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साहित्यिक एवं सामाजिक गतिविधियों के केन्द्र :
जयपुर के प्रमुख दि० जैन मन्दिर
डा० कस्तूरचन्य कासलीवाल एम. ए., पी.एच. डी.
जयपुर नगर की स्थापना संवत् १७८४ मे हुई थी । उम समय देहली पर मुगलो का शासन था। लेकिन वह इतना शक्तिशाली नहीं था कि महाराजा सवाई जयसिंह जैसे वीर, पराक्रमी एव राजभक्त शासक को नवीन नगर बसाने से मना करता । इसलिए महाराजा सवाई जयसिंह ने बडे उत्साह एव शास्त्र विधि से नवीन नगर की नीव रखी। नगर का मानचित्र पहिले ही तत्कालीन इजीनियरों के परामर्श से तैयार कर लिया गया था। नगर का पूरा निर्माण योजनाबद्ध रीति से हुआ इसलिए कुछ मम पश्चात् ही नगर की कीर्ति चारों प्रोर फैल गयी । विद्याधर नामक नगर शास्त्री ने इस नगर के बसाने मे सबसे अधिक योग दिया था। विद्याधर के सम्बन्ध में कुछ विद्वानों का मत है कि वह जैन था और कुछ उसे वैष्णव मानते है । राजस्थान इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान् कर्मठ जेम्स टॉड ने विद्याधर को जंन माना है ।
जैन कवि बखतराम साह ने अपने बुद्धि विलास (२० १०२७) मे जयपुर नगर के बसावट का पूरा वर्णन दिया है। उनके वर्णन से ऐसा मालूम पड़ता है कि नगर का निर्माण कार्य स्वय कवि ने अपनी आँखो से देखा था । जयपुर नगर का इस तरह का वर्णन बहुत कम विद्वानों ने किया है। श्रामेर और सांगानेर के मध्य मे बसा हुआ यह नगर देश के ही नहीं किन्तु विश्व के सुन्दरतम नगरों में गिना जाता है। कविवर बखतराम के द्वारा वर्णित ६ पक्तिया निम्न प्रकार हैंनगर बसायो यक नयौ, जयस्यध सवाई ।
जाकी सोभा जगत में, दसही दिसि छाई । सोहै अंबावती की दक्षिण दिसि सागानेरि,
दोऊ बीचि सहर धनोपम बसायो है। नांम ताकौ धरयो है सवाई जयपुर
मानौ सुरनि मिलि सुरपुर सौ रचायो है ॥ नगर निर्माण के साथ ही यहा तेजी से जैन मन्दिरो का निर्माण होने लगा। जैनो के लिए दो चौकडिया निश्चित की गयी । एक मोदीखाना दूसरा घाट दरवाजा । इसलिए सबसे अधिक मन्दिरों की संख्या इन्हीं चौकडियों मे मिलती है । यद्यपि यह कहना कठिन है कि कौन-सा मन्दिर प्रथम बना और कौन-सा बाद मे लेकिन उपलब्ध तथ्यो के अनुसार चौकड़ी मोदीखाना मे पाटोदी का मन्दिर, लश्कर का मन्दिर, संघीजी का मन्दिर, तथा चौकडी घाट दरवाजा में तेरहपथी बड़ा मन्दिर, गोधो का मन्दिर, बधीचन्द जी का मन्दिर, नगर के उन प्राचीन मन्दिरों मे से है जिनका निर्माण नगर स्थापना के १०-१५ वर्षों में ही हो गया था। ये सभी मन्दिर गत २-२ ॥ शताब्दियों से समस्त जैन समाज की गतिविधियो के केन्द्र बने हुए है।
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जयपुर विशाल मन्दिरो का नगर है । मन्दिरो एव चैत्यालयो को संख्या यहाँ १५० से भी अधिक हैं । इनमे ५० जैन मन्दिर तो ऐसे है जो विशाल होने के साथ-साथ कलापूर्ण भी है। जैन धावको ने इनके निर्माण में जिस श्रद्धा एव उदारता के साथ अपने द्रव्य का सदुपयोग किया है वह आज के समाज के लिए तो आश्चर्य की बात उन्होंने इन मन्दिरों को सभी दृष्टियों से आकर्षक एव प्रभावक बनाने का प्रयास किया तथा समय समय पर उनमें उत्सवादि करके उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं होने दो। यहाँ यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि एक ही नगर में दिगम्बर जैन मन्दिरों की जितनी सख्या जयपुर में है उतनी सख्या देश के किसी नगर मे भी नही है । हो सकता है कि देहली जैसे नगर मे दिगम्बर जैन समाज की अधिक सख्या हो लेकिन मन्दिरों की संख्या की दृष्टि से जयपुर नगर का प्रथम स्थान है । और इसी