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________________ विलासवईकहा एक परिचयात्मक अध्ययन १६७ से मिलने पाया है। सनकुमार ने विनयधर का प्रादर योग्य विधि-विधान सहित वह विवाह सम्पादित हुमा । सत्कार कर सर्व वृत्तान्त पूछे। (१८) विनयधर ने सर्व (१-५). इस अवसर पर ईशानचन्द्र महा प्रसन्न था। वृत्तान्त बतलाये कि "तुम्हारे मारे जाने के समाचार से उसने विनयंघर को उसके साहसिक कार्यों के उपलक्ष मे सारी प्रजा दुखी थी। (२२) सभी मनुष्य कानाफूसी बहूमूल्य उपहार दिया। राजकुमार से क्षमा याचना की। करते थे कि रानी ने राजा को असत्य वचनों से भ्रमित गजकुमार ने कहा-यह सब कर्मों के कारण था। (६कर दिया है । (२३) नगर की नारियाँ कुमार के अशुभ ८). प्रनगवती ने भी अपने अयोग्य कार्य के लिए क्षमा भाग्य पर और अनंगवती के दुगचरण पर शोक मना प्रार्थना की एवं खेद प्रकट किया। (6). राजकुमार ने रही थी। (२४) जब राजा को मालम हम' कि गज- सहर्ष क्षमा करते हुए कहा कि कर्मों के फल को कोई नही कुमारी विलासवती अपहृत हो गई है तो राजा मूच्छित रोक मकता । माता-पिता के लिए पुत्र मिलाप का अवसर हो गया। उद्बुद्ध होने पर उसने राजकुमारी को त अति हर्षप्रद था। राज्य भर में यह दिवस पर्व के समान लाने की आज्ञा दी। (२५-२६) अन्तःपुर में महान शोक मनाया गया (१०-१२). ये सब समाचार सेयाविया नगरी था। राजा तुम्हारे वध की प्राज्ञा देकर बहुत पछता रहा में भी पहुँचे । राजकुमार को बुलाने के लिए विशेष दूत था। (२७-२६) वह रानी सहित अग्नि प्रवेशार्थ उद्यत ताम्रलिप्ति भेजे गए। (१३). वहां उनका विशेष स्वागत था कि किसी निमित्तज्ञ ने सिद्धादेश दिया कि सनत्कुमार हुआ, माता-पिता हुमा, माता-पिता के कुशल समाचार पूछे । मालूम हुआ प्रभी जीवित है। विलासवती उसकी गनी बनेगी मोर । कि सनत्कुमार के चले जाने पर माता-पिता ने बहुत खोज तुम सब की सनत्कुमार से कालान्तर मे किसी प्रकार की थी, परन्तु कोई फल न हमा। (१४). उस खबर ने होगी । तब मैने (विनयधर ने) सब सन्य शत प्रगट कर मबको उदाम बना दिया था। (१५-१६). तब ज्योतिदी और गजा ने मुझे तुम्हारी खोज करने की प्राज्ञा दी। पियो ने भविष्यवाणी की थी कि राजकुमार जीवित है (३०) मैने कहा कि मैं एक वर्ष में सनत्कुमार का पता और यह भविष्यवाणी झूठी नही हो सकती। (१७). लगा दूगा अन्यथा अग्नि में प्रवेश करूंगा। मेरा प्रयत्न विलासवती ने राजकुमार से माता-पिता के दर्शनार्थ चलने व्यर्थ होने पर मै अग्नि प्रवेश कर गया। (३१-३२) को कहा और वह अनुचरों सहित प्रस्थानित हुआ। (१८). परन्तु मैने अनुभव किया कि यग्नि ज्वालाम विलामवती ने बड़े दुख भरे हृदय से अपने माता-पिता से कमल सिंहासन पर बैठा था और एक देवी मुझे सबाधित विदा ली । (१९). मे यावी मे राजा यशोवर्मन ने उनका कर रही थी। (३३) देवी ने मुझे सजीवनी दी, जिसमें मैं म्वागत किया। राज कुमार को माता ने हृदय से लगा राजकुमार को जीवित कर सक और कहा कि तदनन्तर लिया। विलासवती और चन्द्रलेखा का पति स्वागत सभी अभिलाषाएं पूर्ण होगी। (३४) इस सब्धि के सदर्भ हया। नगर में हर्षपूर्ण उत्सव मनाया जा रहा था। नगर में श्लोक संख्या उल्लिखित नही है। के मध्य में से होकर राजप्रासाद के द्वार तक उनका वशमसंषि-सनत्कुमार ने विनयधर के साहमित प्रस्थान प्रति हर्षजनक था। (२०-२१) [लोक go कृत्यों की बडी सराहना की। विलासवती ने उनके प्रयलो ३८८.५]. एक दिन राजा ने सनत्कुमार को राज्य सिहाकी सफलता चाही । प्रत्येक दशा मे माता-पिता का प्रादर सन सभालने के लिए कहा। राजकुमार ने कहा- मेरे तो होना ही चाहिए । सनत्कुमार का समस्त दल माता- पास तो ग्थनूपुर चक्रवालपुर का राज है । जहाँ उसे शीघ्र पिता के दर्शनार्थ ताम्रलिप्ति और स्वेनावी नगरी जाने वापिस जाना है। माता-पिता को प्रब पुत्र का वियोग को तैयार हो गए। अनिलवेग ने भाग्रह किया कि सर्व प्रमह्य था पत: माता-पिता को भी राजकुमार ने अपने प्रथम चन्द्रलेखा का विवाह सनत्कुमार से हो जाना साथ चलने को कहा । माता-पिता की सेवा से राजकुमार चाहिए। इसलिए वह समस्त दल सनत्कुमार के नेतृत्व में का जीवन सफल हो सकेगा। लधुभ्राता कातिवमन राज्य किग्न रपुर गए। बजबाहु ने अनुपम स्वागत किया एव सिंहासन पर बिठाया गया और माता-पिता राजकुमार
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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