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________________ १६६, वर्ष २३, कि०४ अनेकान्त रहे थे। मनंगरति प्राकमण करता हूआ सेना के मध्य व्यतीत हुआ । यहाँ कवि ने स्वागत एवं मन्दिर के दृश्यों भाव में पाया । (१०) दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध का अच्छा वर्णन किया है। (३२-३४) सनत्कुमार रथनूप्रारम्भ हो गया। सैनिक परस्पर जूझ पड़े। युद्ध का पुर चक्रवालपुर के राजा घोषित किये गये और विलासरचनाकार ने विस्तृत वर्णन किया है । (११-१३) वती गनी घोषित की गई, वसुभूति मन्त्री घोषित हुआ। चण्डसिंह ने कंचनदष्ट्र के विमान को नष्ट कर दिया। राजकुमार के चक्रवर्ती बनने पर प्रजा बहुत प्रसन्न हुई। (१४) परन्तु मल्लयुद्ध करते हुए मृत्यु को प्राप्त हुआ। (३६) [श्लोक पृ० ६८२-१६-३८६-१०] । (१५) सनत्कुमार ने अपनी सेना मे वीररस का सचार नवम सन्धि-सनत्कुमार को सफलतापूर्वक राज्य किया, व्यूह के समक्ष स्वयं उपस्थित हुमा, आकाश को करते हए पर्याप्त दिवस सानन्द व्यतीत हुए। एक दिन अपनी वाण वर्षा मे परिपूरित कर दिया। (१६) कुमार जब वह अपने मित्रों एव अनुचरों से परिवेष्ठित अपने के भयकर पराक्रम स युद्ध स्थल मे भगदड़ मच गई। तब अन्त.पुर मे उपस्थित था तो विद्याधर के भेष में एक युवक प्रनगरति प्रौर कुमार का भयंकर युद्ध हुमा। दवता इस किन्नरगीत प्रदेश स वज्रवाह का पुत्र अनिलवेग पाया दश्य को देखने के लिए आकाश में उपस्थित हा गये । और सनत्कुमार से निवेदन किया कि विद्याछरण न जैसी (१८-१६) अजितबल दवता के प्रभाव से प्रनगरति के भविष्यवाणी की थ। (३) तथा विशदरूप से धर्मोपदेश वाण व्यर्थ हो गये। (२०) विविध प्रायुधा द्वारा युद्ध दिया था (४-८) उसकी बहन चन्द्रलखा तुम्हारी पत्नी होने के पश्चात् दोनो का मल्लयुद्ध हुआ। अनगरति न बनेगी, जब कि वह अनगरति को जीतकर राज्य प्राप्त हार मान ली और उसने राज्य त्याग करना स्वीकार करेगा। (६) उसी समय दृष्ट विद्याधर चित्रवेग चन्द्रकिया । राजकुमार ने यह बात प्रभी अप्रगट ही रखी कि लेखा द्वारा अनादृत होने पर उसे हर कर ले गया। युद्ध वह केवल विना सवती को चाहता है। राजकुमार ने मे अनिलवेग घायल होने पर एक औषधि से एक तापस सबको शरण प्रदान की, घायल सैनिको का उपचार द्वारा क्षतरहित कर दिया गया। उस औषधि का विस्तृत कराया, इस तरह राजकुमार वहाँ तीन दिन ठहरा और वर्णन है। (१२) राजा ईशानचन्द्र ने मुझे तुम्हारी (सनसभी की प्रसन्नता का कारण गना । (२४) उसने अपने स्कूमार) की खोज के लिए भेजा था, मै खोज में असफल सहायको सहित नगर मे प्रवेश किया, नागरिको द्वारा होने पर अग्नि मे प्रवेश कर रहा था, तभी वनदेवता ने हार्दिक स्वागत तथा विविध भटे प्रदान की गई । (२७) मुझे मलयपर्वत पर के समीप प्रदेश से सजीवनी बूटी ले राजकमार के स्वागत मे नगर विविध भांति से सजाया जाने के लिए तथा उसके द्वारा समुद्रतट पर राजकुमार गया, स्वागत एव उपहार अनेक भांति से प्राप्त हुए। को जीवित करने के लिए कहा और कहा कि वह तुम्हारी नगर की नारियो ने विविध प्रकार मंगलाचार किये। सहायता करेगा। मैं तापस बनकर तभी से तुम्हारी (२६) स्त्रियां नव-नव शृंगार सजाकर उसके दर्शनार्थ प्रतीक्षा कर रहा हूँ। (१३) मैंने उस प्रदेश में रोती हुई आई। (३०) स्त्रियों ने राजकुमार के रूप प्रादि को राजकुमारी को देखा, उसने कहा-मेरा वाग्दान सनप्रशसा की एव उसके सहायको के विषय मे वार्ताएं की। त्कुमार से हुआ था तथा उसने अपना समस्त विस्तृत इसके बाद राजकुमार राम के मन्दिर में गये । तदनन्तर परिचय दिया। मैंने उसे अपेक्षित सर्व कार्य करने का राजमहल में प्रवश किया, वहाँ सभी व्यक्ति उदास से खड़े विश्वास दिलाया और आज तुमसे यहाँ मिलना हुआ है थे। राजकुमार राजा के उपवन मे गया, वहाँ विलास- (१५) अनिलवेग तापस से चन्द्रलेखा को सान्त्वना प्रदान वती से मिला, दोनों अति प्रसन्न हुए। विद्याधरों ने करने के लिए कहा और स्वयं चित्रवेग से युद्ध करने विलासवती को नमस्कार किया, उसका आशीर्वाद प्राप्त गया एव उसे मार डाला । वह चन्द्रलेखा को विमान पर किया। राजकमार एवं विलासवती दोनों दैनिक कार्यों से बिठा कर अपने नगर मे ले गया और समस्त प्रजा के निवत्तहए, समस्त दिन उत्तम खान-पान एवं मानन्द में हर्ष का कारण बना। अनिलवेग बिनयंधर के साथ प्राप
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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