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नलपुर का जैन शिलालेख
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जसे सातनूजन्मा, साविजयदेवकः ।
जबकि ये ग्राहड़ साहू शिर पर भाल पर शकर यानी श्रृंगारदेवी तज्जाया, निर्माया धर्मकर्मसु ॥४५॥ चन्दन को धारण करने वाले थे। अथवा शिर पर शकर
अर्थ-जस्सा साहू का पुत्र विजय देव साहू था यानी जिनेन्द्र को धारण करने वाले थे। हिमालय निर्मल जिसकी पत्नी शृगार देवी थी जो धर्म-क.मं में छल-प्रपच मानसरोवर से पवित्र है जबकि पाहड़ साहू निर्मल मानसरहित थी।
हृदय से पवित्र थे फिर भी आश्चर्य है कि-हिमालय तो तदगर्भसंभवी शोभावभवध्वस्तमन्यथौ।
कूट-शिखर समेत है किन्तु पाहड साहू कूट-कुटिलता सनायौ तनयो भातः सहदेवाम्रदेवको ॥४६॥
युक्त नहीं थे। अर्थ-उन शृगारदेवी के गर्भ से उत्पन्न सहदेव और
(अनुष्टुप्) पाम्रदेव दो पुत्र थे जो युगल थे (साथ-साथ पैदा हुए थे) सुवर्ण चरित यस्य कलिकालकषोपले।
और जिन्होने अपने शोभावैभव से कामदेव को भी तिर- शद्धि दधाति साधूनां चाहडः संष शेखरः ॥५१॥ स्कृत कर दिया था।
अर्थ-कलिकाल रूपी कसौटी पर जिनका चरित्र जाजे श्रेष्ठी सतां श्रेष्ठ., परवाटकुलाग्रणीः ।
सुवर्ण की तरह निर्दोष खरा उतरता है ऐसे वे साहुओं के कलिसंतापितक्षोणी चन्दनीकृतकोतिक्रः ॥४७॥
मुकुट चाहड़ थे। अर्थ-परवाड वंश के नेता, सज्जनोत्तम जाजे नाम
(शालिनी) के सेठ थे जिन्होंने कलिकाल से सतप्त पृथ्वी को सुशात ....."मानि ज्वालावीचिसापुः कर कीति पाई थी।
सर्वज्ञांहि स्मेरस्वम्भोजभूगः । सहदेव: समाषर्य-वाचावर्षः कलाविदा ।
दानी मानी कीर्तिकान्त्या हिमानी मनध्यायः कुकृत्यानामसत्यानामनास्पदम् ॥४८॥
जेता नेता धीमतां धोतचेताः ॥५२॥ अर्थ-सहदेव कलावंतों के लिए मधुर वाणी की वर्षा- अर्थ-वीचि साह थे जो मानियों के लिए ज्वाला करने वाले थे। दुराचार का जिन्होंने कभी पाठ ही नही स्वरूप थे तथा सर्वज्ञ के चरण रूपी विकसित सुन्दर कमलों पढा था और झूठ से जो कोसों दूर रहते थे।
के मानों भ्रमर थे। एव दानी, स्वाभिमानी और कीर्ति (वसंततिलका)
की कांति से हिम श्रेणी थे, विजेता और विद्वानों के नेता सव्येतरप्रवरपाणिसरोजबंध
एव पवित्र चित्त थे। निस्पंदमानधनदानजलेन जामे
(इन्द्रवजा) जंबालभूमनि यशःसितपंकजाली
गंभीरतापः कृतनीरनाथः स्थर्येण संतजितसानुचूल: । मेनाकसाघुरनुवर्षयते धरित्र्याम् ॥४६॥ दानावादानबंलिराजकल्पस्तल्पश्रिया नंदति माधुवीचि ॥५३
अर्थ--बाये तथा दायें दोनो हस्त कमलों के बन्ध अर्थ-गभीरता से तिरस्कृत कर दिया है समुद्र को अर्थान अजलि से चूने वाले विपुल दान जल के द्वारा भी जिन्होने तथा स्थिरता से पराजित कर दिया है पर्वत उत्पन्न बहुत भारी कीचड मे मैनाक साहू के यशरूपी को भी जिन्होने एव दान कार्यों में राजा बलि के तुल्य मफेद कमलो की पक्ति पृथ्वी पर ज्यों-ज्यो मैनाक सा ऐसे वीचि साहू सुन्दर-सुन्दर स्त्रियों से पान दित थे । बढने लगे त्यो-त्यों वह भी बढ़ने लगी।
(अनुष्टुप्) (स्वागता)
साघुराभः पराभूतकुतीर्थपथसंकथः । पाहतः स्फटिकर्शल इवास्ते, शकरं शिरसि धारयमाणः। हृदि सर्वज्ञरयतेऽपि पत्ते वमत्यमद्भुतम् ॥५४॥ मानसेन विमलेन पवित्रश्चित्रमेष न तु कुटसमेतः ॥५०॥ अर्थ-पाभ नाम के साह थे जिन्होंने कुधर्म मार्गों ___अर्थ-पाहड़ साहू हिमालय पर्वत के समान थे, की चर्चा को समाप्त कर दिया था और जिनका हृदय हिमालय शकर यानी शिवजी को धारण करने वाला है सर्वज्ञ में रक्त-लवलीन रहने पर भी अद्भुत विमलता