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बिलासवईरहा एक परिचयात्मक अध्ययन
यह नगरी वैताढ्य पर्वत पर है। वहाँ का दुष्ट राजा वैतादयपर्वत पर पहुंचे। पर्वत की तलहटी में सेना ने अनंगरति उसे ले गया है और उससे बलान विवाह करना शिविर स्थापित किया। (२२) राजकुमार ने समस्त चाहता है । यह सुनकर सनत्कुमार कुद्ध होकर उससे युद्ध विद्यामो और विद्याधरो को स्मृति किया। अनंगरति के करने को उद्यत हुमा परन्तु पवनगति ने उसे धैर्य दिया। प्रति सेना में जोश भरा हुआ था। प्रनगरति ने दुमस पवनगति ने यह भी बताया कि तभी से उस नगर्ग पर नामक सेनापति के सरक्षण में अपनी सेना युद्धार्थ भेजी। महान संकट पा रहे हैं। महाकाली देवी ने उस राजा को गजकुमार की सेना भी युद्धार्थ सन्नद्ध थी। (२३) दूत चेतावनी दी है कि यदि इस पवित्र नगरी का सतीत्व द्वारा समाचार प्राप्त हया कि दुर्मुख की सेना पा रही हरण करोगे तो तुम्हाग सर्वथा विनाश हो जावेगा। है, राजकुमार सेनापति चण्डसिंह उसकी ललकार का बिलासवती इस समय सख्त पहरे में एक उद्यान में स्थित सामना करने को तैयार था। दोनो की सेना एक दूसरे के है। [श्लोक पृ० ३७२, १६-३७६-२] । अनंगरति को आमने सामने खड़ी हो गई। (२५) सब व्यूहो पर युद्ध समझाने के लिए दाम, दण्ड, भेद की उपेक्षा कर एक दूत होने लगा। (२६) उस भयकर युद्ध मे दुर्मुख की सेना भेजकर साम का ही पाश्रय लिया। (४-६), उसे सदेश ने चण्ड सिंह की सेना का विनाश कर दिया। (२७) भेजा कि शीघ्र ही विलासवती को वापिस करे और अपने चण्डसिह और दुमुख मे तुमुल संग्राम हमा। चण्डसिंह के अयोग्य कार्य का पश्चाताप करे (१०.१३) पवनति ने द्वारा दुर्मुख का वध देखकर शत्रु की सेना भाग खडी हुई। वह सन्देश अनंगरति को दिया। अनगरति ने कहा-मै गजकुमार को विजय से देवताप्रो को बड़ी प्रसन्नता हुई। किसी पार्थिव प्राणी (पृथ्वी के मानव) का अन्तिमेथम (२८-२९) [इलोक पृ० ३७८-८-३८०.६)। स्वीकार नही करता। न मै विलासवनी का लोटाऊगः ।
अष्टम सन्धि--गजकुमार विद्याधरो सहित वताढ्यवह प्रजानवश मुझे युद्ध के लिए ललक रहा है । पवन
पर्वत पर चढा, रथनूपुर के दृश्यो का अवलोकन किया गति ने उसे समझाया कि तेरे राज्य पर विपत्ति ग्राने
और अनगति को सन्देश भेजा कि या तो वह राज्य वाली है, तेग हाल रावण जैसा होगा। प्रनगरति पवन
छोडकर अन्यत्र चला जावे या युद्ध के लिए तैयार हो गति पर आघात करना चाहता था और पवनगति भी
जाये । कवि ने नगर एव पर्वतप्रदेश अति भव्य वर्णन प्रत्याक्रमण के लिए तैयार था। परन्तु बडों ने उसे दूत किया है। दो विद्याधर राजकुमार का सन्देश ले गये थे। के प्रति नम्र होने के लिए कहा। पवनगनि ने पिम मनके लौटने पर मालम हया कि प्रनगरति ने राजकुमार पाकर राजकुमार से शीघ्र प्रतिरोध करने के लिए कहा। मनश को बोई मान नहीं दिया और अपनों सेना को (१४१७), यह सुनकर सभी विद्याधर अति कोपिनए या कटव्यूह के रूप में अवस्थित होने की माजा दी (१८), राजकुमार से अकेले ही युद्ध करने का प्र.ताव ।
है। गुद्ध के वादित्र बज उठे। (१.२) इस युद्ध घोषणा किया। विद्याधरो ने ऐसा न करके समस्त सेना सहित शत्रु से युद्ध करने को कहा। [श्लोक पृ० ३७६-६- राजा के चारित्र-विरुद्ध कार्य को बडी घृणा की दृष्टि से ३७८-७] उसकी समस्त सेना एकत्रित हुई। अजितबल देखा। प्रजा राजा को धिक्कारने लगी। उभयपक्ष की देवता ने राजकुमार को एक विमान दिया। वमुभूति सेनाएं तैयार हो गई। (३) विविध वीरता के भावो सहित वह विमान पर प्रारूढ हुमा । कवि ने इसका वर्णन तथा शस्त्रों मे युक्त दोनो सेनाएं तैयार थी। (४५) विस्तार से किया है। (२०) युद्ध के ढोल और शखों की राजा अनंगरति युद्धार्थ चला तो उसे प्रति अशुभ शकुन ध्वनि से प्राकाश परिपूरित हो गया । (२१) शुभ शकुनों हए । इधर राजकुमार की सेना भी युद्धार्थ सन्नद्ध हो गई। के साथ भव्य वातावरण मे विमान प्राकाश मार्ग से चला। अति भव्य दृश्य उपस्थित करती हुई वह सेना पद्मव्यूह के युद्ध के नारे लगाती हुई सेना मागे बढ़ी। वे सेना सहित रूप मे खड़ी हुई । (९) [श्लोक पृ० ३८०-९-३८२ १६] मार्ग मे ग्राम, नगर, झील मादि को पार करते हुए चण्डसिंह और समरसेन दोनों सेनापंक्तियो की रक्षा कर