
नोट – इस शिलालेख ( प्रशस्ति पत्थर) का माप इस प्रकार है- लम्बाई २ फुट ३ इन तथा चौड़ाई २ फुट १०३ इच (२' ३' x २ '१०३'')।
"शिलालेख की हूबहू छाप लेने की विधि"
जितना बड़ा शिलालेख हो उतने ही नाप का (देशी) सफेद कागज लें अगर उतना बड़ा कागज न मिले तो कागज को गोंद से जोड़ कर शिलालेख के नाम के अनुसार काट लें । फिर उस कागज को पानी से तर करके शिलालेख पर चिपका दें और अक्षरों के गड्ढों मे सावधानी से दाब दे । इसके बाद कोयले के पिसे चूर्ण को झीने कपड़े में लेकर उस गीले कागज पर सर्वत्र पोत दे। सूखने पर कागज को उतार ले । बस हूबहू छाप तैयार है। गड्ढो का हिस्सा कोयले से न ले जाने के कारण सफेद अक्षरों के रूप मे निकल आयेगा ।
नलपुर- शिलालेख का श्लोकानुसार संक्षिप्त हिन्दी अनुवाद ( मगलाचरण)
१. प्रादिनाथ प्रभु तुम्हारा कल्याण करें । २. पार्श्व प्रभु तुम्हे विभूति प्रदान करें ।
३. वीर प्रभु तुम्हे प्रसन्नता दे ।
४. देवी सरस्वती मेरे हृदय में सदा कल्लोल करें । ५. मूलस के दि० मुनिवर तुम्हें पवित्र करे ।
( प्रशस्ति)
६. यज्वपाल नामा एक प्रसिद्ध राजवंश था । ७. इस वंश में बीर बुडामणि परमाद्रिराज उत्पन्न हुए।