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________________ विलासवईकहा एक परिचयात्मक अध्ययन १५६ (१४-१५) विलासवती की प्रेम-पीडा बडती ही चली के उपहार सनत्कुमार को भेज और बदले में उसने भी गई, यहाँ तक कि वह मूच्छित हो गई। वसुभति से यह अनेक उपहार भेजे। इस प्रकार कुछ दिन कुशलक्षेमपूर्वक सब जानकर राजकुमार ने राजकमारी की प्राणरक्षा के व्यतीत हुए। (२६-२७) [श्लोक पृ० ३०३.२-३१५. निमित्त उसके पास जाना चाहा। (१६) वसृभूति ने राजकुमार को बतलाया कि किस प्रकार राजकुमारी की सन्धि द्वितीय-एक दिन रानी अनगवती ने अपनी सखी ने उसे समझाया और धीरज बधाया है। जब वह मेविका के द्वारा सनत्कुमार को अपने कमरे मे प्रामत्रित मूर्छा से मुक्त हुई तो उसने एक युवक के प्रेम-पास में किया। माता के समान अादर करता हुआ वह उसके ग्रावद्ध होने की बात सखियो के समक्ष प्रगट कर दी। समीप गया । वहाँ रानी ने अपना प्रेमभाव प्रकट किया। अन गसुन्दरी ने उसे विश्वास-पूर्ण समाचार देकर इनाम और कहा कि वह उसको पहली बार देखने के बाद कैसे प्राप्त किया। (१७) उसी समय विलासवती की माता वियोग की पीडा सह रही है। सनत्कुमार उसकी इस (रानी) वहाँ आई और कहा कि राजा विलासवती का तुच्छ भावना से बड़ा दुखित हुप्रा । (१.२) राजकुमार वीणावादन देखना चाहते है। विलासवती ने अपनी माता ने रानी को समझाया कि उसकी यह भावना अति पापका स्वागत किया और उसके साथ चली गई। नंगसुन्दरी पूर्ण है । इस तरह सनत्कुमार अपने चरित्र पर दढ रहा । पूर्ण हताश एवं किंकर्तव्य विमूढ थी। बसूति ने उसे (३) रानी ने सनत्कुमार की भावना की प्रशसा की और चिन्ता न करने के लिये समझाया और कहा कि उस कहा कि मेरी प्रेम की भावना कौतुकरूप से थी, इसे नवयवक राजकमार से मेरी घनिष्टता है और वह भी गम्भीरता से न ग्रहण करना। इस तरह वह राजकमार प्रेम से व्याकुल है। दोनो ने उन दोनों के मिलन के के पास से चली गई। राजकुमार भी रानी को प्रणाम अनेक उपाय सोचे । राजप्रासाद के उपवन में दोनो को करके घर लौट पाया और बमुभूति के साथ प्रसन्नता के मिलाने का विचार किया। यह जानकर राजकुमार ने पार किया। यह जानकर राजकमार ने साथ समय बिताने लगा। (४) लोक पाठ ३१६.१वसुभूति को इनाम दिया । (१८-२०) वे राजप्रासाद के ३१८.३] उद्यान मे गये । वहाँ सब ऋतुग्रो की शोभा इसके पश्चात विनयंघर, राजा का मित्र और नगरउपस्थित थी। कवि ने इसका बहुत मुन्दरता से रक्षक सनत्कुमार के पास प्राया मोर एकान्त मे बोला पत्रण किया है । (२१) अनगसुन्दरी ने कि "तुम्हारे पिता के राज्य मे स्वस्तिमती नगरी मे एक नन्दन वक्ष के नीचे ग्रासन ग्रहण करने की वीनती की। महान उदारोशय और पराक्रमी वीरसेन नामक एक वीर विलासवती के अनुपम सौन्दर्य को राजकुमार एवं वसु- व्यक्ति रहता था। एक बार वह अपनी पत्नी और बडे भति ने देखा । कवि ने इसका विस्तृत वर्णन किया है। पुत्र के साथ अपने पिता के निवास-स्थल-जयस्थल को राजकमारी के सौन्दर्य से राजकुमार पाश्चर्यचकित हो तरफ जा रहा था। मार्ग में स्वेतावी नगरी के बाहर गया और राजकुमारी ने उसे प्रेम का प्रतीक ताम्बूल उसने डेरा डाला। यहाँ एक चोर की प्राणरक्षा की अर्पण किया। जब वे दोनों इकट्ठे बैठे थे, उसी समय प्रार्थना पर उसने ध्यान देकर अपने डेरे पर ठहरा लिया। मित्रभूति के द्वारा राजा ने विलासवती को वीणावादनी के राजा के सिपाहियों ने उस चोर को खोजते हुए वीरसेन लिए बलाया, क्योंकि गतदिवस भूल से वीणावादनका कार्य- डेरे को घेर लिया और वीरसेन से चोर के अपराध का क्रम न हो सका था। वह प्रेमपूर्ण दृष्टि से राजकुमार को वर्णन किया। (५-८) वीरसेन ने चोर को लौटाने से देखती हई चली गई। राजकुमार और उसका मित्र भी इंकार कर दिया। तब राजा यशोवर्मन ने वीरसेन से यद्ध अपने घर चले गए। रानी अनंगवती राजकुमार को देख करने की आज्ञा दी। युद्ध मे सनत्कुमार ने वीरसेन की कर कछ मोहित सी हो गई । (२२-२५) रानी भी काम- सहायता की। (६-१०) वीरसेन जयस्थल चला गया Aasता को प्राप्त हई। विलासवती ने कई प्रेममोर श्वसुरालय में ठहरा। नगररक्षक ने कहा कि जय.
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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